शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

इशरत जहॉं



           अहमदाबाद अपराध शाखा अधिकारियों की एक टीम द्वारा सन 2004  में 19 वर्षीय छात्रा इशरत जहॉं की कथित फर्जी मुठभेड हत्या में सी बी आई ने गुजरात के पुलिस अधिकारी जी0 एल0 सिंघल को गिरप्तार किया है। आई0पी0एस0 अधिकारी सिंघल उस समय पुलिस अपराध शाखा के सहायक आयुक्त थे। सिंघल ने मुठभेड में अहम भूमिका निभायी थी। गुजरात हाई कोर्ट द्वारा गठित विशेष जॉंच टीम ने मुठभेड को फर्जी पाया। सिंघल अभी राज्य अपराध ब्यूरों के एस0पी0 हैं।
          अहमदाबाद नगर अपराध शाखा की एक टीम ने 15 जून 2004 को अहमदाबाद एवं गॉंधीनगर के बीच एक  खाली सडक पर इशरत जहॉं और तीन अन्य लोगों जावेद शेख,जीशान जौहर और अमजद अली राणा को मार दिया था।
       जनता दल.यू के नेता लालू प्रसाद यादव ने तभी इसे फर्जी मुठभेड कहा था, लेकिन गुजरात के तत्कालीन पुलिस अधिकारियों ने टी0वी0 पर बयान देकर मुठभेड को सही और सम्बन्धित मृतको को पाकिस्तान से संचालित आतंकवादी बताया था। तब लालू प्रसाद यादव की बात को ऐसे ही गम्भीरता से नहीं लिया गया जैसे आज कांग्रेस प्रवक्ता दिग्विजय सिंह को नहीं लिया जाता है। किसी ने निर्दोष कमसिन लडकी के मारे जाने पर आवाज नहीं उठायी और आज जब न्याय की दिशा में एक छोटा सा कदम उठा है तो उसकी पहचान हैदराबाद के धमाकों  में गुम हो गयी है। हैदराबाद के धमाकों में  यह सुनिश्चित माना जा रहा  है कि  विस्फोट मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा ही किया गया होगा और उसके पीछे कुछ तयशुदा नामचीन संगठनों का ही हाथ होगा। ऐसे में ये भी देखने की कौशिश नहीं की जाती है कि मरने वाले कौन हैं उनके मरने से किसको, कैसा लाभ मिलने वाला है ? या वारदात के लिये चुने गये वक्त का किसके लिये क्या महत्व है?

       ज्यादा सवाल करने का मतलब है आप अपनी राष्ट्रभक्ति को सवालों के कटघरे में कैद करा रहे हैं। लेकिन कटघरों में खडा करने से सवाल उठने बन्द नहीं हो जाते हैं सवाल और उठते हैं।सवाल जिनका जबाब देना ही होगा। कानून व्यवस्था के लिये जिम्मेदार एक व्यक्ति अपने पद का आपराधिक दुरूप्योग करके भी तमगे पहने कुर्सी पर डटा रहता है और आप चाहते हैं कोई सवाल ना करे, अगर कोई करे तो वो आतंकवादियों का हिमायती है, धर्मद्रोही है, देशद्रोही है? आप बहुसंख्यकों की धार्मिक भावनाओं की आड लेकर अपने तमाम समाज विरोधी, राष्ट्रविरोधी कारनामें करते रहें तो भी कोई कुछ ना कहे और  बिना किसी जॉंच परिणाम का इन्तजार किये एक समुदाय या संगठन विशेष का नाम लेकर चिल्लाना शुरू कर दे ंतो क्या यह जॉंच को प्रभावित करना नहीं है? आखिरी बात अगर इस घटना में कथित राष्ट्रवादी संगठन के किसी सदस्य की सहभागिता मिली तो क्या फिर भी आप ऐसे ही चिल्लायेंगें जैसे अब चिल्ला रहें हैं ? उनका शामिल होना कोई  आश्चर्य की बात नहीं है, पहले ऐसा पाया गया है।
                                                                              -  अमरनाथ 'मधुर'
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           15 जून 2004 को नरभक्षी नरेंद्र मोदी सरकार के बंजारा नाम के एक बड़े पुलिस अधिकारी के नेतृत्व में कार में सफ़र कर रहे चार मुस्लिम नागरिको की हत्या कर दी गयी, पढ़े लिखे उच्च शिक्षा प्राप्त इन अधिकारियों ने अपने आका के हक़ में कहानी सुनायी कि विश्व विकास पुरुष मोदी को मारने के लिए लश्कर ने इन्हें भेजा था. पुलिस को पता चला, मुठभेड़ हुई और नेता जी की जाना इन चार आतंकवादियों को मार कर बचा ली गयी.

       गुजरात सरकार के तमाम अवरोधक हथकंडो के बावजूद इस तरह के एक दर्जन मामलों की जांच चल रही है. १९ वर्षीय इशरत जहां (जो इस चित्र में है) मुम्बई में एक कालिज की छात्रा थी उसे भी आदमखोर नरेंद्र मोदी सरकार ने आतंकवादी बनाकर पेश किया था. इसी सिलसिले में सी.बी.आई ने आज एक आई पी एस अधिकारी जी एल सिंघल को गिरफ्तार किया है. यदि जांच कायदे से जारी रही तब गुजरात के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे ऐसे ही बंजारा और सिंघल जैसे करीब ५५ पुलिस अधिकारी जेलों में होंगे.
विकास की पीपली बजाते हुए अपने गले फुलाने वालो के लिए यह एक शर्मनाक दिन है. शर्म उन्हें भी आनी चाहिए जो किसी नरभक्षी मानसिकता से ग्रस्त एक अपराधी को स्टेज पर ताली बजाते ,सीटी बजाते स्वागत करते है और उसे भारत का भावी प्रधानमंत्री बनाने का ख़्वाब देख –दिखा रहे है. न्याय का पहिया जिस दिन निर्बाध्य गति से भारत में चला उस दिन फांसी के फंदे और नरेद्र मोदी की गर्दन का मिलन हो जाएगा. (मैं निजी स्तर पर उम्र कैद के पक्ष में हूँ)
                                                                      - शमशाद इलाही शम्श
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         हैदराबाद में गुरुवार को हुए बम विस्फोटों के बाद से रईस अहमद को भय ने जकड़ लिया है.मई 2007 में शहर की मक्का मस्जिद में हुए विस्फोट के बाद जिन सौ मुसलमान युवकों को पुलिस ने पकड़ा, रईस अहमद उनमें शामिल थे.पर अदालत ने बाद में रईस सहित ज़्यादातर लोगों को बेक़सूर मानते हुए बरी कर दिया. इसके बावजूद शहर में विस्फोट की घटना के बाद रईस अहमद को फिर से वही यातनापूर्ण दिन याद आने लगे हैं.रईस ने बीबीसी से कहा, "विस्फोट के बाद से मैं और मेरा परिवार बहुत परेशान हैं और यह स्वाभाविक है. आप जानते हैं उस समय हमारे साथ क्या हुआ था लेकिन मैं उम्मीद कर रहा हूँ कि अब की बार निर्दोषों को नहीं सताया जाएगा."

   मक्का मस्जिद में विस्फोट के बाद गिरफ्तारी के कारण होने वाले नुकसान से वो अब तक संभल नहीं सके हैं
उनकी न केवल नौकरी चली गई थी बल्कि जहाँ उनका विवाह तय हुआ था उस परिवार ने भी संबंध तोड़ लिए थे.रईस अहमद के अलावा डॉक्टर इब्राहीम जुनैद भी उन युवाओं में शामिल थे जिन्हें मक्का मस्जिद विस्फोट के बाद पकड़ कर यातनाएं दी गईं और लगभग डेढ़ वर्ष तक जेल में रखा गया.अदालत की ओर से निर्दोष ठहराने के बाद भी काफी लंबे समय तक उन्हें उत्पीड़न सहना पड़ा.

      इब्राहीम जुनैद का कहना था, "जब मैंने टीवी पर दिलसुखनगर में विस्फोट के समाचार देखे तो मुझे बहुत दुःख हुआ कि निर्दोष लोगों की जानें चली गईं और इतने सारे लोग घायल हो गए. इसके बाद मुझे बहुत डर भी लगा क्योंकि पहले पुलिस ने मुझे केवल इसलिए पकड़ लिया था कि विस्फोट के दिन मैंने मक्का मस्जिद में नमाज़ पढ़ी थी और घायलों को अस्पताल पहुँचाने में मदद की थी".

     इस बार सबसे बड़ा अंतर यही दिखाई दे रहा है की पुलिस और दूसरी सरकारी एजेंसियों ने किसी संगठन को चिन्हित करने या आरोप लगाने में जल्दबाजी नहीं की है.मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी और पुलिस महानिदेशक दिनेश रेड्डी ने खुल कर कहा है की वो इन विस्फोटों के ज़िम्मेवारों को लेकर कोई अटकलें लगना नहीं चाहते और छान बीन पूरी होने के बाद ही कुछ कहेंगे.यह 2007 की घटनाओं के बिलकुल विपरीत है.

   मई 2007 में मक्का मस्जिद में विस्फोट के तुरंत बाद ही पुलिस और मीडिया ने स्थानीय मुस्लिम समुदाय से लेकर लश्कर-ए -तैबा और हरकतुल मुजाहिदीन जैसी पाकिस्तान स्थित संगठनों तक सभी पर आरोप लगाना शुरू कर दिया था.पुलिस ने 100 से ज्यादा स्थानीय मुस्लिम युवाओं को गिरफ्तार कर लिया था. इनमें से 26 पर आतंकवाद से जुड़े संबंधित आरोप लगाए गए जबकि बाक़ी लोगों को यातनाएं देने के बाद छोड़ दिया गया.इसके लिए पुलिस और आंध्र प्रदेश की काँग्रेस सरकार की ज़बरदस्त आलोचना हुई थी.

    मक्का मस्जिद विस्फोट में सीबीआई की छान-बीन से जब यह बात सामने आई थी कि इसमें आरएसएस से जुड़े कुछ हिन्दू चरमपंथियों का हाथ था तो राज्य सरकार को बहुत शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी.बाद में उसे राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की सिफारिश पर निर्दोष पाए गए मुस्लिम युवाओं को लाखों रूपए का मुआवज़ा अदा करना पड़ा और यह सर्टिफिकेट देना पड़ा कि इन युवाओं का 'आतंकवाद' से कोई संबंध नहीं है.
लतीफ़ खान का कहना है, "अगर पिछली घटनाओं की छान- बीन भी इमानदारी और न्यायपूर्ण अंदाज़ से होती और असल दोषी पकड़े जाते तो शायद यह घटना नहीं घटती".
                                                       -अब्दुल हक खान 

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