रविवार, 10 मार्च 2013

गुरू और शिष्य


                  
        विक्रम ने पेड पर उल्टे लटके बैताल को अपने कंधे पर लादा और मशान की ओर चल दिया। बैताल ने विक्रम से कहा कि तुम्हें मेरी शर्त याद है ना मैं तुम्हें कहानी सुनाउॅगा और फिर सवाल पूछूॅगा जिसका तुम्हें सही सही जबाब देना होगा। अगर तुमने मेरे सवाल का सही सही जबाब नहीं दिया तो तुम्हारा सिर धड से अलग हो जायेगा और अगर तुम बीच में बोले तो मैं वापिस पेड पर जा लटकूॅगा।
विक्रम ने कहा -हॉं मुझे सब याद है, लेकिन तुम भी मुझे बातों में मत उलझाओ और जो सवाल पूछना है जल्दी पूछ लो।

     बेताल ने कहानी यूँ  शुरू की। एक समय की बात है देशाटन के लिये जा रहा एक  मुसाफिर  एक दिन एक गाँव के बीच से होकर  जा रहा था . उसने देखा कि गॉंव की चौपाल पर कुछ लोग बैठे हुक्का गुडगुडा रहे हैं। उसे भी हुक्के की तलब लगी. वह पॉंव लागू कहकर चौपाल पर बैठ गया। गॉंव के लोगों ने उसकी कुशल क्षेम पूछी और हुक्का उसकी ओर बढा दिया।  मुसाफिर ने अपना परिचय दिया और गॉंव वालों े से परिचय करने लगा। धीरे धीरे बातो को सिलसिला बढा और दुनिया जहान की बातें होने लगी। गॉंव वालों की बातें उसे बहुत अच्छी लगी और गॉंव वालों को भी मुसाफिर की बातों में रस आने लगा। शाम का समय था गॉंव वालों ने कहा कि आगे बहुत दूर तक कोई दूसरा गॉंव नहीं हैं अतः मुसाफिर को रात्रि विश्राम गॉंव में करना चाहिये।मुसाफिर को भी यही उचित लगा और वह रात को वहीं चौपाल पर ठहर गया।

      गॉंव के कई लौग रात को मुसाफिर के पास ही रूक गये। रात उनकी और मुसाफिर की बातें करते ही बीत गयी। सुबह तक गॉंव के लोग मुसाफिर से इतने प्रभावित हो चुके थे कि उन्होंने मुसाफिर को किसी भी कीमत पर गॉंव से विदा करने से मना कर दिया। मुसाफिर तो देशाटन के लिये ही निकला था उसने सोचा कुछ दिन इस गॉंव के लोगों की ही संगत कर ली जाये।
  
      अब वह चौपाल पर ही रहता था।गॉव के लोग अपने घरों से उसके लिये खाना भिजवा देते थे ।वह दिन में गॉंव के बच्चों को  शिक्षा देता शाम को गॉंव के युवाओं को खेलकूद कराता और रात को चौपाल पर बैठक करता जिसमें तमाम किस्से, कहानी, रागिनी आदि होते।गॉंव के नौजवानों और बच्चों ने उसे अपना गुरू मान लिया और अब वह गुरूजी कहाने लगा। कुछ ही दिनों में वह गॉंव के नौजवानों और समझदार लोगों को सबसे बडा चहेता हो गया। अब गॉंव के लोग उससे हर मामले में राय लेने लगे। फसल की देखभाल कैसे करनी है? बिटिया का बयाह कैसे करना है ? लोंडे  की नौकरी कैसे लगेगी?  बनिये का सूद कैसे चुकाना है? त्यौहार कैसे मनाना है? मतलब की गाँव के लोगों का  कोई ऐसा मसला ना था जिसमें गुरूजी  से राय ना ली जाती हो ।
    
     हर गॉंव की तरह उस  गॉंव में भी कुछ सरकस किस्मके लोग रहते थे । बहुत दिनों से वे गॉंव के सीधे सादे लोगों को बहकाकर अपना उल्लु सीधा करते आये थे ।हर वक्त दूसरों की कमाई को हडपने की तरकीब खोजते  रहना ही इनका पेशा था। लेकिन वे लोग अब बडे परेशान हो रहे थे। गुरूजी के आने से उनका काम मुश्किल होने  लगा था. क्यूकि गॉंव वाले हर मामले में गुरूजी की सलाह लेते थे। गुरूजी उन्हें सच्चा ओर नेक रास्ता दिखाते ओर उन्हें ठगे जाने से बचाते थे । गॉंव के शातिर लौग मन्दिर के पुजारी के पास गये और उसे अपना दुखडा सुनाया। गॉंव का पुजारी भी जानता था कि अगर इन बडे लोगों का साथ नहीं दिया तो वो भी मन्दिर में नहीं टिक पायेगा. वैसे भी गुरूजी की वजह से उसकी आव भगत गॉंव वालों में कम होने लगी थी । अब तो गॉंव वाले उससे भाग्य ओर भगवान को लेकर शंका भरे सवाल भी करने लगे थे। अतः उसने गॉंव  बडे लोगो को आश्वस्त किया कि वह इस विपदा से उन्हें जरूर मुक्ति दिला देगा। उसने कहा वह उन्हें एक तरकीब बताता है वे उस पर अमल करें, मुसाफिर अपने आप गॉंव छोड देगा।

     पुजारी ने गॉंव वालों के कान में एक मंत्र फूंका जिसे पाकर उनके चेहरे खिल गये।अगले दिन से गॉंव में अफवाहें फैलने लगी कि चौपाल पर रहने वाला गुरूजी नौजवानों को धर्म से विमुख कर रहा है, वह नास्तिक है। धर्म को नहीं मानता है, भगवान को नहीं मानता है । आदमी को ही सब कुछ समझता है। ऐसे नास्तिक को गॉंव से भगा देना चाहिये।
        गुरूजी को कभी मन्दिर में पूजा के लिये जाते हुये नहीं देखा गया था इसलिये गॉंव वालों को यकीन होने लगा कि मुसाफिर जरूर नास्तिक है।

    अब छिपकर गुरूजी की निगरानी की जाने लगी। गुरूजी बच्चो को पढा रहा होता तो लौग ओट में छुपकर उसकी बाते सुन रहे होते। वे अक्सर गुरू को यह कहते सुनते कि हम  सब एक इन्सान के रूप मे पेदा हुये हैं हम सब बराबर हैं। हम किसी जात को लेकर पैदा नहीं हुये जात हमें यहॉं आकर मिली है और यही छूट जायेगी। जात ना बडी है ना छोटी है ये आदमी को आदमी से अलग रखने का एक तंग घेरा है ऐसा ही घेरा मन्दिर और मस्जिद का है गिरजे और गुरूद्वारे का है स्त्री ओर पुरूष का है। आदमी को बुद्धि  हिन्दू मुसलमान या स्त्री पुरूष के भेद से नहीं मिली है वो उसे अपने समाज के हालात से मिली है। अपने घर के हालात से मिली है जैसे जैसे हालात अच्छे होंगें बच्चे अच्छे माहौल में पलेंगें बढेंगें वे बुद्धिमान होंगें । बुद्धि के विकास का शिक्षा एक माध्ध्यम है। अगर सब पढ लिखकर अच्छी शिक्षा प्राप्त करेंगे तो वे बुद्धिमान बनेंगें और समाज का उत्थान करने में समर्थ होंगे।
  
    गॉंव के कुछ लोंगों ने एक दिन बडा हल्ला किया उन्होने कहा ये आदमी हमारे  समाज में गडबड पैदा कर रहा है इसको तुरन्त यहॉं से चले जाना चाहिये । लेकिन नौजवानों ने उनका कडा विरोध किया। उन्होंने कहा चौपाल पूरे गॉंव की है किसी की निजी जागीर नहीं हैं। जब तक गुरूजी का कोई अपराध प्रमाणित ना हो जाये गुरूजी यहीं रहेंगें। उन्हें गॉंव से कोई नहीं भगा सकता है। सत्यव्रत नाम का एक नौजवान गॉंव के सारे नौजवानों को नेता था । उसे गुरूजी से खास लगाव था । इस घटना के बाद दोनों के मध्य स्नेह और सम्मान का रिश्ता महकने लगा। गॉंव के सारे लोगों को यह पता लग गया कि सत्यव्रत गुरूजी को सबसे प्रिय है और गुरूजी उससे खास लगाव रखते हैं।


   चौपाल पर शाम को नौजवानों का जमघट लगता। गुरूजी कभी ज्ञान चर्चा करते, कभी कहानी और गीतों से सबको रसविभोर कर देते। गॉंव के बहुत से नौजवान भी लिखने पढने लगे।  एकाकी जीवन बिता रहे कुछ बुजुर्ग साहित्यकार भी अपनी नई पुरानी रचनायें लेकर वहॉं अपना रंग दिखाने आने  लगे। सत्यव्रत हर विषय में रूचि दिखाता और हरेक विषय की गहराई तक पहुँचने का प्रयास करता । वह अक्सर गुरूजी से सवाल पूछता रहता ऐसा क्यूँ है? ऐसा कैसे हो सकता है? फलॉं किताब में तो ये लिखा है आप ऐसा क्यूँ  कहते हो? हमारे धर्मग्रन्थ ये कहते हैं आप ये क्यूँ  कहते हो ?
 
    गुरूजी यथासंभव उसके प्रश्नों का उत्त्र देकर उसे सन्तुष्ट करने का प्रयास करते लेकिन उसकी ज्ञान पिपासा इतनी प्रबल थी कि गुरूजी उसके प्रश्नों का उत्तर देने में असहज हो जाते।
 
  एक दिन ऐसे ही प्रश्नों से झुझलाकर गुरूजी ने उसे जोर से झिडक दिया। सत्यव्रत के हृदय को चोट पहुँची। उसके हृदय में गुरूजी की जो पवित्र प्रतिमा थी वह चटक गयी। उसने सवाल पूछने बन्द कर दिये और ख़ामोशी अख्तियार कर ली .

  गॉंव की चौपाल पर गॉंववालों का जमघट अब भी था, गुरू का संभाषण भी होता था. लेकिन संवाद कोई नहीं था। गुरू को यह सन्नाटा खलने लगा। उसे लगने लगा कि अब उसके बोरिया बिस्तर समेट कर चलने का वक्त आ गया है। सत्यप्रत को ज्ञात हुआ कि गुरूजी जाने वाले हैं तो उसने अपना मौनव्रत तोड दिया। लेकिन सवाल अब कम ही पूछता था। चौपाल पर लौग आते जाते रहते थे । रागिनी किस्से अब भी जारी थे, लेकिन चौपाल की रौनक गायब थी।

बेताल ने विक्रम से कहा- राजन बताओ गुरू भी है, शिष्य भी हैं, फिर भी गॉंव की चौपाल पर रौनक क्यूँ  नहीं है? गुरू या शिष्य में से अयोग्य कौन है?

विक्रम ने कहा- गुरू अयोग्य है।

बेताल ने पूछा -राजन वो कैसे?

विक्रम ने जबाब दिया- वो ऐसे  कि जिज्ञासु शिष्य ही सच्चा ज्ञानार्थी होता है। शिष्य को गुरू से ज्यादा से ज्यादा प्रश्न पूछने चाहिये और गुरू को धैर्य पूर्वक उनका जबाब देना चाहिये । भले ही शिष्य ने कैसे भी असंगत प्रश्न पूछे हों लेकिन एक योग्य गुरू को संयम नहीं खोना चाहिये और हर प्रश्न का तर्कसंगत उत्तर देना चाहिये।शिष्य की योग्यता प्रश्न पूछने में है और गुरू की योग्यता उत्तर देने में निहित है। सत्यव्रत के गुरू ने प्रश्नों का उत्तर  नहीं दिया और शिष्य के कोमल हृदय को भी ठेस पहुँचायी इसलिये वह गुरू कहलाने के योग्य नहीं है। उसके इस व्यवहार के कारण चौपाल पर दूसरे लोग भी प्रश्न पूछने में कतराने लगे हैं इसीलिये वहॉं रौनक भी कम है।
 बेताल विक्रम के उत्तर से सन्तुष्ट हुआ लेकिन  विक्रम पर बीच में बोलने का आरोप लगाता हुआ उडकर पेड पर जा लटका।
      मैंने रात यह सपना देखा और यह भी देखा कि बेताल उडकर जाने से पहले मेरे हाथ में कम्प्यूटर का माउस थमाकर  कह रहा है कि  सबसे पहले यह कहानी लिखकर फेसबुक पर हमारी आवाज में पोस्ट  कर दे नही तो......
दोस्तों आप मेरी मजबूरी समझ सकते हैं । मैने यह कहानी आपके सिर में दर्द करने के लिये पोस्ट नहीं की है बल्कि अपना सिर बचाने के लिये पोस्ट की है। मैं अपने सिर की सलामती चाहता हूँ  और आपके लिये शुभकामना करता हूँ .



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