सोमवार, 18 मार्च 2013

किसान सुमंत कुमार


       बिहार के नालंदा के एक किसान सुमंत कुमार ने धान की पैदावार का विश्व रिकॉर्ड  बना लिया है.  इस बात का अपना  ही  महत्व है .यह हमारे स्वाभिमान और आत्मविश्वाश  को बढाता है.इस देश के किसानों ने खाद्यान के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बहुत मेहनत की है.जनता को खाद्यान वितरण की जिम्मेदारी सरकार की है, इसके बाद भी अगर जरूरतमंद तक  अनाज की पहुँच नहीं है, तो यह सरकार के लिए डूब मरने की बात है .इस सम्बन्ध में मुफ्त अनाज वितरण की जो प्रणाली है उसे भी परखने की आवाश्यकता है .मेरी समझ से अनाज मुफ्त नहीं बांटा जाना चाहिए.जब सरकार तेल कंपनियों, बिजली बोर्डों, खाद कंपनियों  की बढ़ती लागत का ध्यान रखकर उनके उत्पाद के दाम बढ़ाती है तो कृषि की उपज का भी लागत के अनुपात में दाम बढ़ाना चाहिए.वो बढ़ता नहीं है ऊपर से फसल खराब हो जाए या ज्यादा पैदा हो जाए तो किसान कर्जे में डूब जाता है, और सूदखोरों से निजात पाने के लिए आत्महत्या करता है .किसान की जान की कीमत पर बाकी जनता का पेट  भरने  की नीति  बहुत सही नहीं कही  जा  सकती  है. इसका  सही तरीका यह हो सकता है कि किसान को लाभकारी  मूल्य  दिया  जाए और गरीब आदमी को खाद्यान्न  अनुदान का भुगतान उसके बैंक खाते में कर दिया जाए.पेट भरने लायक अनाज के मूल्य का पूरा भुगतान अनुदान के रूप में किया जा सकता है.इस बात का कोई औचित्य नहीं है कि जो लोग होटलों में कई सो रुपये की खाने की थाली का भुगतान करते हैं या कई सो रुपये की शराब पी सकते हैं या पेट्रोल फूंक सकते हैं वो रोटी के लिए सस्ता अनाज लें .या वो सारे होटल और उद्योग जो अनाज का उपयोग कर बने उत्पादों  से बड़ा मुनाफा कमाते हैं उन्हें सस्ता अनाज या अन्य कृषि उत्पाद किसी कीमत पर नहीं मिलना चाहिए .अगर सरकार इतना भर कर दे तो किसान को किसी चीज पर सब्सिडी की जरूरत नहीं रहेगी और न उसे कर्ज माफ़ी की जरूरत पड़ेगी .सरकार जो हर वक्त सब्सिडी के बढ़ते बोझ का रोना रोती रहती है, वो भी चैन से रहेगी .    


بہار کے نالدا کے ایک کسان سمت کمار نے دھان کی پیداوار کا عالمی ریکارڈ بنا لیا ہے. اس بات کا اپنا ہی اہمیت ہے. یہ ہماری خود داری اور اتموشواش کو مزید وسیع کرتا ہے. اس ملک کے کسانوں نے كھاديان کے معاملے میں ملک کو خود کفیل بنانے کے لئے بہت محنت کی ہے. عوام کو كھاديان تقسیم کی ذمہ داری حکومت کی ہے، اس کے بعد بھی اگر جرورتمد تک اناج کی رسائی نہیں ہے، تو یہ حکومت کے لیے ڈوب مرنے کی بات ہے. اس بارے میں مفت اناج تقسیم کی جو نظام ہے اسے بھی پرکھنے کی اواشيكتا ہے. میری سمجھ سے اناج مفت تقسیم نہیں کیے جانا چاہئے. جب حکومت تیل کمپنیوں، بجلی بورڈوں، کھاد کمپنیوں کی بڑھتی ہوئی لاگت کا خیال رکھ کر ان مصنوعات کی قیمتیں بڑھاتی ہے تو زراعت کی پیداوار کا بھی سرمایہ کاری کے تناسب میں دام بڑھانا چاہئے. وہ بڑھتا نہیں ہے اوپر سے فصل خراب ہو جائے یا مزید پیدا ہو جائے تو کسان كرجے میں ڈوب جاتا ہے، اور سودكھورو سے نجات پانے کے لئے خود کشی کرتا ہے. کسان کی جان کی قیمت پر باقی عوام کا پیٹ بھرنے کی پالیسی بہت صحیح نہیں کہی جا سکتی ہے. اس کا صحیح طریقہ یہ ہو سکتا ہے کہ کسان کو منافع بخش قیمت دی جائے اور غریب آدمی کو اناج گرانٹ کی ادائیگی اس کے بینک اکاؤنٹ میں کر دیا جائے. پیٹ بھرنے کے قابل اناج کی قیمت کی مکمل ادائیگی عطیہ کے طور پر کیا جا سکتا ہے. اس بات کا کوئی جواز نہیں ہے کہ جو لوگ ہوٹلوں میں کئی سو روپے کی کھانے کی تھالی کی ادائیگی کرتے ہیں یا کئی سو روپے کی شراب پی سکتے ہیں یا پٹرول مل کر کام کرسکتے ہیں وہ روٹی کے لئے سستا اناج لیں. یا وہ سارے ہوٹل اور صنعت جو اناج کا استعمال کر بنے مصنوعات سے بڑا منافع کماتے ہیں انہیں سستا اناج یا دیگر زرعی مصنوعات کسی قیمت پر نہیں ملنا چاہیے. اگر حکومت اتنا بھر کر دے تو کسان کو کسی چیز پر سبسڈی کی ضرورت نہیں رہے گی اور نہ اسے قرض معافی کی ضرورت پڑے گی . حکومت جو ہر وقت سبسڈی کے بڑھتے بوجھ کا رونا روتی رہتی ہے، وہ بھی چین سے رہے گا.

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