बुधवार, 20 मार्च 2013

प्रभाकरण के बारह वर्षिय पुत्र बालाचन्द्रन


  
    श्रीलंका में प्रभाकरण के बारह वर्षिय पुत्र बालाचन्द्रन को श्रीलंका की फोजों ने निर्दयता से मार डाला था.  तमिलनाडु के अतिरिक्त कहीं कोई क्षोभ नहीं दिखता है। श्रीलंका में तमिल  स्त्रियों के साथ यौन दुराचार किया गया, कही कोई विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ। श्रीलंका की फोजों द्वारा लगभग दो लाख तमिलों  का बेरहमी से सफाया किया गया है लेकिन भारत सरकार या भारत के तमाम वे संगठन जो पाकिस्तान या बंगलादेश में होने वाली भारत विरोधी या हिन्दु विरोधी हर घटना पर चीखने चिल्लाने लगते हैं कुछ नहीं बोले बिलकुल खामोश रहे जैसे श्रीलंका में तमिलों  का मारा जाना कोई मसला ही न हो। ये वही लोग हैं जो अपने को राष्ट्रवादी और हिन्दुवादी कहते नहीं थकते हैं। इनका राष्ट्रवाद तमिलों की पीडा को अपनी पीडा नहीं समझता है और ना ही उन्हें हिन्दू मानता है,इस पर भी ये आशा करते हैं कि उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम सारा देश राष्ट्रवाद पर उनके नजरिये को ही सही मान लें।
 हम हिन्दू या तमिल होने  के नाते नही वरन उनके इन्सान होने के नाते श्रीलंका की  सेना द्वारा किये गये  नरसंहार की संयक्त राष्ट संघ द्वारा निष्पक्ष जॉंच की मॉंग करते हैं और दोषी श्रीलंकाई फौजी अफसरों और राजनीतिज्ञों पर अन्तराष्टीय न्यायालय में मुकदमा चलाकर सख्त सजा दिये जाने की मॉंग करते है। उद्धत राष्ट्रवाद के   हिमायतियों को  श्रीलंका के इस भयानक राष्ट्रवाद से सबक लेने की जरूरत है।
      दुनिया  का कोई भी  देश अपने पडौस में अपने ही  वंशधरों के ऐसे जनसंहार को चुपचाप नहीं देख सकता है जैसे आज भारत देख रहा है . भारत ने ही पूर्वी पाकिस्तान में बंगालियों के दमन को कहाँ सहन किया था? उसने उस दमन के विरुद्ध लड़कर एक नए देश बांग्लादेश को जन्म लेने में मदद की थी. हम श्रीलंका को विभाजित होते नहीं देखना चाहते थे और इसलिए प्रभाकरन के अलगाववादी आतंकवाद की कभी हिमायत भी नहीं की थी लेकिन प्रभाकरन की म्रत्यु के बाद वहाँ सब कुछ सहज हो जाना चाहिए था  लेकिन शीलंका के राजनीतिज्ञों ने परिपक्वता का परिचय नहीं दिया और क्रूरता का व्यवहार कर तमिलों को निरादयता से मारा  है. तमिलों की जायज मांगों को सहानूभूति पूर्वक  सुना और माना जाना चाहिए. तमिल श्रीलंका में बहुत बड़ी आबादी हैं वे कम भी होते तब भी उनके बुनियादी अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए.  सिर्फ इस भय से कि कहीं श्रीलंका चीन की गोद में न बैठ जाए भारत तमिलों का जनसंहार चुपचाप देखता रहे ये किसी भी तरह उचित नहीं है. जब पाकिस्तान को नागवार हरकतों के लिए खेल और अन्य गतिविधियों पर प्रतिबन्ध लगाकर चेताया जा सकता है तो श्रीलंका को भी सख्त सन्देश देने की जरूरत है. अगर हम ऐसा नहीं करते हैं और फिर भी विश्व की परमाणु महाशक्ति और वीटों पावर की स्वाभाविक हकदार माने जाने   की गलतफहमी पाले रहते हैं तो यह हास्यास्पद ही होगा.  


سری لنکا میں پربھاکرن کے بارہ ورشي بیٹے بالاچندرن کو سری لنکا کی پھوجو نے تلخی سے قتل کر دیا تھا. تمل ناڈو کے علاوہ کہیں کوئی كشوبھ نہیں دکھائی دیتا ہے. سری لنکا میں تامل عورتوں کے ساتھ جنسی جنسی استحصال کیا گیا، کہی کوئی احتجاج نہیں ہوا. سری لنکا کی پھوجو طرف سے تقریبا دو لاکھ تملو کا بے رحمی سے سپھايا کیا گیا ہے لیکن بھارت کی حکومت یا بھارت کے تمام وہ تنظیمیں جو پاکستان یا بنگلہ دیش میں ہونے والی بھارت مخالف یا ہندو مخالف ہر واقعہ پر چيكھنے چلانے لگتے ہیں کچھ نہیں بولے بالکل خاموش رہے جیسے سری لنکا میں تملو کا مارا جانا کوئی مسئلہ ہی نہ ہو. یہ وہی لوگ ہیں جو اپنے کو راشٹروادی اور هندوادي کہتے نہیں تھكتے ہیں. ان قوم تملو کی درد کو اپنی درد نہیں سمجھتا ہے اور نہ ہی انہیں ہندو مانتا ہے، اس پر بھی یہ امید کرتے ہیں کہ شمال سے جنوب اور مشرق سے مغرب سارا ملک قوم پر ان کے نجريے کو ہی صحیح مان لیں.
 ہم ہندو یا تامل ہونے کی حیثیت سے نہیں بلکہ ان کے انسان ہونے کی حیثیت سے سری لنکا کی فوج کی طرف سے کیے گئے قتل عام کی سيكت ​​راشٹ متحدہ کی منصفانہ جچ کی مانگ کرتے ہیں اور مجرم سری لنکا کی فوج افسروں اور سیاست دانوں پر انتراشٹيي عدالت میں مقدمہ چلا کر سخت سزا دیئے جانے کی مانگ کرتے ہے. اددھت قوم کے همايتيو کو سری لنکا کے اس بھیانک حب الوطنی سے سبق لینے کی ضرورت ہے.
      دنیا کا کوئی بھی ملک اپنے پڈوس میں اپنے ہی وشدھرو کے ایسے قتل عام کو چپ چاپ نہیں دیکھ سکتا ہے جیسے آج بھارت دیکھ رہا ہے. بھارت نے ہی مشرقی پاکستان میں بنگالیوں کے مظالم کو کہاں برداشت کیا تھا؟ اس نے اس زیادتی کے خلاف لڑکر ایک نئے ملک بنگلہ دیش کو پیدا ہونے میں مدد کی تھی. ہم سری لنکا کو تقسیم ہوتے نہیں دیکھنا چاہتے تھے اور اس لئے پربھاكرن کے علیحدگی پسند دہشت گردی کی کبھی حمایت بھی نہیں کی تھی لیکن پربھاكرن کی مرتي کے بعد وہاں سب کچھ آسان ہو جانا چاہئے تھا لیکن شيلكا کے سیاستدانوں نے پختگی کا ثبوت نہیں دیا اور كرورتا کا رویہ کر تملو کو نراديتا سے مارا ہے. تملو کی جائز مطالبات کو سهانوبھوت پوروك سنا اور مانا جانا چاہئے. تامل سری لنکا میں بہت بڑی آبادی ہیں وہ کم بھی ہوتے تب بھی ان کے بنیادی حقوق کا احترام کیا جانا چاہئے. صرف اس خوف سے کہ کہیں سری لنکا چین کی گود میں نہ بیٹھ جائے بھارت تملو کا قتل عام چپ چاپ دیکھتا رہے یہ کسی بھی طرح مناسب نہیں ہے. جب پاکستان کو ناگوار حرکتوں کے لئے کھیل اور دیگر سرگرمیوں پر پابندی لگا کر چےتايا جا سکتا ہے تو سری لنکا کو بھی سخت پیغام دینے کی ضرورت ہے. اگر ہم ایسا نہیں کرتے ہیں اور پھر بھی دنیا کی ایٹمی سپر پاور اور ويٹو پاور کا فطری حق مانے جانے کی غلط فہمی پالے رہتے ہیں تو یہ مضحکہ خیز ہی ہوگا.





0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें