मित्र का कहना है -'एम एल ए की गिरफ़्तारी फिर नहीं हुई आज ..... पुलिस को मारा था शायद .... वैसे आप न डरे आपकी सुरक्षा सुनिश्चित है पुलिस है आपके साथ है.'
कैसे न डरें जी ? जब भी मेरा बोस मुझे डांटता है तब अगर मामला पता करो तो यही पता चलता है कि आज उन्हें उनके बोस ने डांटा था .आगे पता करो तो बोस के बोस को उनके बोस ने, उनको उनके बोस ने डांटा है और ये सिलसिला राजधानी तक जाता है .यह भी पता चला है कि राजधानी वाले बोस को उनके मंत्री ने और मत्री को मुख्यमंत्री ने डांटा है .उससे भी आगे यह सिलसिला जाता होगा, मैंने कौन सा सारी दुनिया देखी है.लेकिन इतना पक्का है कि अगर मेरे बोस खुश हैं तो मेरा दिन भी ठीक गुजरता है और अगर उनका मूड ठीक नहीं है तो फिर मुझे डांट खानी ही है .अब मैं तो किसी को डांट नहीं सकता हूँ. एकाध बार चपरासी को डांटने की कौशिश की तो उसने ऐसा पलटकर जबाब दिया कि मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी. कई दिनों तक चपरासी की दुआ सलाम बंद रही, पानी का गिलास भी खुद लेकर पीना पड़ा .ऐसे में कोई मिलने वाला दप्तर आ जाए तो चपरासी साहब भरे बाजार नंगा करने को तैयार बैठे मिलते हैं. अब बस मुंह लटकाए घर आते हैं और बिना बात पत्नी पर बरस पड़ते हैं. पत्नी जी भी डांट कहाँ अपने पास रखती हैं वो बच्चों पर टूट पड़ती हैं और बच्चे बड़े से छोटे की और प्रसाद बाँटते चलते हैं .ले देकर कोई मासूम बच्ची बचती है जिसे सारा कुछ झेलना पड़ता है.फिर बात वही अब के जन्म मोहे बिटिया न कीजो .
जनाब आप समझ सकते हैं कि आफत कहाँ से कहाँ तक पहुंचती है ? इंस्पेक्टर साहब की नेताजी ने धुनाई की है, वो भी लोकतंत्र के मंदिर में .अब मंदिर से जो प्रसाद मिला है वो सारा अपने पास तो रखेंगें नहीं वो नीचे वालों में बंटेगा ,सड़क चलतों में बंटेगा. मुझे भी मिल सकता है .मैं इसीलिए चिंतित हूँ क्यूंकि प्रसाद मुझे जरूर मिलता है .घर के पास में मंदिर है. मैं कभी मंदिर जाता नहीं हूँ .फिर भी पुजारी जी मुझे देखते ही आवाज लगाकर प्रसाद दे देते हैं उनका संकल्प है कि इससे मंदिर में माथा रागडवाकर रहूँगा.और मेरासंकल्प है कि मैं मंदिर की तरफ पैर करके भी नहीं सोऊंगा.
इसलिए मेरी फ़िक्र है कि इन्सपेक्टर साहब जब राजधानी से वापिस आयें तो उनकी और दूसरे पुलिस वालों की कहरे नजर से खुद को कैसे सुरक्षित रखूं ? साहब बहुत दिनों से मुझे जिला बदर करने की फिराक में हैं. ऐसा करता हूँ कि कुछ दिनों के लिए खुद ही जिला बदर हो जाता हूँ. जब तब तक प्रसाद बंटेगा बंदा कहीं और बसर करेगा. खुद हाफिज .
دوست کا کہنا ہے - 'ایم ایل اے کی گرفتاری پھر نہیں ہوئی آج ..... پولیس کو مارا تھا شاید .... ویسے آپ نہ ڈرے آپ کی سلامتی یقینی ہے پولیس ہے آپ کے ساتھ ہے. '
کیسے نہ ڈرے جی؟ جب بھی میرا بوس مجھے ڈاٹتا ہے تب اگر معاملہ پتہ کرو تو یہی پتہ چلتا ہے کہ آج انہیں ان کے بوس نے ڈاٹا تھا. آگے پتہ کرو تو بوس کے بوس کو ان کے بوس نے، ان کو ان کے بوس نے ڈاٹا ہے اور یہ سلسلہ دارالحکومت تک جاتا ہے. یہ بھی پتہ چلا ہے کہ دارالحکومت والے بوس کو ان کے وزیر نے اور متري کو وزیر اعلی نے ڈاٹا ہے. اس سے بھی آگے یہ سلسلہ جاتا ہوگا، میں نے کون سا ساری دنیا دیکھی ہے. لیکن اتنا یقین ہے کہ اگر میرے بوس خوش ہیں تو میرا دن بھی ٹھیک رونما ہوتی ہے اور اگر ان کا موڈ ٹھیک نہیں ہے تو پھر مجھے ڈانٹ کھانی ہی ہے. اب میں تو کسی کو ڈانٹ نہیں سکتا ہوں. ایک آدھ بار چپراسی کو ڈاٹنے کی كوشش کی تو اس نے ایسا پلٹکر جواب دیا کہ میری سٹٹي پٹٹي گم ہو گئی. کئی دنوں تک چپراسی کی دعا سلام بند رہی، پانی کا گلاس بھی خود لے کر پینا پڑا. ایسے میں کوئی ملنے والا دپتر آ جائے تو چپراسی صاحب بھرے بازار ننگا کرنے کو تیار بیٹھے ملتے ہیں. اب بس منہ لٹكاے گھر آتے ہیں اور بغیر بات بیوی پر برس پڑتے ہیں. بیوی جی بھی ڈانٹ کہاں اپنے پاس رکھتی ہے وہ بچوں پر ٹوٹ پڑتی ہیں اور بچے بڑے سے چھوٹے کی اور پرساد باٹتے چلتے ہیں. لے دے کر کوئی معصوم بچی بچتی ہے جسے سارا کچھ برداشت کرنا پڑتا ہے. پھر بات وہی اب کے پیدائش موهے بٹیا نہ كيجو.
جناب آپ سمجھ سکتے ہیں کہ آفت کہاں سے کہاں تک پہنچ جاتی ہے؟ انسپکٹر صاحب کی نیتا جی نے دھنائی کی ہے، وہ بھی جمہوریت کے مندر میں. اب مندر سے جو پرساد ملا ہے وہ سارا اپنے پاس تو ركھےگے نہیں وہ نیچے والوں میں بٹےگا، سڑک چلتو میں بٹےگا. مجھے بھی مل سکتا ہے. میں اس لئے پریشان ہوں کیونکہ پرساد مجھے ضرور ملتا ہے. گھر کے پاس میں مندر ہے. میں کبھی مندر جاتا نہیں ہوں. پھر بھی پجاری جی مجھے دیکھتے ہی آواز لگا کر پرساد دے دیتے ہیں ان کا عزم ہے کہ اس مندر میں ماتھا راگڈواكر رہونگا. اور مےراسكلپ ہے کہ میں مندر کی طرف پیر کرکے بھی نہیں سواوںگا.
اس لئے میری فکر ہے کہ انسپےكٹر صاحب جب دارالحکومت سے واپس آئیں تو ان کی اور دوسرے پولیس والوں کی كهرے نظر سے خود کو کیسے محفوظ رکھوں؟ صاحب بہت دنوں سے مجھے ضلع بدر کرنے کی فراق میں ہیں. ایسا کرتا ہوں کہ کچھ دنوں کے لئے خود ہی ضلع بدر ہو جاتا ہوں. جب تب تک پرساد بٹےگا بندہ کہیں اور بسر کرے گا. خود حافظ.

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