महिला मुक्ति ! महिला सशक्तिकरण ! महिलाओं की सामाजिक , आर्थिक , वैचारिक और शारीरिक स्वतंत्रता !
कुछ महिला मित्रों और कुछ महिला प्रेमी पुरुष मित्रों के आग्रह पर मैंने इस विषय पर लिखने की कोशीश की है। विषय बहुत ही विस्तृत और उलझा हुआ सा है, मेरे दिमाघ में (और समाज में भी ) इसलिए थोडा थोडा लिखूंगा और थोडा थोडा ही प्रस्तुत भी करूंगा आपके समक्ष :
भाग - 1
स्त्री मुक्ति का संछिप्त इतिहास ::
भारत में महिलाओं की स्वतंत्रता के हनन का इतिहास उतना ही पुराना है जितने वेद और पुराण . सबसे पहला सवाल तो यह उठाना चाहिए की जब वर्ण व्यवस्था का निर्धारण हुआ तो पाचवा वर्ण महिल का क्यों नहीं हुआ। क्या बस पुरुषों के ही वर्ण चलेंगे? शायद उस समय सर्कार ने महिला सशक्तिकरण के लिए कोई विभाग न बनाया होगा और महिला को अपने इस अधिकार के बारे में सही समय पर जानकारी न मिल पाई हो , खैर अब इस सवाल का कोई औचित्य भी नहीं रहा काफी देर हो चुकी है ।
इतिहास और इतिहासकारों सच्चा ही मानें तो, अशोक के समय में स्त्रियों को काफी स्वतंत्रता प्राप्त थी, यानी करीब 278 इसा पूर्व। अशोक ने स्वयं अपनी पुत्री संघमित्रा को फ़ोरेन स्टडीज के लिए भेजा था। और उस समय कलिंग की राजकुमारी (करीना कपूर) ने भी अपनी स्वतंत्रता का पूर्ण परिचय दिया था। वैसे अशोक की खुद चार बीवियां थीं लेकिन यह उसका अपना पारिवारिक मेटर हैं, हम आगे बढ़ते हैं।
अब आजाते हैं 400 इसवी गुप्त साम्राज्य का दौर जहाँ पहला प्रमाण मिला जौहर प्रथा का जो बाद में सती प्रथा हुई और 1829 ईस्वी में मुए अंग्रेजो ने इसे भी ख़त्म कर दिया। इतिहास में अगर औरतों की आज़ादी की बात करें तो भारत पर मुस्लिम शासन पढना बहुत ही आवश्यक है . रज़िया सुल्ताना, नूर जहाँ, मुमताज़ महल, बेगम हज़रात महल , जोधाबाई इतनी स्त्रियों का नाम शायद और किसी काल में इतिहास करों को याद भी न हो। और सबसे स्वतंत्र स्त्री उस काल की अनारकली बताई जाती हैं। लिरिक्स राइटर "समीर" की मानें तो वोह डिस्को वगैरा का भी शौक रखती थीं । वैसे इसका ऐतिहासिक प्रमाण संदिग्ध है।
अब जब 1757 में अंग्रेजो ने भारत में कदम रखा तब जाकर भारतीय महिला की आँख खुली। गोरियों का रहन सहन, चाल चलन , खान पान, वेश भूषा, उठाना बैठना इन्होने नज़दीक से देखा। और अपने पतियों की अगाध श्रद्धा भी देखि इस गोरी और स्वछन्द सुन्दरता में। अब भारतीय स्त्री को भी स्वतंत्रता का सही अर्थ समझ में आने लगा था। यहाँ से शुरुआत मान सकते हैं पुरातन स्त्री सशक्क्तिकरण युग की। यह युग भारत में पुनर्जागरण काल, सती प्रथा का अंत , विधवा विवाह, बाल विवाह का अंत का सफ़र तये करता हुआ आया भारत की कथित स्वतंत्रता 1947 तक। इस बीच रजा राम मोहन राइ, ऐनी बेसेंट, विवेकानंद, मोउन्त्बेतेन, महात्मा गाँधी और खास करके नेहरु जी ने बारी बारी से औरतो के उद्धार के लिए कई सार्थक क़दम उठाये। औरतों ने अपनी स्वतंत्रता में इस काल में कम ही क़दम उठाये, क्युकी वोह बेचारी आजाद नहीं हो पाई थीं पूरी तरह।
अब आता है महिला स्वतंत्रता का आधुनिक काल जो 1947 से प्राम्भ होता है और 2012 तक जाता है।( 2012 के बाद से पुरुष स्वतंत्रता की बहस छिड़ चुकी थी)
इस काल में महिला मुक्ति की आंधी आगई, स्वतंत्रता की परिभाषा छोटी जान पड़ने लगी। बुद्धिजीवियों और विद्वानों ने बहुत सरे सम्मलेन किये स्त्री स्वतंत्रता को परिभाषित करने के लिए , लेकिन हर 5 साल बाद सरकारी भ्रष्टाचार की तरह स्वतंत्रता व्यापक होती जारही थी। अब यह स्वतंत्रता न ही शब्दों में समां रही थी न ही वस्त्रो में। भारत में स्त्रीमुक्ति का आधुनिक काल शुरू हो चूका था।
भारत में महिला मुक्ति के इस आधुनिक काल का श्रेय इतिहास से वर्तमान तक की बहुत सी समाज सेविकाओ को जाता है। जिनकी सूची जीनत अमान से शुरू होकर सनी लीओन तक जाती है। इन महिलाओं ने मानसिक, आर्थिक, शारीरक और बौद्धिक स्वतंत्रता के नए आयाम स्थापित किये , ऐसा भारत के इतिहास में कभी नहीं हुआ था। विश्व पटल पर भारतीय महिला मुक्ति प्रकाश पुंज की भांति प्रदीप्त हो गयी थी। विश्व का ध्यान इस ओर जाना निश्चित था।1994 में भारत की महिला को महिला मुक्ति के सबसे बड़े सम्मान से नवाज़ा गया, यह भारतीय महिला इतिहास का स्वर्णिम युग था, जिसे लेने भारत ने तत्कालीन वर्ष्ठ्तम महिला मुक्ति कार्यकर्ता सुष्मिता सेन को भेजा । इसके बाद तो जैसे पुरुस्कारों की झड़ी ही लग गयी ऐश्वर्य राइ , लारा दत्त , युक्ता मुखी, डायना हेडेन , प्रियंका चोप्डा सारी महिला मुक्ति कार्यकर्ता इस स्वतंत्रता के नवयुग के हवनकुंड में कूद पड़ी।
विश्व पटल पर भारतीय महिला अपनी छाप उकेर चुकी थी, विकसित विश्व ने अर्ध विकसित से इस देश में महिला उत्पादों को भेजना शुरू कर दिया, अम्बार लगा दिया ... कपडे, सौन्दर्य प्रसाधन, स्वास्थ्य , शिक्षा और पता नहीं क्या क्या । व्यापर कि दृष्टि से नहीं बल्कि महिला कल्याण के लिए, ताकि भारत भी विकसित देशो की श्रेणी में आसके . भारत ने भी कृतध्न होकर विश्व के लिए अपने सरे द्वार खोल दिए।
तभी आगई सूचना क्रांति ...... रेडियो की जगह टेलीविज़न और इन्टरनेट आगया। स्त्री स्वंतंत्र होने के साथ विज़िबल भी हो चुकी थी इन नए माध्यमो पर।
यह था इस लेख का पहला हिस्सा। आशा करता हूँ पसंद आएगा , बहुत सी बातें बुरी भी लगेंगी। कहागया है न " सत्य हमेशा शिव हो यह तो संभव है किन्तु सुंदर भी हो यह आवश्यक नहीं".
"स्त्री मुक्ति" या "भारत में स्त्रियों की दशा" यह व्यंग का विषय है ही नहीं बहुत ही गंभीर समस्या है। और मैं भी इस गंभीरता से भली भांति परिचित हूँ। जैसे जैसे यह लेख आगे बढेगा व्यंग के माध्यम से ही उन बिन्दुओं पर भी प्रकाश डालेगा जिसकी समाज द्वारा अनदेखी महिलाओ की दुर्दशा का भविष्य में भयंकर कारन बन सकती है। लेख को थोडा संयम और थोड़े समझदारी से पढ़ें, उतावलापन ठीक नहीं। - धन्यवाद्
-हैदर अब्बास

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