रविवार, 3 मार्च 2013

आग का मंजर



जो जख्म दे रहा है वो खंजर नहीं दिखता
पांवों के तले आग का मंजर नहीं दिखता.

तू  देख  रहा  खूब  सियासत  की  बुलंदी
आँखों में आँसुओं का समंदर नहीं दिखता .

बाहर से तो लगता बहुत मजबूत है ये शख्श
लेकिन हमें मजबूत ये अन्दर नहीं दिखता .


बन्दर है यहाँ तीन, गलत काम हजारों,
गाँधी का यहाँ और क्यूँ बन्दर नहीं दिखता .


है जिसके दिल ओ जहन में घर कॉंच का अपना
उसके कभी भी हाथ में पत्थर नहीं दिखता




جو زخم دے رہا ہے وہ كھجر نہیں لگتا
پاوں کے تلے آگ کا منظر نہیں دکھائی دیتا.

تو دیکھ رہا خوب سیاست کی بلندی
آنکھوں میں آنسوؤں کا سمندر نہیں دکھائی دیتا.

باہر سے تو لگتا بہت مضبوط ہے یہ شكھش
لیکن ہمیں مضبوط یہ اندر نہیں دکھائی دیتا.


بندر ہیں یہ یہاں تین غلط کام ہزاروں
گاندھی کا یہاں اور کیوں بندر نہیں لگتا



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