रविवार, 14 अप्रैल 2013

बंदरों की साथिन 'मेरीना'


साभार -मेरी बिटिया .कॉम 

5 साल तक जंगलों में बंदरों के साथ रही है मेरीना

भेडि़या-मानव रामू से आगे की कहानी है कोलंबिया की मेरीना

: आज भी है अपने बंदर-अभिभावकों के प्रति आभार :: मानव-तस्करों ने अपहरण किया था मेरीना का : आज भी पेड़ों पर छलांग लगा देती है वानर-कन्‍या : बंदर न होते तो जंगली जानवरों का निवाला बन जाती :















               क्या आप कपोल-कल्पना और कहानी से अलग एक बच्ची की कहानी सुनना चाहेंगे जिसकी जान बंदरों ने बचायी, बल्कि पूरे पांच-छह साल तक उसको अपने सीने से लिपटाया। और इतना ही नहीं, उन्होंने इस मासूम बच्ची को पाला और पोसा भी। इन बंदरों ने ही उसे अपने ही तरह छलांगें लगाना सिखाया, पेड़ पर लपक कर चढ़ना सिखाया और अपने जैसे ही तरह खाना-पीना तक सिखा दिया। और तो और, अगर इन बंदरों ने उसे गंभीर पेट दर्द से निजात पाने का तरीका नहीं सिखाया होता, तो यह बच्ची बचपन में ही दम तोड़ चुकी होती। इतने बरसों तक जंगलों में बंदरों के साथ रहने के बाद वह किसी तरह अपनी इंसानी बस्ती तक लौट गयी, मगर पूरी दुनिया को जंगल और खासकर बंदरों का गुणगान कर रही है। कभी अबोध रही यह बच्ची आज कई बच्चों की नानी-दादी बन चुकी है। लेकिन आज भी यह महिला अपनी जान बचाने वाले अभिभावक बंदरों के वंशजों के प्रति आभारी है।
हालांकि करीब 50 बरस पहले भारत में एक भेडि़या-मानव की खबर आयी थी। यह एक इंसान बच्चा था, जिसका नाम रामू रख दिया गया था। इस कहानी के मुताबिक यह बच्चा  अचानक जंगल में जंगली जानवरों में फंस गया लेकिन भेडि़यों की एक टोली उनके पास पहुंच गयी। इस टोली ने रामू को पाला और उसे अपने ही तरह मुकम्मल भेडि़या बना डाला था। लेकिन यदि टोली उसे भेडिय़ा नहीं बनाती तो बाकी जंगली जानवर उसे न जाने कब के मार डाल चुके होते।
लेकिन इस भेडि़या-मानव से बिलकुल अलग, यह कहानी है मरीना की। कोलम्बिया की रहने वाली मरीना को करीब 55 साल पहले कुछ अपहर्ताओं ने पकड़ लिया था। दरअसल, यह लोग बच्चों को पकड़ने और उन्हें बेचने का धंधा चलाते थे। मामला था शायद बदले में उसके पिता से भारी फिरौती हासिल करना। मरीना उस समय शायद 4 साल ही रही होगी जब उसके अपहरणकर्ताओं ने उसे दबोचा। यह लोग दक्षिण अमेरिका के वर्षावन से गुजर रहे थे कि जिस ट्रक में मेरीना समेत कई अन्यद बेहोश बच्चों को ले जाया जा रहा था, उसमें मेरीना अचानक ट्रक से नीचे गिर गयी थी। मेरीना को हल्का याद है कि उस समय बाकी बच्चे तो बेहोश थे, जबकि मेरीना को होश आ गया था और उसे चक्कर आ रहे थे। उधर उनके अपहर्ताओं को यह पता ही नहीं चल पाया कि मेरीना ट्रक से नीचे गिर गयी है।
अपने संस्मरण में मेरीना ने बताया कि उसे कोलम्बिया वाले घर से कुछ लोगों ने बेहद भद्दी दवा सुंघा कर बेहोश कर दिया था। बाद में जब उसे होश आया तो वह पायी कि वह ट्रक से गिर चुकी है और अब पूरी तरह अकेली है और केवल कुछ बंदरों का झुंड उसे घूर रहे थे। मेरीना को उस घटना की बहुत हल्की-हल्की याद है कि वह बुरी तरह रो रही थी और बंदरों की टोली के कुछ बंदर उसे छूने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन मेरीना उनसे बचने के लिए खुद में ही सिमटती जा रही थी। 

किसी काबिल डॉक्टर की तरह बंदरों ने मेरीना को बचाया

      

बंदरों की बोली-भाषा और भाव-व्यवहार को खूब जानती है मेरीना


















               केले और अंजीर के गुच्छे देकर आत्मीयता का प्रदर्शन करते रहे बंदर : खूंख्वार जानवरों से बचाने के लिए बंदरों ने मेरीना को जबरिया पेड़ पर खींचा : बंदरों की पूरी टोली मेरीना की हिचक दूर करने में जुटी थी :
( गतांक-1 से आगे ) मेरीना ने बताया कि अचानक एक झबरे भूरे बंदर ने उसे हल्का धक्का देकर लुढ़का दिया। लगा जैसे शायद उसकी रूचि उसमें नहीं थी। धक्का देने के बाद यह बंदर वहां से थोड़ा दूर हट गया। और इसके बाद बाकी बंदरों ने उसे मुआयना की चीज बना डाली। कोई उसे छू रहा था तो कोई उसे अपनी ओर खींच रहा था। शायद वे सब के सब बंदर मिल कर मेरीना का निरीक्षण करना चाहते थे। लेकिन किसी ने भी मुझे प्रताडि़त नहीं किया। मेरीना बताती हैं कि जिस तरह से वे सब एक-दूसरे के साथ उसे आनंद ले रहे थे, वह एक परिवार की तरह का ही माहौल था। जाहिर है कि सबने मेरीना को अपने परिवार की तरह ही महसूस किया। मेरीना बताती हैं कि वह भी बंदरों के साथ खुश महसूस किया और लगा कि वह भी धीरे-धीरे उन्हीं बंदरों में से एक की तरह ही बदल गयी।
मेरीना को याद ही नहीं है कि कैसे ही उसने उनकी बोली-भाषा सीखी। कैसे उनके भाव-व्यवहार को समझा और अपनाया और कैसे पेड़ों पर चढ़ने-छलांगें लगानी शुरू कर दी। बंदरों ने ही उसे अपना भोजन सीखना और खाना सिखाया और यह तक बताया कि बीमारी या संकट वगैरह में कैसे निपटाया जाए। उसे याद है कि एक दिन जब उसके पेट में बहुत तेज मरोड़ शुरू हुई थी, तो वह दर्द के चलते बुरी तरह रो रही थी। उस समय उसकी हालत को बंदरों ने फौरन समझ लिया था और फिर एक बंदर उसे लेकर एक तालाब में लेकर गया। बंदर ने बार-बार मेरीना को इशारे से बताया कि यह पानी पी लो। हालांकि यह पानी थोड़ा गंदा और बदबूदार था, लेकिन मेरीना उस पानी को पिया। बाद में एक बंदर ने उन्हें  इमली दी और खाने का इशारा किया। कमाल की बात रही कि मैं बहुत जल्दी स्वस्थ‍ हो गयी।
अब तक यह लोग मेरीना को एक-दूसरे के पास खेल रहे थे। उसमें कुछ छेड़खानी भी थी और आनंद भी शामिल था। कुछ भी हो, आनंद की अनुभूति ज्यादा ही हो रही थी। अचानक एक बंदर ने उसे केले के गुच्छे दे दिये। जाहिर है कि मेरी रूचि और आंनद और बढ़ गया। उस बंदर की चीख डरावनी नहीं थी, बल्कि मातृत्व से ओतप्रोत थी। उसने मुझे अंजीर जैसे भी कई फल भी दिये। दरअसल, शायद यह लोग मुझे खिला-पिला कर मुझे अपनी ओर खींचना चाहते थे।
मेरीना बताती हैं कि शाम होने के आसपास इन बंदरों की हरकतें ज्यादा उतावली हो गयीं। शायद वे जंगली जानवरों से मुझे बचाने की कवायद को लेकर चिंतित थे। वे शायद चाहते थे कि मुझे किसी तरह से भी हो, मगर किसी ऊंचे पेड़ तक पहुंचा दिया जाए। जबकि मैं उनकी इस कवायद को समझ नहीं पा रही थी। बल्कि उससे चिढ़ रही थी। लेकिन आखिरकार यह बंदर मुझे एक पेड़ तक पहुंचाने पर सफल हो ही गये। और तीन दिनों के भीतर तो मैं उनके सहयोग से खुद ही पेड़ पर चढ़ने लगी।

इच्‍छुक हों तो meribitiyakhabar@gmail.com पर हम आपकी प्रतीक्षा कर रहे है.

बंदरों ने सिखाया जीवन व सौंदर्य। हां, हिंसा भी

युगांडा और नाइजीरिया में भी मिल चुका है बंदर-मानव

: मेरीना को शिकारी ने बचाया और वेश्या के हाथों बेचा : जन्म:तिथि का पता नहीं, लेकिन मां-पिता को खोज न पाने का गम : अब फिल्म बनाने वाली टोली के साथ कोलम्बिया जाएगी मेरीना :

















         बंदरों ने मेरीना को जंगल में जीवन और सौंदर्य के बारे में अच्छी तरह समझाया था। साथ ही साथ यही भी बता दिया था कि जंगल में केवल जीवन और सौंदर्य ही नहीं खिलता है, बल्कि यहां हिंसा और आतंक भी उससे ज्यादा होता है और उससे निपटने के लिए बचाव की रणनीतियां जरूरी होती हैं। केवल जंगल के दूसरे जानवरों के साथ ही नहीं, बल्कि अपनी बंदर जाति में भी खूंख्वार लोगों से भी। मेरीना को खूब याद है कि अचानक कैसे पहली बार उसने बंदर-घुसपैठियों को देखा। वे मारने पर आमादा था। चीखें इतनी कि डर के मारे मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी। वे अपने पंजों, दांतों के साथ ही साथ पेड़ की शाखाओं को तोड़कर उन्हें लाठियों की तरह इस्तेमाल कर रहे थे। यह काफी देर तक चला और तब तक मैं एक झाड़ी में ही छिपी रही। जब वे घुसपैठिये बंदर वापस भाग गये तो मैं बाहर निकली। मेरे साथ के बंदरों के चेहरे समेत पूरे शरीर पर खून ही खून था।
बाद में मेरीना को एक शिकारी ने बचाया था, लेकिन बाद में उसे बेच दिया गया। पता चला कि अब वह वेश्यावृत्ति के लिए इंग्लैंड भेजी गयी है। फिर कई मोड़ आये उसके जीवन में, आखिरकार एक चर्च अरगनिस्ट से शादी हुई। आज मेरीना तीन पोतों की दादी है और मेरीना अब मध्यम वर्ग के एक उपनगर ब्रैडफोर्ड में अपने पति जॉन के साथ रहती हैं। मेरीना को बिलकुल भी पता नहीं है कि उसकी जन्मतिथि क्या है। लेकिन उसे गम इस बात पर है कि उसके मां-पिता से वह कभी नहीं मिल सके। वह उनकी खोज तक नहीं कर पाये। हालांकि बाद में मैं जंगल में फिर गयी और आखिरकार उस मोटे तने वाले पेड़ पर बनी उस खोह को खोज लिया जहां पर मैंने पांच साल बिताये थे।
बहरहाल, अब नेशनल ज्योग्राफिक की योजना है कि मेरीना की जिन्दगी में एक फिल्म बनायी जाए। खास बात यह है कि मेरीना के मामले के कोई भी विशेषज्ञ उसके बयानों का विश्लेषण करने के बाद उसमें धोखाधड़ी या कोई कल्पना वगैरह का कोई भी प्रमाण नहीं पा सका है। कुछ भी हो, इस फिल्म को तैयार करने के लिए अब इस चैनल के लोग मेरीना के साथ जल्दी ही कोलम्बिया की ओर रवाना होंगे।
विशेषज्ञों का कहना है कि 1991 में एक छह वर्षीय युगांडा लड़का जॉन सेबन्या ने तीन साल तक जंगलों में बंदरों के साथ बिताया था। ऐसी ही एक अन्य घटना नाइजीरिया में सन 1996 को हुई जब एक दो साल के बच्चे बेलो को चिंपांजी ने जंगल में पाला।
साभार -मेरी बिटिया .कॉम 

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें