अभी नवरात्र के दिन गए हैं आठ दिन तक हमने खूब कन्याओं की पाँव पूजा की है लेकिन फिर इस देश में ऐसा क्यूँ होता है कि रामनवमी के दिन जब हम रामलला के जयकारे लगा रहें होते हैं एक छोटी बच्ची के साथ हैवानियत की हदें पार कर जाने वाला दुष्कर्म होता है .हमारे देश में ऐसे धर्म योद्धाओं की कमी नहीं है जिन्हें दूर किसी देश में किसी हिन्दू पर होने वाला जुल्म तुरन्त नजर आ जाता है .कुछ कथित शत्रु देशों में हिन्दू औरतें उन्हें हमेशा असुरक्षित और बेइज्जत नजर आती हैं लेकिन अपने पड़ोस में किसी बच्ची के साथ कैसा घ्रणितकामुक दुष्कृत्य हो रहा है उसे करने वाला कौन हैं ये उन्हें नहीं दिखाई देता है. ऐसे दुष्कर्मियों के खिलाफ वो उतना उग्र भी नहीं होते हैं जैसा विधर्मी या विदेशी के शामिल होने पर होते रहते हैं . हर वह घटना जो उनकी कुत्सित मानसिकता की खुराक न बनती हो उनके लिए सामान्य घटना है और हर वो घटना जो जरा भी उनकी साम्प्रदायिक राजनीति को खाद पानी देती है उनके लिए महत्वपूर्ण होती है . इंसानियत का तकाजा है इंसान को केवल इंसान की नजर से मापा जाए और हैवान को वो चाहे कोई भी हो कहीं भी हो बिना किसी भेद भाव के दुतकारा जाए .तो आईये हम सब हैवानियत के इस दुष्कर्म एक स्वर से निंदा करें.
आप सबके लिए एक अच्छी कविता भी है उसे पढ़िए और दर्द को महसूस कीजिये .
पांच साल की मासूम और हर लडकी के लिए .....
माँ बहुत डर लगता है
माँ मुझे डर लगता है...
बहुत डर लगता है...
सूरज की रौशनी आग सी लगती है
पानी की बूंदे तेजाब सी लगती हैं ...
माँ हवा में भी ज़हर सा घुला लगता है .
माँ मुझे छुपा लो बहुत डर लगता है।।।
माँ याद है वो काँच की गुडिया जो बचपन में
टूटी थी ...
माँ कुछ ऐसे ही आज मै टूट गयी हूँ ..
मेरी गलती कुछ भी ना थी
माँ फिर भी खुद से रूठ गयी हूँ ...
माँ बचपन में स्कूल टीचर की गन्दी नज़रों से
डर लगता था।।।
पड़ोस के चाचा के नापाक इरादों से डर
लगता था।।।
माँ वो नुक्कड़ के लड़कों की बेखौफ़ बातों सेडर लगता था।।
और अब बॉस के वहशी इशारों से डर लगता है।।
माँ मुझे छुपा लो बहुत डर लगता है।।।
माँ तुझे याद है तेरे आँगन में चिड़िया सी फुदक रही थी ..
ठोकर खा के मै जमीन पर गिर रही थी
दो बूँद खून की देख के माँ तू भीरो पड़ती थी
माँ तूने तो मुझे फूलों की तरह पला था
उन दरिंदों का आखिर मैंने क्या बिगाड़ा था क्यूँ वो मुझे इस तरह मसल कर चले गए
बेदर्द मेरी रूह को कुचल कर चले गए ..
माँ तू तो कहती थी की अपनी गुडिया को मै
दुल्हन बनाएगी
मेरे इस जीवन को खुशियों से सजाएगी।।
माँ क्या वो दिन जन्दगी कभी ना लाएगी ..
माँ क्या तेरे घर अब बारात न आएगी ...?
माँ खोया है जो मैंने क्या फिर से कभी न पाऊँगी...?
माँ सांस तो ले रही हूँ
क्या जिन्दगी जी पाऊँगी ...?
माँ घूरते हैं सब अलग ही नज़रों से ..
माँ मुझे उन नज़रों से छुपा ले
माँ बहुत डर लगता है मुझे आँचल में छुपाले
....मृणाल गुप्ता
ابھی نوراتری کے دن گئے ہیں آٹھ دن تک ہم نے خوب كنياو کی پاؤں کی عبادت کی ہے لیکن پھر اس ملک میں ایسا کیوں ہوتا ہے کہ رامنومي کے دن جب ہم رام للا کے جيكارے لگا رہیں ہیں ایک چھوٹی بچی کے ساتھ حیوانیت کی حدیں پار کر جانے والا جرم ہوتا ہے. ہمارے ملک میں ایسے مذہب یودقاوں کی کمی نہیں ہے جنہیں دور کسی ملک میں کسی ہندو پر ہونے والا ظلم کو فوری طور پر نظر آ جاتا ہے. کچھ مبینہ دشمن ممالک میں ہندو عورتیں ان کو ہمیشہ غیر محفوظ اور بےججت نظر آتی ہیں لیکن اپنے پڑوس میں کسی بچی کے ساتھ کیسا گھرتكامك دشكرتي ہو رہا ہے اسے کرنے والا کون ہیں یہ انہیں نہیں دکھائی دیتا ہے. ایسے دشكرميو کے خلاف وہ اتنا مشتعل بھی نہیں ہوتے ہیں جیسا ودرمی یا غیر ملکی کے شامل ہونے پر ہوتے رہتے ہیں. ہر وہ واقعہ جو ان کی كتست ذہنیت کی خوراک نہ بنتی ہو ان کے لئے عام واقعہ ہے اور ہر وہ واقعہ جو ذرا بھی ان فرقہ پرست سیاست کو کھاد پانی دیتی ہے ان کے لئے اہم ہوتی ہے. انسانیت کا تقاضہ ہے انسان کو صرف انسان کی نظر سے ماپا جائے اور حیوان کو وہ چاہے کوئی بھی ہو کہیں بھی ہو بغیر کسی امتیاز احساس کے دتكارا جائے. تو اييے ہم سب حیوانیت کے اس جرم ایک سر سے مذمت معذرت،


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