
पाकिस्तान का भी अजब हाल है .लोकतंत्र वहाँ सरपट दौड़ रहा है .इतना तेज कि उसके कभी भी धडाम से मुँह के बल गिर जाने का अंदेशा है .पहले वहाँ फ़ौज हकूमत करती थी फिर गुप्तचर एजेंसी आई एस आई की पकड़ बढ़ी, अब न्यायपालिका की धमक बढ़ गयी है .ये वही न्याय पालिका है जिसके चीप जस्टिस इफ्तिकार चौधरी को जनरल परवेज मुशर्रफ ने बर्खास्त कर दिया था.तब पाकिस्तान की जनता उनके फैसले के खिलाफ सडकों पर उतर आई थी .अपने पद पर वापसी के बाद चीप जस्टिस पाकिस्तान के बेलगाम नेताओं के नकेल डालने में जुट गए .उन्होंने वहाँ के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधान मंत्री को चैन से बैठने नहीं दिया .खैर जैसे तैसे करके पहली बार निर्वाचित सरकार ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया और अब कायदे से चुनाव हो रहें हैं .ऐसे में स्व निर्वासित जीवन बिता रहे जनरल परवेज मुशर्रफ ने सोचा अच्छा मौका है चुनाव के रास्ते पाकिस्तान की सियासत में आ जाएँ .इसलिए वो चुनाव लड़ने पाकिस्तान चले आये .लेकिन क़ानून के खुदाओं के ये कैसे मंजूर हो सकता था ? उनहोंने फटाफट उनका नामांकन अवैध बताकर खारिज कर दिया .मुशर्रफ कुछ और बबाल न खड़ा करें इससे बचने के लिए उन्हें उनके घर पर ही नजर बंद कर दिया गया है . पाकिस्तान कि न्याय पालिका कि यह तेजी कई सवाल खड़े करती है .यह फैसला जनता पर विश्वाश न करने के कारण है वरना अगर वहाँ की न्याय पालिका निष्पक्ष होती तो जनता को भी अपना फैसला सुनाने का मौका देती .ये कैसे हो सकता है कि एक बदनाम जनरल जनता से वोट माँगने जाए और वो चुनाव जीतकर आ जाए . ये क्या कम बड़ी बात थी कि एक जनरल वह भूतपूर्व ही क्यों न हो लोकतांत्रिक तरीके से चुने जाने के लिए जनता से वोट माँगने जा रहा है. ध्यान रहे पाकिस्तान में फ़ौज ही सबसे ज्यादा ताकतवर है .अब तक वही हकूमत करती रही है .अब अगर उसके कर्ताधर्ताओं के मन में यह बात बैठ गयी कि उन्हें लोकतांत्रिक तरीके से देश की राजनीति में हिस्सा लेने का मौका नहीं मिलेगा तो वह वह लोकशाही का तख्ता पलट देगी .उसके लिए यह करना बेहद आसान भी है और वाजिब भी हो जाएगा ..असल में अब तक पाकिस्तान में सब हुकूमत कर रहें हैं सेना भी ,गुप्तचर एजेंसी भी और न्याय पालिका भी .बस जिन्हें हुकूमत करनी चाहिए वही नहीं कर रहें हैं .राजनेता सेना का मुँह ताकतें हैं जनता के राज का तो सवाल ही नहीं है . पाकिस्तान हमारा पडोसी देश है और भारत के लिए वहाँ लोकतंत्र का मजबूत होना सबसे ज्यादा फायदेमंद है .क्योंकि एक जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार ही जनता की जरूरतों का सही तरीके से ख्याल कर सकती है वह भारत के साथ अनावश्यक युद्धोन्माद पैदा नहीं करेगी . क्योंकि पाकिस्तान की जनता हरगिज भारत से युद्ध नहीं चाहती है वो वैसे ही अपनी रोटी रोजी की फ़िक्र करती है जैसे हम करते हैं इसलिए पाकिस्तान में जनता की हुकूमत का होना बेहद जरूरी है.वहाँ की न्याय पालिका को चाहिए की वो जनता को स्वतंत्र रूप से मतदान करने दे और किसी भी तरह फ़ौज के हाथ में न खेले .

جمہوریت پر حاوی نيايتتر
پاکستان کا بھی عجب حال ہے. جمہوریت وہاں سرپٹ دوڑ رہا ہے. اتنا تیز کی اس کے کبھی بھی دھڈام سے منہ کے بل گر جانے کا اندیشہ ہے. پہلے وہاں فوج حکومت کرتی تھی پھر خفیہ ایجنسی آئی ایس آئی کی گرفت میں اضافہ ہوا، اب عدلیہ کی ساکھ بڑھ گئی ہے. یہ وہی عدلیہ ہے جس کے چيپ جسٹس اپھتكار چودھری کو جنرل پرویز مشرف نے برطرف کر دیا تھا. تب پاکستان کے عوام ان کے فیصلے کے خلاف سڑکوں پر اتر آئی تھی. اپنے عہدے پر واپسی کے بعد چيپ جسٹس پاکستان کے بے لگام لیڈروں کو پیدل کرنے میں لگ گئے. انہوں نے وہاں کے صدر آصف علی زرداری اور وزیر اعظم کو چین سے بیٹھنے نہیں دیا. خیر جیسے تیسے کر کے پہلی بار منتخب حکومت نے اپنا پانچ سال کی مدت مکمل کی اور اب قائد سے انتخابات ہو رہے ہیں. ایسے میں خود جلا وطن کی زندگی گزار رہے جنرل پرویز مشرف نے سوچا اچھا موقع ہے انتخابات کے راستے پاکستان کی سیاست میں آ جائیں. اس لیے وہ الیکشن لڑنے پاکستان چلے آئے. لیکن قانون کے كھداو کے یہ کس طرح منظور ہو سکتا تھا؟ انهونے پھٹاپھٹ انکا نامزدگی غیر قانونی بتا کر مسترد کر دیا. مشرف کچھ اور ببال نہ کھڑا کریں اس سے بچنے کے لئے انہیں ان کے گھر پر ہی نظر بند کر دیا گیا ہے. پاکستان کہ عدلیہ کہ یہ تیزی کئی سوال کھڑے کرتی ہے. یہ فیصلہ عوام پر وشواش نہ کرنے کی وجہ سے ہے ورنہ اگر وہاں کی عدلیہ منصفانہ ہوتی تو عوام کو بھی اپنا فیصلہ سنانے کا موقع دیتی. یہ کیسے ہو سکتا ہے کہ ایک بدنام جنرل عوام سے ووٹ مانگنے جائے اور وہ انتخابات جیت کر آ جائے. یہ کیا کم بڑی بات تھی کہ ایک جنرل وہ سابق ہی کیوں نہ ہو جمہوری طریقے سے منتخب ہونے کے لئے عوام سے ووٹ مانگنے جا رہا ہے. خیال رہے پاکستان میں فوج ہی سب سے زیادہ طاقتور ہے. اب تک وہی حکومت کرتی رہی ہے. اب اگر اس کے کرتا دھرتا کے دل میں یہ بات بیٹھ گئی کہ انہیں جمہوری طریقے سے ملک کی سیاست میں حصہ لینے کا موقع نہیں ملے گا تو وہ وہ لوكشاهي کا تختہ پلٹ دے گی. اس کے لئے یہ کرنا بہت آسان بھی ہے اور واجب بھی ہو جائے گا. اصل میں اب تک پاکستان میں سب حکومت کر رہے ہیں فوج بھی، خفیہ ایجنسی بھی اور عدلیہ بھی. بس جنہیں حکومت کرنی چاہئے وہی نہیں کر رہیں ہیں . سیاستدان فوج کا منہ طاقتیں ہیں عوام کے راج کا تو سوال ہی نہیں ہے. پاکستان ہمارا پڑوسی ملک ہے اور بھارت کے لئے وہاں جمہوریت کا مضبوط ہونا سب سے زیادہ فائدہ مند ہے کیونکہ ایک عوام کی طرف سے منتخب حکومت ہی عوام کی ضروریات کا صحیح طریقے سے خیال کر سکتی ہے وہ بھارت کے ساتھ غیر ضروری يددھونماد پیدا نہیں کرے گی. کیونکہ پاکستان کے عوام ہرگز بھارت سے جنگ نہیں چاہتی ہے وہ ویسے ہی اپنی روٹی روزی کی فکر کرتی ہے جیسے ہم کرتے ہیں اس لئے پاکستان میں عوام کی حکومت کا ہونا بے حد ضروری ہے. نواهان کی عدلیہ کو چاہئے کی وہ عوام کو آزادانہ طور پر مت صدقہ کرنے دے اور کسی بھی طرح فوج کے ہاتھ میں نہ کھیلے.
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें