तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो, आदमी के पक्ष में हो या फिर आदमखोर हो’ गजल-
कविता लिखने वाले प्रतिबद्ध जनकवि कवि बल्ली सिंह चीमा हिंदी में गजल को स्थापित करने वाले
दुष्यंत कुमार की अगली पीढ़ी के कवियों में शुमार किये जाते हैं. बल्ली सिंह ने जनवादी आंदोलन को
अपनी बेहतरीन रचनाएँ दी हैं.‘ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के, अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव
के’उनकी इस कविता को देश भर में बड़े उत्साह से गाया जाता है.बल्ली भाई हमारे दौर के सबसे लोकप्रिय
हिंदी कवियों में हैं.उनकी कविताएँ आलमारी की खूबसूरती नही बढाती,बल्कि जोर जुल्म की टक्कर में
सडको पर दो-दो हाथ करने के लिए हौसला देती है .
1
तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो ।
आदमी के पक्ष में हो या कि आदमखोर हो ।।
ख़ुद को पसीने में भिगोना ही नहीं है ज़िन्दगी,
रेंग कर मर-मर कर जीना ही नहीं है ज़िन्दगी,
कुछ करो कि ज़िन्दगी की डोर न कमज़ोर हो ।
तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो ।।
खोलो आँखें फँस न जाना तुम सुनहरे जाल में,
भेड़िए भी घूमते हैं आदमी की खाल में,
ज़िन्दगी का गीत हो या मौत का कोई शोर हो ।
तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो ।।
सूट और लंगोटियों के बीच युद्ध होगा ज़रूर,
झोपड़ों और कोठियों के बीच युद्ध होगा ज़रूर,
इससे पहले युद्ध शुरू हो, तय करो किस ओर हो ।
तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो ।।
तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो ।
आदमी के पक्ष में हो या कि आदमखोर हो ।।
2
रचनाकार: बल्ली सिंह चीमा
ख़ुद को पसीने में भिगोना ही नहीं है ज़िन्दगी,
रेंग कर मर-मर कर जीना ही नहीं है ज़िन्दगी,
कुछ करो कि ज़िन्दगी की डोर न कमज़ोर हो ।
तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो ।।
खोलो आँखें फँस न जाना तुम सुनहरे जाल में,
भेड़िए भी घूमते हैं आदमी की खाल में,
ज़िन्दगी का गीत हो या मौत का कोई शोर हो ।
तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो ।।
सूट और लंगोटियों के बीच युद्ध होगा ज़रूर,
झोपड़ों और कोठियों के बीच युद्ध होगा ज़रूर,
इससे पहले युद्ध शुरू हो, तय करो किस ओर हो ।
तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो ।।
तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो ।
आदमी के पक्ष में हो या कि आदमखोर हो ।।
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रचनाकार: बल्ली सिंह चीमा

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