मित्र ने कहा है कि 'मधुर' जी यही हाल रहा तो एक दिन चीन के हाथ शिवसेना वालोँ के साथ साथ लाल रंग के ठप्पे वालो के गिरेबान तक भी पहुँचेगेँ ।तब आपकी खटिया डोलेगी , और आपकी कलम कौन सी भाषा बोलेगी?'
मैं कहता हूँ हम वही भाषा बोलेंगें जो हमारे बाबा नागार्जुन बोलते थे.हम दोहरे आचरण वाले नहीं हैं, मातृभूमि के लिये शीश कटाने वालों में हम सबसे आगे होंगें। लो तुम भी जान लो बाबा नागार्जुन क्या लिखते हैं-
वे निकले जहरीले कीडे लाल कमल के,
तप्त लहु की धार बह चली तुहिनाचल से
हमने देखा रंग बर्फ का बदल रहा है,
शान्ति सुन्दरी का तो दम ही निकल रहा है.
जी करता है सीखूं मैं बन्दूक चलाना,
जी करता है सीखूँ मैं फौलाद गलाना,
जी करता है जनगण में भडका दूँ शोले,
जी करता है नेफा पहचॅू दागूँ गोले,
विश्व शान्ति की घायल देवी चीख रही है,
सर्वनाश की डायन हॅंसती दीख रही है,
दुनिया की छत पर टपकी है लार दनुज की,
पंचशील से बिदक गयी चेतना मनुज की,
सीमाओं पर लहराया भारत का यौवन,
छलक गया है लहु शर्म से पिघला कंचन,
दीप शिखा सी कोटि कोटि मन की इच्छायें,
मचल उठी हैं सेनापति का इंगित पायें,
लो निकले जहरीले कीडे लाल कमल के,
तप्त लहु की धार बह चली तुहिनाचल से।
- नागार्जुन

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