टी वी पर न्यूज चैनल के एकंरों का अजब हाल है .वे हर पार्टी के नेता को घेर घोट कर पूछ रहें हैं कि आप मोदी का मुकाबला कैसे करेंगें ? आपका नेता कौन होगा ? आप किसे प्रधान मंत्री का उम्मीदवार बना रहें हैं ? संघीय मोर्चा बनाने के कौशिश में जुटे क्षेत्रीय दलों के नेताओं से भी उन्होंने यही सवाल पूछना शुरू कर दिया है . क्षेत्रीय नेताओं द्वारा इस बात पर जोर देने के बावजूद की वो अपने जायज हकों की मांग को बल देने के लिए इकठ्ठा हो रहें हैं उनसे यही सवाल किया जा रहा है कि यदि मोदी जी कह दें कि वो आपके हित पूरा करेंगे तो क्या आप उनके साथ चले जायेंगे ?
ये बौद्धिक सूरमा कितना उतावलापन दिखा रहें हैं. कोई इनसे पूछे कि क्या मोदी की पार्टी ने मोदी को पी एम् पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है? और क्या आपने यह मान लिया है कि भाजपा ही सरकार बनाने वाली है ? मोदी को न तो उनकी पार्टी पी एम् बना रही है और न जनता बनाने वाली है. मोदी को पी एम् न्यूज चैनल बना रहें हैं. और उनका प्रचार तंत्र बना रहा है. जनता का फैसला आने दीजिये.आप सबको पता चल जाएगा कि मोदी की पी एम् पद की चाह इतनी ही दूर है जितनी दूर लालकृष्ण आडवानी से पी एम् पद रहा है .
रही संघीय मोर्चे के नेता होने की बात या उसके पी एम् पद के उम्मीदवार का सवाल. इस बारें में क्यूँ कोई जबाब दिया जाए ? क्या यह जरूरी है कि किसी एक नेता का मुखौटा लगाकर संघीय मोर्चा चुनाव लड़े?. ये संघीय मोर्चा है उसके लिए सबसे अच्छा यही होगा की वह सभी क्षेत्रीय दलों के बड़े प्रतिनिधि नेताओं को लेकर मोर्चे का एक अध्यक्ष मंडल बनाए जो चुनाव अभियान सनिती और न्यूनतम कार्यक्रम समिति का भी काम करे . ये सामूहिक रूप से अपने उम्मीदवारों के लिए जनता से वोट मांगें और चुनाव के बाद विजयी उम्मीदवारों की एक बैठक कर अपना नेता चुन लें . अगर संघीय मोर्चे की सरकार बनाने की स्थिति आती है तो वह इस निर्वाचित नेता के नेतृत्व में सरकार बनाए अन्यथा अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम को लागू कराने के लिए रणनीति लागो करे . लेकिन हम न तो संघीय शासन के स्वरुप को समझते हैं और न ही लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं .हम दिकावे के लोकतंत्र में जी रहें हैं जहाँ दलों पर व्यक्तिवाद और परिवारवाद हावी है. वोटर भी सामंत पूजा की मानसिकता से ग्रस्त है .इसलिए बार बार चुनाव से पहले प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की बात की ज़ाती है .अरे भाई हम राष्ट्रपति प्रणाली नहीं संसदीय प्रणाली अपनाए हैं जहाँ चुने हुए संसद ही प्रधान मंत्री चुनते हैं अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव कि तरह आम मतदाता नहीं चुनता है . किसी पार्टी के लिए अपने नेता का नाम बताकर वोट माँगने से ज्यादा जरूरी है कि वो अपना क्रायक्रम बताकर वोट मांगे ,नेता निर्वाचित पार्टी सांसद चुनेगे,जो बनेगा वो बनेगा.और जो नेता बनेगा उसे पार्टी या गठबंधन का कार्यक्रम लागू करना ही पड़ेगा .इसलिए नेता के चुनाव पर इतना जोर देने का क्या औचित्य है ? ये लोकतंत्र को मजबूत करने का नहीं तानाशाही को आमंत्रित करने का काम है .

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