शुक्रवार, 14 जून 2013

बेचारा सिन्धी - 'यम यम ओ हो ओ यम यम'


बेचारा सिन्धी - 'यम यम ओ हो ओ यम यम'          
राजस्थानी सिन्धी समाज ने लाल कृष्ण आडवानी के समर्थन में प्रदर्शन किया है .उन्होंने ललकारा है 'लाल कृष्ण  आडवानी का अपमान नहीं सहेगें, नहीं सहेगें' .'आडवानी तुम संधर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं.'
 ये वही लोग हैं जो भारत विभाजन के समय संघर्ष करते करते सिंध से भारत आ गए या पूर्व से यहाँ बसे थे. विडंबना देखिये कि जो आडवानी अपने जन्मस्थान सिंध को छोड़कर यहाँ आये उन्हें आज यहाँ ये दिन देखना पड़ रहा है कि उनकी उम्र भर की काली कमाई उनके चेले लिए जा रहें हैं और वो टुकुर टुकुर देखने के अलावा कुछ नहीं कर सकते हैं .यूँ कहा जा रहा है सब कुछ तुम्हारा है बस कोठी कुठले के हाथ मत लगाना. बीमार हो गए तो चेले ढोरों के डाक्टर के पास पहुँच गए.डाक्टर बोला मैं इसकी बीमारी अच्छी तरह समझता हूँ.बस थोडा  सोटा फटकारना होगा, देखना घोडा सरपट दोडेगा. बीमारी पूरी तरह ठीक हुई कि नहीं हुई ये तो न मरीज ने बताया और न डाक्टर ने लेकिन चेले कह रहें हैं अब सब ठीक ठाक है.
    सिन्धी समाज के उनके भाईओं को यह बर्दाश्त नहीं हो रहा है कि हमारे प्रमुख को जबरदस्ती धकिया जाए .अब भला धक्के खाते खाते तो सिंध से यहाँ तक आ गए अब जाएँ तो कहाँ जाएँ ?कहते हैं कि हमने भारत को क्या क्या नहीं दिया ? तुम्हें सिन्धु से हिन्दू नाम दे दिया[ इससे पहले तुम्हारे दस नाम थे ], झूलेलाल की जयन्ती दे दी[ बताओ पहले कौन झूलेलाल को जानता था ? वैसे जानता तो अब भी कोई नहीं है लेकिन इसके नाम पे एक छुट्टी तो मिलती ही है ], सिन्धु दर्शन का उत्सव दे दिया [ हम न रहे तो कौन जाएगा सिन्धु देखने ?] आडवाणी सा लाल दे दिया [लाखों बरस के बाद ऐसा रथयात्री हुआ है जिसके रथ के पहियों की आज भी दिल दिमाग में दहलाती रहती है . कोई दूसरा हुआ तो उसका नाम बतायें.  अब क्या आप प्रधानमंत्री का  ओहदा जैसी  तुच्छ चीज भी नहीं दे सकते वो भी तब जब तक उसके लिए दस साल से बिठाये रखे हो?  आप कहते हो कि उनकी उम्र नहीं रही. वो कहते हैं कि उम्र कैसे नहीं रही क्या वो मनमोहन सिंह से भी गए बीते हैं? तुमसे अच्छी तो काग्रेस है जो बिना किसी शौर शराबे के मनमोहन सिंह को ढो रही है. मैंने पूरी पार्टी ढोई फिर भी कोई पूछ नहीं है ?
   अब बेहाल लाल कोन  समझाये कि आपने पूरी जोकर पार्टी ढोई तभी तो आपको ढोरों के डाक्टर को दिखा रहें हैं. चुपचाप भले आदमी की तरह काम करते तो वैद्य हकीम न देख रहे होते? उन्हें ये भी समझाना मुश्किल है कि वेटिंग का टिकट भी एक मुददत बाद बेकार हो जाता है. जिनकी सारी उर्जा व्यर्थ के कामों में जाया हुई हो उन्हें अर्थ समझ में नहीं आ सकता है. मनमोहन सिंह तो सर्वमान्य अर्थशास्त्री हैं उन्होंने भी उन्हें समझाया कि कोई आदमी फेफड़ों   की ताकत से मजबूत नहीं होता है. आदमी की बात  का कोई अर्थ होना चाहिए व्यर्थ  की उछल  कूद  से प्रधान मंत्री नहीं बना जाता है . उन्होंने ये भी कहा कि तुम ज्यादा से ज्यादा परमानेंट वेटिंग प्राईम मिनिस्टर हो सकते हो . मनमोहन सिंह ये बतिया रहे थे और संघ में कानाफूसी शुरू हो गयी. सरदार जी असरदार हो रहें हैं. इनसे कुछ न होगा, वेटिंग टिकट केंसिल करो. टिकट केंसिल करने का फ़ार्म भरना शुरू ही किया था कि मातम शुरू हो गया जैसे टिकट न काटा  जा रहा हो बूढ़े बैल को जिबह  कर रहे हों  . अब बूढ़े हो गए किसी काम न रहे तो क्या हुआ घर परिवार  वालों  के लिए सारी उम्र कमाया नहीं है ? ऐसे कैसे जिबह हो जाएँ ? ऐसे जिबह  करने से तो अच्छा  था कि कसाई  के हवाले  कर देते . उन्हें क्या पता करने तो यही  जा रहें थे  कुछ देर ठहर   भर जाते फिर ये दुलत्ती  मारनी  भी भूल  जाते. अब कुछ दिन ढोरों वाले  डाक्टर की देख रेख  में रखना पड़ेगा तब काबू आएगा .फिर चाहे कितना ही पी एम् पी एम् चिल्लाना हम सबको बतायेगें कुछ नहीं थोडा मस्तिष्क विकार हैं इसलिये कभी कभी अपनी जवानी को याद करके गाना गाने लगते हैं . गा ही रहे हैं यम यम ओ हो ओ यम यम .....यम यम ओ हो ओ यम यम....                      

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