रविवार, 2 जून 2013

थोडा थम तो सही



ऐ वख्त अभी थोडा थम तो सही,
अभी मैंने  मोहब्बत पाई नहीं.
बेशकीमती चीज है इश्क यहाँ
इसकी कीमत कोई आना पाई नहीं .

मैंने गीत सुनाये तुम्हें मन भरे,
कुछ हँसी के,ख़ुशी के,मनुहार के.
जिसमें मेरे भी दिल का हो दर्द बयाँ
वो गजल तो अभी तक सुनाई नहीं.

कितने रंगीन सपने बुने रात दिन
कब से दिल में शमायें है रौशन हुई
आसमां से परी सी चली आओ तुम
मेरे दिल में कहीं कम जुन्हाई नहीं .

वो तो तुम हो समझती मुझे गैर हो
है तुम्हें चाहने वाला हमसा कहाँ ?
हम बने हैं तो सिर्फ तुम्हारे लिए
तुम हमारे लिए हो पराई नहीं .

आ भी जाओ कि अब हिज्र में आपके
रात कटती नहीं, दिन गुजरता नहीं
न कभी पहले ऐसा है इश्क हुआ  
न कभी पहले यूँ आसनाई हुई .

मुन्तजिर हूँ तुम्हारा कई जन्म से
इस जन्म में मिलो तो न फिर हों जुदा
ता क़यामत रहेंगे यूँ ही साथ हम
एक पल की सहेंगे जुदाई नहीं .







 






  

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