शनिवार, 13 जुलाई 2013

हम जले इसलिए कि अँधेरा न हो


हम जले इसलिए कि अँधेरा न हो,हम जले इसलिए कि अँधेरा न हो.
कैद में चाँद, सूरज.सितारे रहें, पर धरा पर तिमिर का बसेरा न हो .
                                               हम जले इसलिए कि अँधेरा न हो.

वे अँधेरे के हामी हुए हैं तो क्या ?
दीप तन्हा हो कोई डरेगा नहीं .
हार ही जायेंगे सब तिमिर पुत्र ये
ज्योति का सुत कोई भी मरेगा नहीं
दीप बुझने से पहले जले दूसरे,जो  निशाचर का कोई भी फेरा ना हो .
                                                हम  जले इसलिए कि अँधेरा न हो.

दीप में स्नेह हो या लहू  देह  में
वो जले, ये चले जिंदगी  है यही
रौशनी बस इसी का ही ईनाम है
जगमगाती इसी से है सारी मही
आस के सब दिये झिलमिलातें रहें, मोतियाबिंद का एक डेरा ना हो.
                                              हम जले इसलिए कि अँधेरा न हो.



लाठियाँ टेकते हम चले उम्र की
अब हमें दो घडी का भी आराम दें
इससे पहले कि हम लड़खड़ाकर गिरें
ये मशालें, उठें नौजवां थाम लें .
आज भी जंग जारी अंधेरों से है, दोस्तों ये अन्धेंरा घनेरा ना हो .
                                         हम जले इसलिए कि अँधेरा न हो.







  




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