नेताजी कुछ करो देश में
उलटा सीधा परिवेश में.
लग जाएगा जंग कलम को
क्या बेकार करोगे हमको ?
लेखन अपना इसी बेस में
नेताजी कुछ करो देश में .
तुम हो तो हम वाग्वीर हैं
शब्दों का रखते तुणीर हैं
तुमसे अपना रोजगार है
टी वी चैनल पर बहार है.
पीछे न हों इसी रेस में ,
नेताजी कुछ करो देश में .
रोटी औ रुजगार की बातें
ऐसे हों जैसे सौ लातें
भूखें कहाँ, कहाँ हैं नंगे
चलो करें प्रायोजित दंगे
क्या बिगड़ेगा किसी केस में
नेताजी कुछ करो देश में .
-- अमरनाथ 'मधुर'

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