गुरुवार, 29 अगस्त 2013

खाद्य सुरक्षा विधेयक

 

  लोक सभा ने खाद्य  सुरक्षा विधेयक  पारित  करके  वाकई  एक अच्छा  काम   किया  है .थोड़ी  बहुत  सुधार  की गुंजायश  तो हमेशा  रहती  ही है लेकिन इससे  इस  विधेयक  का महत्व  कम  नहीं हो जाता  है . लेकिन मेरे   मन   में कुछ   आशंकाएं   / चिंताएं   पैदा हो रहीं   हैं जो एक शंकालु   व्यक्ति के मन  में होनी  ही चाहिए  .अभी  मैं  श्रद्धालु  नहीं बना  हूँ,  शंकालू  ही हूँ  इसलिए मेरे  मन  में जो शंका उत्पन्न हो रहीं  हैं ,इसे  सहज  रूप  में ही लिया जाना  चाहिए  .
सबसे  बड़ी  चिंता  तो ये है कि मनमोहन  सिंह  नवउदारवादी  नीतियों  के निर्माता  हैं जिसमें  सामाजिक  कल्याण  के लिए अनुदान  दिए  जाने  की  जगह  नहीं है .आप देख  भी सकते हैं हैं कि पिछले  तीन  दशकों  से अर्थव्यवस्था को सुधारने  का सारा  जोर निजीकरण  को प्रोत्साहन  और अनुदान  सहायता  को हतोत्साहित  करने पर ही रहा  है .ऐसे  में सवाल  यह उठता  है कि जनता को यह खाद्य सुरक्षा बिना सब्सिडी के कैसे मिल पाएगी .ऐसा तो हो नहीं सकता कि किसान बीस रूपये किलों की लागत पर गेहूँ उगाये और उसे सरकार को दो रुपये किलों में दे दे .आज जब वह बारह चौदह रूपये किलो बेचता है तब भी वह कर्ज में डूब कर मरणासन्न स्थिति में रहता है और कोई आकस्मिक आपदा आने पर आत्महत्या भी कर लेता है. इसलिए खेती किसानी का ध्यान किये बिना कोई खाद्य सुरक्षा हो सकती  है ये बात समझ में आने वाली नहीं है .
दूसरी  बात हमने मान लिया आप किसी तरह कहीं से भी अनाज का बंदोबस्त कर लेते हैं तो उसके भंडारण ,परिवहन और वितरण पर भी काफी खर्च आएगा. उसकी भरपाई दो रुपये किलो की कीमत से तो हो नहीं सकेगी .उसके लिए फिर आपको सब्सिडी वाली व्यवस्था पर लौटना पड़ेगा जिसकी इजाजत  न मुक्त विश्व व्यापार संगठन देगा न विश्व बैंक देने वाला है .अर्थव्यवस्था पर पहले से ही इतना दबाव है कि आप उनके निर्देशों को ना कह ही नहीं सकते हैं. इसलिए अगर आप आज सब्सिडी दें और कल उसे ख़त्म कर दें तो यह विधेयक जनता के साथ एक बड़ा मजाक बन जाएगा .
   एक बड़ा सवाल ये है कि खाद्य सुरक्षा क्या केवल खाद्यान्न उपलब्ध कराने से हो जायेगी ? आदमी को उसे पका कर खाने  के लिए ईंधन.तेल ,नमक, मिर्च, हल्दी  और स्वच्छ पेयजल कि भी जरुरत होगी जिसकी अभी कोई पक्की व्यवस्था नहीं है.इसलिए जरुरत खाद्य सुरक्षा नहीं भोजन के अधिकार की है, भोजन जो सभी जरुरी पोषक तत्वों से भरपूर हो . इसका एक उपाय यह हो सकता है कि सरकार दो रुपये किलो अनाज देने कि जगह अनाज बीस रुपये किलो दे या उसे खुले बाजार से खरीदने दे और उसका पूरा दाम सब्सिडी के रूप में उसके खाते में हस्तांतरित कर दे. इसके लिए कूपन व्यवस्था भी हो सकती है जिन्हें वो दुकानदार को दे दे और दुकानदार उनका भुगतान सरकार से प्राप्त कर ले. इससे किसान और गरीब उपभोक्ता दोनों सुखी हो सकते हैं . किसान और मजदूर दोनों का ध्यान रखकर ही काम किया जाएगा तो देश खुशहाल होगा वरन खाद्य सुरक्षा विधेयक खेती को तबाह करने वाला भी बन सकता है .      

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