शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

सोना कितना सोहना है ?

    
      मैंने भी थोडा सा अर्थशास्त्र और वाणिज्यशास्त्र पढ़ा है लेकिन वर्तमान में बाजार और अर्थव्यवस्था की जो हालत है वो बिलकुल समझ में नहीं आ रही है .अभी कुछ दिन पहले जब सोने के दाम घट रहे थे तब सर्राफा बाजार में अगर कोई सोना खरीदने जाता था तो सर्राफ अखबार इंटरनेट पर आने वाले बाजार मूल्य से हजार डेढ़ हजार रूपया प्रति तोला अधिक कीमत लेकर ही सोने के जेवर या सिक्के देता था .यह कीमत उसकी निर्माण लागत से अतिरिक्त होती थी. फिर भी लोगों ने हिम्मत करके तोला दो तोला सोना खरीदा .क्यूँकि भारतीय समाज में शादी विवाहों में सोने के जेवर जरुरी होते हैं और ये निवेश का सुरक्षित ढंग भी माना जाता है.
आज जब सोना महंगा हो गया है तो बहुत से लोग उसे बेच कर दो पैसे बनाना चाहते हैं लेकिन सर्राफा बाजार में कोई उसे खरीदने के लिए तैयार नहीं है.ये सब हाथ जोड़ रहें हैं कि हमारे पास पहले से ही काफी सोना है वही नहीं बिक रहा है. पहले जब खरीदने गए तो कहते थे हमने मंहगा खरीदा है कम कीमत में नहीं बेच सकते हैं .अब जब बेचना चाहते हैं तो कहते हैं जरुरत नहीं है. ये हाल किसी छोटी जगह का नहीं है ये हाल बड़े बाजारों और प्रतिष्ठित ज्वेलर्स का है. अब कर लो क्या करोगे ? क्या रोटी की जगह सोना खा सकते हैं ? क्या दूध की जगह सोना पी सकते हैं ? क्या बीमार को दवा की जगह सोना खिला सकते हैं ? किसे पता था सोना इतना खोटा हो जाएगा . इससे तो अच्छा होता आलू प्याज खरीद कर रख लेते,कम से कम उसे बेच तो सकते थे.आज पब्लिक हाथों हाथ ले जाती. अब तो चोर लुटेरों का ही सहारा है वे ही सोना लेंगे.फिर चाहे वे लुटेरे सड़क के हों या व्यापार के, राजनीतिक लुटेरे तो पूरा देश ही लूट रहें हैं उनसे तो बचा ही नहीं जा सकता है .

    सरकार सोना बेचना चाहती है ,जनता सोना बेचना चाहती है .सर्राफ हाथ जोड़ रहें हैं हमें बख्श दो हम नहीं खरीद सकते हैं.ले दे के अंतर्राष्ट्रीय बाजार का ही सहारा है जिसके हम सदैव विरोधी रहें हैं.अगर वहाँ भी उन्होंने अपनी मर्जी के दाम लगाए जो निश्चित ही वो लगायेंगे तो फिर हमारा क्या होगा ? लोग कहेंगे  कैसा पागल आदमी है बात तो ऐसे कर रहा है जैसे टनों सोना जमा कर रखा है. लेकिन बात ये नहीं है. है तो मेरे पास एक डॉलर भी नहीं  और प्याज भी मैं नहीं खाता हूँ तो क्या उनके मंहगें होने की चिंता छोड़ दूँ ?  

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