शनिवार, 14 दिसंबर 2013

लिंग पूजक भारतीय संस्कृति और समलैंगिकता


    
यो कि भारत में बहुत कुछ प्राकृतिक है नागा बाबाओ का निर्वस्त्र घूमना प्राकृतिक है, जाति प्रथा को मानते हुए इंसान को इंसान न समझना प्राकृतिक है , जाति के अंदर ही ब्याह करना प्राकृतिक है , जाति के बाहर कर लिया तो अप्राकृतिक है, छूआछूत-भेदभाव प्राकृतिक है, स्त्री को पुरुष के सदृश्य इंसान न समझना भी प्राकृतिक है ,
दहेज़ प्राकृतिक है , दहेज़ हत्या-उत्पीड़न प्राकृतिक है, कन्या-भ्रूण हत्या तो और भी प्राकृतिक है , जाति अहम-संघर्ष और खून बहाना तो सर्वकालिक प्राकृतिक है ,
और तो और कुछ लोगो के लिए बलात्कार भी प्राकृतिक है और इसके सन्दर्भ में उनके पास तर्क और वैज्ञानिक-नैतिक तथ्य भी है,
हाथ पे दिया बत्ती , कपूर जलाना , अध्यात्म प्राप्ति हेतु बाबा के साथ हमबिस्तर हो जाना या करवाना, जूठे पत्तलों पर लोटना , भभूत लपेटना , भूत-प्रेत के साए में आकर पगलई दिखाना, अमरत्व एवं धर्मत्व प्राप्ति हेतु बलि देना, दंगा-फसाद की चाह रखना , नीम्बू-मिर्चा लटकाना , गंडोईया , ताबीज , जंतर-मंतर , काला-लाल, पीला-हरा जादू का प्रैक्टिस करना इत्यादि जैसी चीजे प्राकृतिक है, और पूर्णतयः वैज्ञानिक है,
और इन सभी चीजो को बच्चो को दिखाने या सिखाने में परम्परावादी, रुढ़िवादी-धार्मिक लोगो को कोई दिक्कत नहीं है !
जिस समाज में एक जाति का मर्द दूसरी जाति की महिला के लिए 'मर्द' नहीं रहता , दूसरी जाति की महिला दूसरी जाति के पुरुष के लिए 'स्त्री' नहीं रहती है, अपनी जाति से बाहर न उनमे पौरुष(मर्दानगी) है अपनी जाति से बाहर न उनमे स्त्रीत्व(बांझपन के विपरीत) है,

कायदे से देखा जाए तो जाति के दायरों से बाहर सभी 'ना-मर्द' और 'ना-स्त्री' है, गोया दूसरी जाति के स्त्री अथवा पुरुष के प्रति आकर्षित होने से तो समाज ही आपको रोके रखता है, आप समलैंगिक निकल जाए समाज उस अवस्था को भी स्वीकार कर लेगा लेकिन विपरीत-लिंग के प्रति आकर्षण न रखना, ऐसे समाज के लोग समलैंगिकता पर भाषण दे हजम नहीं होता है , नामर्दों , न-स्त्रियो की फ़िक्र करने से पहले आप तो पूरी तरह से मर्द/स्त्री हो जाओ....

----------  कुमार  गौरव  सोनकर

1 टिप्पणी:

  1. बहुत अच्छा लेख है आपका पर धर्म के अंधों को ये दिखाई नहीं देगा.

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