शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

बैठो कभी इम्तिहान में

अरविन्द केजरीवाल के इस्तीफे को धोखा और नौटंकी बताने वालों में कांग्रेसी और भाजपाई ही नहीं वे वामपंथी सूरमा भी शामिल हैं. जिन्होंने क्रान्ति क्रान्ति खेलते हुए नौजवानों को बुढा दिया लेकिन क्रान्ति के नाम पर वामपंथी आंदोलन को छिन्न भिन्न करने का ही काम किया है उसे एक इंच भी आगे नहीं बढ़ने दिया है.उन लोगों के लिए ज्यादा कुछ नहीं बस इतना ही कहना है -------

अब हम उड़ेंगे खुल के खुले आसमान में

कुछ भी असर नहीं है तुम्हारी जबान में
हम खो चुके यकीन तुम्हारे बयान में.

आएगा कभी वक्त न माकूल आपका
रखे रहो तलवार तुम अपनी मयान में.

बाहर हुए हैं तोड़ तीलियां कफस की हम
अब हम उड़ेंगे खुल के खुले आसमान में .

ये तीर तुम्हारे हमें छू भी न सकेंगे
अब खम कहाँ है आपकी टूटी कमान में.

अच्छा यही है तुम भी उतर आओ जमीं पर
दूरबीन से क्या देखते बैठे मचान में.

सीधा सवाल है जिसे मुश्किल बता रहे
कौशिश करो बैठो तो कभी इम्तिहान में.

तुम क्या समझ सकोगे आम आदमी का दर्द
तुम जंग कराते रहो गीता, कुरआन में .

 ---------- अमरनाथ 'मधुर'
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