गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

हर साँस में खुश्बू है

हर साँस में खुश्बू है और गाल पे टेसू है
बलखाती हो जो नागिन लहराते यूँ गेसू है.

अब अपने बियाबाँ में आहट है बहारों की
उम्मीद से भी ज्यादा बारिश है इशारो की 

किस्मत है हमारी या मौसम का तकाजा है
दिलबर ने मुझे 'मेरे महबूब' नवाजा है . 

आने दो बहारों को,जन्नत के नजारों को 
मैं मुद्दतों तरसा हूँ दिलबर के इशारों को 

जी भर के मुझे अब तो महबूब से मिलने दो
बासंती ऋतु मेरे अंदर भी तो खिलने दो 

कहता हूँ जमाने से वो बीच में ना आये 
जो मिल रहे हैं दो दिल उनको न वो सताये.----------- अमरनाथ 'मधुर'

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