शुक्रवार, 23 मई 2014

जहरीले परिवेश से

पाकिस्तान से आया हो या कोई बांग्लादेश से
देश हमारा भर जाता है घने दुःख और क्लेश  से
किन्तु न यूँ ही कोई छोड़ता अपनी जन्म भूमि को है
तभी छोड़ता डर जाता जब जहरीले परिवेश  से .

मानव को मानव की पीड़ा से होती हमदर्दी  है
अगर पड़ौसी संकट में, हम मस्त रहें खुदगर्जी है
यही हमारी संस्कृति है, यही परम्परा सदियों से
दीन दुखी के रहें सहायक वो असली या फर्जी है .

हम अब भी हैं मददगार वो चाहें जितने धोखें दें
किन्तु पीठ में छुरा भोंकने से पहले वो ये सोचें.
क्या दुनिया में और कोई भी देश दिखाई देता है
जिससे लेते रहें मदद वो देकर धोखे पे धोखे .




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