रविवार, 11 मई 2014

मेरठ में उपद्रव


  मेरठ में प्याऊ लगाने को लेकर उपद्रव हो गया. गोली चल गयी जी गोली. वो भी पुलिस और प्रशासन के बड़े  अधिकारियों के रहते.  गलती तो उन लोगों की है ही जो प्याऊ लगा रहे थे .शराब का ठेका खोलते,जुए का अड्डा लगाते तो कोई भी नहीं लड़ता .भूल गए क्या लड़वाते हैं मंदिर मस्जिद मेल कराती मधुशाला. जब मंदिर मस्जिद झगड़े करवा सकते हैं तो प्याऊ और पानी तो झगड़े के लिए इतिहास में दर्ज हैं .अट्ठारह सौ सत्तावन की बगावत प्याऊ पर पानी पिलाने को लेकर ताना मारने के कारण ही हुई थी . रेलवे स्टेशनों .कचहरियों में पहले हिन्दू पानी, मुस्लिम पानी होता था .अगर गलती से किसी ने किसी दूसरे के मटके से पानी पी लिया तो बबाल हो जाता था .वही आज भी हो रहा है .उस पानी की तासीर बदली नहीं है .यदा कदा अपना रूप दिखा ही देती है, भले ही इंसानियत शर्मशार हो जाए.

    पता नहीं लोगों की आँखों का पानी क्यों मर गया है .वरना जो पानी जिन्दगी देता हो वो  जिंदगी लेने का सबब नहीं बनना चाहिए. अब पहले वाला ज़माना नहीं रहा है. कोई भी किसी को  पानी पिला  सकता है .लेकिन जो लोग पानी को भी मुनाफे के व्यापार के रूप में कायम कर चुके हों वो क्यों चाहेंगे कि मुफ्त में पानी पीने की कोई व्यवस्था  हो ? यूँ लड़ने वालों को तो लड़ने का बहाना चाहिए मकसद तो उनका कुछ और ही होता है बस लड़ पड़ते हैं.
 वैसे ज्यादा चिंता करने की कोई बात नहीं है . मेरठ में माहौल बिलकुल सामान्य है. तनाव का नाम नहीं है .हाँ ये बात जरूर है जैसा कि शायर मनव्वर  राणा  ने कहा है कि -
'सियासत को लहू पीने की लत है ,
नहीं तो मुल्क में सब खैरियत है .'



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