कभी लिखी नहीं मैंने कोई कविता पिताजी पर
कभी माँ के लिए मैंने न कोई गीत गाया है
कभी खुलकर किया मैंने नहीं है प्यार बेटी को
न बेटे की सफलता पर अहम् से सिर उठाया है।
मेरे भाई खफा हैं मैं कभी कुछ काम न आया ।
पड़ौसी सब मुझे खुदगर्ज और दंभी समझते हैं
मेरी पत्नि मेरी चुप्पी की बन जाती है हमसाया ।
मगर मैं हूँ कि सबको दिल ही दिल में प्यार करता हूँ
इसे कैसे बताऊँ मैं? इसे कैसे दिखाऊँ मैं ?
मुझे दिखना नहीं आता, मुझे कहना नहीं आता.
क्या कोई है जो मेरी बात उनके पास पहुँचा दे ?
उन्हें मैं प्यार करता हूँ, उन्हें मैं याद करता हूँ .
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