सोमवार, 16 जून 2014

ख़बर और अखबर

                       

   आप  अखबार  तो  रोज  पढ़ते  ही  होंगें .कभी आपने गौर किया है कि अखबार में  समाचारों का चयन और  प्रस्तुतिकरण किस तरह पूर्वागह से ग्रसित है .आम तौर से अखबार के पहले पेज पर इस तरह की खबरें मिलेंगी फलां मंत्री ने ऐसा कहा......, प्रधान मंत्री ने घोषणा की है कि ........, फलां राज्य में महिलाओं की इज्जत असुरक्षित ......फलां नेता ने फलां राज्य की सरकार को नाकाम बताते हुए केंद्र से तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है,आदि आदि
दूसरा, तीसरा, चौथा पेज पलटें  खबरें यूँ  होंगी  चार  बच्चों  की माँ  प्रेमी  संग  फरार  ,प्यार  में नाकाम रहने पर, मनचले  की लोगों ने सड़क पर की धुनाई, थाने में प्रेमी के संग जाने  पर अड़ी प्रेमिका, प्रेम विवाह के लिए कोर्ट पहुँची लड़की को अदालत के बाहर से खींच ले गए उसके घर वाले, प्रेमिका को रात में चौराहे पर अकेला छोड़ कर चला गया उसका प्रेमी, मामा ने भांजी संग रचाया विवाह, बलात्कार के बाद युवती की गला घोंट कर हत्या, दो नाबालिगों से बलात्कार के बाद उन्हें पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी, सिपाही सोता रहा और कैदी हथकड़ी समेत फरार हो गया, फलाँ की मुर्गी फलाँ ने चोरी की थानेदार ने आरोपी को चार दिन से हवालात में बंद कर के रखा, बाकी मुर्गियां हलाल होने तक केस की तफ्सीस  जारी रहेगी, जेब कतरें ने  उड़ायें दस दस के दस नोट, थानेदार कम हप्ता वसूली से खफा ,साईकिल का टायर पंचर होने से बम फटने की अफवाह के चलते  इबादत गंज में तनाव, आदि आदि. वैसे आजकल एक पूरा पेज यू पी हो रहे बलात्कार की खबरों पर रहता है. वहीँ कहीं कोने में अन्य राज्यों की बलात्कार के खबरें भी चस्पा रहती हैं लेकिन उनके लिए कोई वहां की सरकारों को बर्खास्त करने की मांग नहीं करता है .
बीच के पेज पर आ जाएँ जिसे सम्पादकीय पेज कहते हैं. किसी अखबार के स्तर का पता इस पेज पर छपने वाले सम्पादकीय और लेखों से ही चलता है. इस पेज की खासियत ये है कि इस पर एक सम्पादकीय   कॉलम होता है जिसे अखबार का मुख्य सम्पादक लिखता है ( वैसे कई  जानकारों का कहना है कि बहुत कम सम्पादक इसे स्वयं  लिखने की जहमत उठाते हैं बहुधा यह काम भी किसी जूनियर सम्पादक को करना पड़ता है लेकिन  यह मुख्य सम्पादक का लिखा हुआ ही माना जाता है ) अक्सर इस कॉलम में सरकार की आलोचना  और उसे दी जाने वाली नसीहतें भरी रहती हैं .इसे पढ़कर लगता है जैसे सम्पादक से ज्यादा बुद्दिमान और कोई नहीं है हर मुश्किल का हल उसके पास है .बस उसे सरकार चलाने का मौका मिलना चाहिए फिर देखना कैसे सारी समस्यायें चुटकियों में हल होती हैं .ये अलग बात है कि कई नामी गिरामी पत्रकार सरकार में जाते ही हुड़कचुल्लू हो जाते हैं .
    इसी पेज पर व्यंग्य लेख जैसा कुछ भी मिल सकता है. जिसमें हैगा और कल्लो मियाँ करके कुछ आँय बाँय लिखा मिल सकता है .इसी पेज पर अंत में सम्पादक के नाम पत्र जैसा कुछ होता है जिसमें अखबार के  उत्साही पाठक अखबार के लेखकों और संवादाताओं को नसीहतें देते पाएं जाते थे जिसकी वजह से अखबार वालों ने अब इस कालम को  लगभग ख़त्म कर दिया है .
छठे पेज पर आपको छटें हुए और घुटे हुए साहित्यकार ,फिल्मकार, संगीतकार आदि मिलेंगें जिन्हें देखते ही आप समझ जायेंगें कि ये या तो सम्पादक के गिरोह के लोग हैं या किसी के द्वारा प्रायोजित हैं जिन्हें जनमानस में ठेलने की साजिश हो रही है .
  सातवें पेज पर कुछ भूली भटकीं कई दिन पुरानी अंतराष्ट्रीय खबरें हो सकती हैं .जिसमें ज्यादातर तालिबान, अमेरिका और इराक से सम्बंधित  होंगी ,यहीं कभी कभी ईरान और कोरिया  से उत्पन्न होने वालें तनाव की खबरें भी हो सकती हैं .पाकिस्तान की भी हो सकती हैं लेकिन उसकी अंतर्राष्ट्रीय हैसियत थोड़ा कम है इसलिए वो हमारे घरेलु पेज पर कहीं भी मिल सकता है अंतर्राष्ट्रीय पेज  पर जाने पर वह बेगाना सा लगने लगता है इसलिए वहाँ वो कम ही पाया जाता है .
  आठवां पेज बाजार का है .शेयर बाजार ,जींस बाजार ,मौद्रिक नीति ,मुद्रा प्रसार आदि आदि यहीं मिलेगा, सोने के रेट का घटना बढ़ना और सेंसेक्स का गिरना उठना यहां रोजमर्रा का काम है . यहाँ आपको दालों और तेलों के जो भाव मिलेंगें उससे सौ रुपये ज्यादा पर भी अगर बाजार में खरीदना चाहें तो वे चीजें आपको नहीं मिलेंगी .आप दूकानदार से ज्यादा हुज्जत करेगें तो वो यही कहेगा कि बाबूजी आप अखबार से ले लो हम इस भाव पर नहीं बेचते हैं .
यहां आपको दिवालियां कंपनियों  की बढ़िया रिपोर्ट मिल सकती है जो आपको पैसे को ऐसे खींच ले जाती हैं जैसे चुम्बक  लोहे को खींच लेता है .
       उसके बाद का पेज धर्म और अध्यात्म का है जो स्वाभाविक ही है .क्यूँकि काराबारियों को मुनाफा कमाने के बाद आध्यात्मिक शान्ति की जरुरत पड़ती है .यहां ऐसी गोल मोल बातें और दृष्टांत पढने को मिलेंगें जिन्हें पढ़कर यही लगेगा की सबसे अच्छा कारोबार अगर कोई है तो बस अध्यात्म  और ज्ञान चर्चा का ही है .आजकल इस पर योग रोग की भी चर्चा पढने देखने को मिला करती है.
    इसके बाद का पेज खेलों का पेज है .इस पर क्रिकेट ही क्रिकेट मिलेगा .बच्चे और नौजवान अखबार बस इस पेज के लिए ही पढ़ते हैं .कुछ अधेड़ और बुजुर्ग भी क्रिकेट का रस लेते मिल जायेंगें. इस पर अगर किसी और खेलकी कोई खबर है तो वो  अखबार बिना पढ़े ही दूर फेंक दिया जाएगा. आजकल फुटबॉल का जो महाकुंभ हो रहा है उसकी तरफ नजर उठाकर भी कोई नहीं देखता है .उनकी निगाह में क्रिकेट नहीं तो कुछ नहीं है .
  आखिरी पेज पर किसी हीरो हीरोइन की सुन्दर तस्वीर या ऐसे ही किसी अधनगीं तस्वीर मिलेगी .कुछ बची खुची खबरें भी चस्पा होंगी .
 इसी के साथ अखबार में कुछ ख़ास पन्नों पर आपको मसाज पार्लर. जापानी तेल, मित्रता के लिए आतुर लड़कियों के फोन नंबर, तुरत नौकरीअच्छी तनख्वाह,ज्योतिष, बंगाली तांत्रिक आदि के विज्ञापन भी मिलेगें, शादी योग्य युवक युवतियों के जातिवार विज्ञापन मिलेंगें .यहाँ ठगे जाने के सबसे पुख्ता इंतजाम हैं .
  अखबार को  थोड़ा ध्यान से पढ़ेंगे तो आप पायेंगें हर खबर एक विज्ञापन है किसी ख़ास मकसद से ख़ास भाषा में लिखी गयी है. अगर मामला दो समुदायों का हो तो समाचार की भाषा आस्था और घृणा को ढकती उघाड़ती नजर आएगी. सरकार के रुख से भी भाषा बनती बिगड़ती रहती है .  कई बार तो ऐसा लगता है जैसे सरकारें बनाने गिराने का कम अखबार वालों को ही सौंप दिया  गया है और वो पूरी मुस्तैदी से अपने कम में जुटे हैं . इन सबके बीच में आम आदमी के सरोकार की खबरें या समाज को बेहतर बनाने के समाचार बहुत काम नजर आयेंगें. ये वही अखबार हैं जो जनता की आवाज होने का दम भरते हैं  और सत्ता और दौलत की हनक के आगे दुम हिलाते रहते हैं .  

                        

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