शनिवार, 28 जून 2014

राहत इन्दौरी

ये ज़िन्दगी सवाल थी जवाब माँगने लगे ,
फरिश्ते आ के ख़्वाब मेँ हिसाब माँगने लगे !
इधर किया करम किसी पे और इधर जता दिया,
नमाज़ पढ़के आए और शराब माँगने लगे !
सुख़नवरों ने ख़ुद बना दिया सुख़न को एक मज़ाक,
ज़रा-सी दाद क्या मिली ख़िताब माँगने लगे !
दिखाई जाने क्या दिया है जुगनुओं को ख़्वाब मेँ,
खुली है जबसे आँख आफताब माँगने लगे !!
(जनाब राहत इन्दौरी)

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