मंगलवार, 3 जून 2014

रूना लैला -- आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आये














          मुझे रात भर नींद नहीं आई। आखिर मुझे रूना लैला से मिलने जाना था। कुछ दिन पहले जब बिल क्लिंटन के साथ मैं ढाका आया था, तब मैं रूना से नहीं मिल पाया था और तभी मैंने तय कर लिया था कि मैं जल्दी ही दुबारा ढाका आउंगा और रूना लैला से मिलूंगा। क्लिंटन के साथ मैं मार्च 2000 में बांग्लादेश गया था, और सिर्फ ढाई महीने बाद ही वहां क्रिकेट का एशिया कप होने वाला था। क्रिकेट से मुझे ज्यादा प्यार नहीं, न मैं स्पोर्ट्स का पत्रकार हूं, लेकिन मेरे पास ढाका जाने के लिए वीजा था, इसलिए जब क्रिकेट कवर करने के लिए ढाका जाने की बात हुई तो सिर्फ वीजा के आधार पर तय हुआ कि मैं चला दुबारा चला जाऊं।
मुझे रूना लैला से मिलना था, और सारी कायनात मुझे रूना से मिलाने के लिए रास्ते तैयार करा रही थी। इस मुलाकात में मुझे एक बोनस और मिलना था, ये फिर कभी बताउंगा, हां आज छू कर जरूर निकलूंगा। 
मैं तय समय से दो दिन पहले दुबारा ढाका पहुंच गया। क्रिकेट का बुखार ढाका में ठीक वैसे सिर चढ़ कर बोलता है, जैसे हमारे यहां के किसी शहर में। 
मैं ढाका शेरेटन होटल में ठहरा था, और मेरा काम था दोपहर में होने वाले उन दिन-रात के मैचों के बारे में अपनी विशेष टिप्पणी देना। अब क्रिकेट तो भारत में बच्चे-बच्चे के लिए रटी रटाई विद्या है, तो मुझे वहां जाकर ऐसा क्या करना था, जो यहां बैठ कर नहीं किया जा सकता था? बल्कि सच तो ये है कि ये टीवी चैनल वाले, अखबार वाले क्रिकेट कवर करने के लिए अपने रिपोर्टर वहां भेजते ही क्यों है, ये मैं आजतक नहीं समझ पाया। क्रिकेट में कवर करने के लिए कुछ नहीं होता। ये मार्केटिंग, विज्ञापन, और देखा-देखी की हो़ड़ है। देखो तुमने रिपोर्टर भेजे, मैंने भी भेज दिए। मैं तो कहता हूं कि किसी को अगर टीवी न्यूज के संसार में मस्ती करनी हो तो उसे क्रिकेट रिपोर्टर बनना चाहिए। पूरा संसार घूमने के अलावा आप दिन रात वही सब करेंगे और देखेंगे जिसे करने और देखने पर हो सकता है कि घर में पिताजी ने कभी फटकारा भी हो, लेकिन आपको मजा आता रहा हो। टीवी में पत्रकारिता कैसी करनी चाहिए इस पर मुझे खुद नहीं पता कि कितना और क्या लिख सकता हूं, लेकिन आज तो मेरे कानों में एक गाना गूंज रहा था, " मेरा बाबू छैल-छबीला मैं तो नाचूंगी...कजरा लगा के, गजरा सजा के…मैं शर्माउंगी…।"
ढाका के स्थानीय रिपोर्टर से मेरी दोस्ती हो चुकी थी। मैं उसके लिए दिल्ली से खास उपहार इस बार लेकर गया था। ढाका पहुंचते ही वो मुझसे मिलने होटल आया। मैंने उससे कहा कि मुझे रूना लैला से मिलना है, और इसीलिए आया हूं। वो बहुत देर तक खामोश बैठा रहा, फिर उसने कहा कि रूना इन दिनों किसी से नहीं मिलतीं। ना इंटरव्यू देती हैं। उनके बदले आप कहें तो मैं अपने देश की प्रधानमंत्री शेख हसीना से आपकी मुलाकात करा दूं। 
मैं समझ रहा था कि अब मुझे बोनस मिलने जा रहा है। शेख हसीना से मेरी मुलाकात हो पाएगी, ये तो मैं सोच कर आया भी नहीं था। लेकिन उसने कहा कि उनसे आप मिल सकते हैं। शेख मुजीबुर्र रहमान की बेटी शेख हसीना से मुलाकात होने का मतलब आप सोच सकते हैं। 
बांग्लदादेश को लेकर भारत-पाक का युद्ध मेरे बाल मन पर अंकित युद्ध है। जब ये युद्ध हुआ था, तब मैं चार-पांच साल का रहा होउंगा। शेख मुजिबुर्र रहमान, याहिया खान, जुल्फीकार अली भुट्टो, इंदिरा गांधी ये सब नाम पहली बार मेरे कानों में पड़ रहे थे। उस दौरान मुझे लगता था कि अंग्रेजों को भगाने की लड़ाई चल रही है, और अपने मुहल्ले में रहने वाले पोलैंड के लोगों को देखते ही हम बच्चे िचल्ला पड़ते थे, 'ऐ अंग्रेजों भारत छोड़ो।'
"शेख हसीना से तुम मुलाकात करा दो", ये मैंने उससे कहा। और कहा कि मुझे रूना लैला का नंबर दो, मैं खुद बात करुंगा। 
उसने रूना के घर का नंबर दे दिया। मैंने होटल से ही रूना को फोन मिलाया। पता नहीं किसने फोन उठाया एकदम ठेठ बांग्ला में जो कहा उसका मतलब था कि मैडम अभी नहीं हैं। शाम को फोन करना।
शाम को फिर फोन किया उसी ने फोन उठाया और मेरी बात पता नहीं कितनी समझ पाया लेकिन उसने रूना लैला को फोन दे दिया। 
हैलो, मैं संजय सिन्हा बोल रहा हूं। मैं दिल्ली से आया हूं। सिर्फ आपसे मिलने के लिए। 
उधर से पता नहीं वो क्या बोल रही थीं, लेकिन मेरे कानों में बस गूंज रहा था, " दमादम मस्त कलंदर…."
मुझे उनसे मिलने का समय नहीं मिला। 
अगले दिन मैं क्रिकेट मैच देखने चला गया। वहां सुनील गावस्कर से मिला। वो स्टार न्यूज के लिए विशेष आमंत्रित मेहमान थे। उन दिनों मैच फिक्सिंग की खबरों का जोर था। सुनील गावस्कर बहुत देर तक मुझसे बातें करते रहे। फिर वहीं वीआईपी रूम में मियांदाद आए तो मैं उनसे मिलने चला गया। मिंयादाद ने छूटते ही कहा कि मैच फिक्सिंग पर कोई बात मत करना। मैंने उनसे कहा कि अजी मैं क्रिकेट का रिपोर्टर थोड़े ही हूं। आपने मुझे कभी देखा है मैच कवर करते हुए। मैं तो आपसे यूं ही मिलने आया हूं। आपके चौके-छक्कों की बरसात पर बात करने आया हूं। उन्होंेने कहा अब तो मैं भी सिर्फ एक्सपर्ट हूं, अब चौके छक्के भूल चुका हूं। मैं मुस्कुराता रहा, और उनसे बतियाता रहा। इसी तरह सचिन तेंदुलकर समेत तमाम दिग्गजों से मिला। ऐसे मौकों पर मैंने देखा कि कि क्रिकेट खेलने वाले खिलाड़ी तो वहां आते ही हैं, नहीं खेलने वाले धुरंधरों का भी मेला लगता है। और मुझे पहली बार हैरानी हुई कि क्रिकेट की रिपोर्टिंग में कोई कभी उन खिलाड़ियों की रिपोर्टिंग नहीं करता, जो उन्हें वहां यूं ही मिल गए हैं। मतलब सारी रिपोर्टिंग उनकी होती है, जिनका बल्ला चल रहा होता है। 
इन सबसे बातें करते हुए मेरे कानों में लगातार गूंज रहा था, "तुम्हें हो न हो, मुझको तो इतना यकीं है, मुझे प्यार तुमसे नहीं है नही है…।"
और मैं आधे पर ही मैच छोड़ कर शाम को अपने कैमरामैन को लेकर निकल गया रूना लैला के घर की ओर। 
करीब आधे घंटे बाद मैं उस बंगले के सामने था। मैंने घंटी बजाई, कोई नीचे आया। मैंने फिर कहा, मैं संजय सिन्हा। मैं दिल्ली से आया हूं, रूना जी से मिलना है। वो उपर चला गया। दस मिनट बाद फिर आया और बिना कुछ बोले हुए मुझे अपने साथ उपर ले गया।
ड्राइंग रूम में मुझे बिठाया गया। वहां दीवारों पर कई तस्वीरें टंगी थीं। मैं हैरान था, ये सारी तस्वीरें रूना के पूर्व पतियों की थी। कहने की जरूरत नहीं कि रूना ने तीन या चार शादियां की थीं, और उनके घर में सबकी यादों को बहुत सहेज कर रखा गया था। 
घर बहुत करीने से सजा हुआ था, हर चीज अपनी जगह और ठिकाने पर थी। मेरा दिल धड़क रहा था। मेरे सामने रूना लैला आने वाली थीं। पता नहीं आने वाली थीं, या मना करने वाली थीं। मुझे भविष्य में फिल्मी पत्रकारिता तो करनी नहीं थी, लेकिन मेरे मन में हर उस व्यक्ति से मिलने की चाहत रहती है, जिसके मन के सीमेंट के नीचे गीली मिट्टी छुपी होती है। 
रूना लैला के बारे मेें मैंने पढ़ा था कि उन्होंने इतनी शादियां कीं। मैंने ये भी पढ़ा था कि उनकी बहन की मौत कैंसर से हो गई थी। ये भी पढ़ा था कि बहन की मौत के बाद उन्होंने एक के बाद एक छह कंसर्ट किए और उन कंसर्ट की सारी कमाई कैंसर मरीजों की किसी संस्था को दान कर दिए थे। 
एक ऐसी महिला जिसने मंच पर उस उम्र में तानपुरा थामा, जब उसका खुद का आकार तानपुरे से कम था, एक ऐसी महिला जिसने एक बार नहीं कई-कई बार शादियां कीं, सिर्फ इस उम्मीद में कि उसे कोई एक प्यार करने वाला मिल जाए, एक महिला जो अब किसी से मिलना ही नहीं चाहती, एक महिला जिसने अपने चारों ओर सीमेंट की इतनी उंची दीवार खड़ी कर ली हो, उस महिला में मैं तलाशने गया था सीमेंट के भीतर छिपी गीली-गीली मिट्टी।
करीब दस मिनट बाद मेरे सामने आंखों में काजल लगाए गोरी सी, बालों को करीने से संवारे एक महिला खड़ी थी। 
मेरे कानों में फिर गूंज रहा था, मेरा बाबू छैल छबीला मैं तो नाचूंगी…मेरा बलमा रंग रंगीला मैं तो नाचूंगी…
हैलो, उधर से आवाज़ आई और मेरे हाथ बढ़ गए उन हाथों की तरफ। उन्होंने बैठने का इशारा किया और कहा कि वो अब वो इंटरव्यू नहीं देतीं।
मैंने कहा कि इंटरव्यू के लिए तो मैं आया ही नहीं। मैं तो आपसे मिलने आया हूं। कैमरामैन हमारे साथ ही था। मैंने कहा, कि हम कैमरा खोलेंगे ही नहीं, बस आपसे मिलना भर था। रूना बैठ गईं। मैं उनसे दुनिया जहान की बातें करता रहा। 
धीरे-धीरे सीमेंट की दीवार टूट रही थी। मैं पांच मिनट बाद ही उनसे उनके पूर्व पतियों के बारें में बातें कर रहा था। उनकी बहन के बारे में पूछ रहा था।। और कह रहा था कि आप क्या हमें एक कप 'चा' (बंग्ला में चाय को चा कहते हैं) नहीं पिलाएंगी?
रूना उठीं, कहने लगीं ओह, भूल ही गई। आपसे बात करते हुए कुछ ध्यान ही नहीं रहा। रूना के साथ मैं भी उठ गया। उनके पीछे-पीछे रसोई तक। वहां एक काम करने वाली महिला खड़ी थी। रूना ने उससे कुछ कहा, फिर खुद ही रसोई में घुस गईं। मैंने पीछे से पूछा कि क्या मैं भी आ जाऊं?
रूना मेरी ओर देखीं, और कहने लगीं हां आ जाइए। मैंने कहा िक बातचीत का तारतम्य टूट न जाए, इसलिए चाय बनते हुए भी हम बातें करेंगे।
रूना मेरी ओर देखीं, और कहने लगीं कि पूूरा इंटरव्यू तो आपने कर ही लिया, ना ना करते हुए।
मैंने कहा कैमरा तो बंद है। टेलीविजन में बिना कैमरे के इंटरव्यू की क्या अहमियत? 
उन्होंने हौले से मुस्कुराते हुए कहा, अब वो भी कर ही लीजिए।
मैं जानता था, यही होगा। सारी कायनात मुझे रूना से मिलाने लाई है, तो मैं बिना इंटरव्यू लिए नहीं जाउंगा।
मैंने वहां खड़ी काम करने वाली महिला से कहा कि तुम 'चा' बनाओ। और रूना से कहा कि आप इंटरव्यू के लिए आ जाइए।
रूना ने कहा कि जरा तैयार हो जाती हूं। मैंने कहा कि आप एकदम सुंदर लग रही हैं। आपको मेकअप की जरूरत नहीं। रूना फिर भी नहीं मानीं, भीतर गईं। बालों को जरा और संवारा और ड्राइंग रूम में जब तक हम कैमरा सेट करते वो सामने आ गईं। आते ही इठला कर उन्होंने पूछा कि मोटी तो नहीं लग रही? 
मै हंस पड़ा। मैंने कहा कि आप रूना लैला हैॆ। हमारे देश में आपके गानों पर लोग थिरकते हैं। आप हर दिल अजीज हैं, सबकी धड़कन हैं। रूना शर्मा गईं, और बैठ गईं इंटरव्यू के लिए। हमने कई सवाल पूछे। रूना ने सबके जवाब दिए।
हमने चाय पी ली तो वो कहने लगीं कि खाना खा कर जाना। सीमेंट की मजबूत दीवार टूट चुकी थी। लोहे की सारी रेलिंग पिघल चुकी थी। रूना किसी से नहीं मिलतीं, ये एक झूठ बन चुका था। वो इंटरव्यू नहीं देतीं ये कहना अपराध हो चुका था। रूना के साथ हम खाना खा रहे थे, उनकी बहन के बारे में बातें कर रहे थे…और उनकी आंखों से रिसते कतरों को देख रहे थे। 
मेरे सामने एक औरत बैठी थी। जो मेरी बहन हो सकती थी। आपकी बहन हो सकती थी। वो हमारे घर की, आपके घर की वही औरत थी जिसके सपनों में उसका राजकुमार रंग रंगीला होता है, छैल छबीला होता है। वो उसके लिए कजरा लगाती है, गजारा सजाती है…उसका सारा संसार उस एक पुरुष के लिए होता है जिसके लिए वो होठों को लाल करती है, जिसके लिए वो सजती और संवरती है…सारा दिन…सारी रात उसका इंतजार करती है…
वही औरत मेरे सामने थी। अपने हाथों से मेरी प्लेट में खाना परोस रही थी। मानों कोई उसका छोटा भाई बहुत दूर देश से आया है, और उसे खिला कर उसका पेट भर रहा हो। 
रूना, रूना लैला ने बहुत बातें कीं। मेरे सामने खूब गाने गाए। हमने वो सारे गाने रिकॉर्ड किए। फिर चलते हुए उन्होंने मुझसे कहा कि उनके पास उन तमाम गानों का वीएचएस टेप है, जो वो मुझे दे सकती हैं, बशर्ते मैं वो उन्हें लौटा दू। 
मैं वो टेप लेकर भारत चला आया। ज़ी न्यूज पर रूना का इंटरव्यू चला। उस टेप से कई अनसुने गाने निकाले गए, वो भी इंटरव्यू में शामिल हुआ।
और मैेंने वो टेप ज़ी न्यूज की लाइब्रेरी में दे दिया ये कह कर इस पते पर भिजवा दीजिएगा। 
रूना से मिल कर लौटते हुए कैमरामैन ने कहा कि मान गया सर, आप किसी का इंटरव्यू ले सकते हैं। मैंने कहा कि किसी का नहीं। उन लोगों का जो लोग 'असली' होते हैं। उन लोगों से मिलना अच्छा लगता है जो नकली ज़िंदगी जीते हुए असली होते हैं। उन लोगों का इंटरव्यू नहीं, जो असली की आड़ में नकली होते हैं। 
मुझे वो लोग अच्छे लगते हैं, जो अपने आंसुओं को छिपा लेते हैं, कजरा लगा के। मुझे वो लोग अच्छे लगते हैं जो दूसरों के लिए गजरा सजाते हैं, अपने बालों में। मुझे वो लोग अच्छे नहीं लगते जो उन आंखों के कजरों को बहने पर मजबूर करते हैं। मुझे वो लोग भी अच्छे नहीं लगते जो बालों के गजरों को रौंद देते हैं। 
मुझे उन लोगों से कोई शिकायत नहीं, जो एक प्यार की उम्मीद में तीन-चार लोगों से रिश्ते कामय कर लेते हैं। मुझे शिकायत उन लोगों से है जो एक रिश्ते में भी प्यार का पौधा नहीं उगा पाते। 
यहीं से मेरे दिल में फिल्म वालों, नकली लोगों, अपने पर हंस कर जग को हंसाने वालों के लिए प्यार जागा। 14 साल पहले रूना लैला की उस अधूरी तलाश की कहानी को सुनता-सुनाता हुआ मैं भारत में आज भी तमाम फिल्मी कलाकारों से मिल कर जानना चाहता हूं कि जिसके लिए कजरा-गजरा लगाया…उसका असली हकदार मिला या यूं ही इंतजार चल रहा है।
मुझे फिल्म वाले इसलिए भी अच्छे लगते हैं, कि एक बार उन्हें उनका प्यार नहीं मिला तो वो दूसरा प्यार तलाशने का दम रखते हैं। कोशिश करते हैं। लेकिन हमलोग? 
अपने अरमानों को कुचलने देते हैं। खुद ही कुचल देते हैं। हमारे लिए कजरा और गजरा बने ही नहीं। 
हमारे पास फुर्सत ही कहां है एक औरत की आंखों के कजरे में झांकने की, उसके गजरों के अरमान को समझने की? हमारे लिए औरत हमारे बच्चे की मां है। वो एक आदर्श बहू है। वो अच्छी पड़ोसन है। वो सुघड़ गृहणी है। वो रोटी बनाने की मशीन है।
हमारे लिए वो सबकुछ है, बस एक औरत नहीं है।
                                                                                         ---------संजय   सिन्हा
                                                                                                          ( साभार) 



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