शनिवार, 7 जून 2014

भाषा का सवाल


   कुछ बातें समझ में नहीं आती हैं जैसे कि आजकल सांसदों के भिन्न भिन्न  भाषा में शपथ ग्रहण को लेकर बहुत चर्चा हो रही है .पता नहीं इसमें विवाद की बात कहाँ है ? शपथ ग्रहण एक रस्म अदायगी से ज्यादा कुछ नहीं है .किस  भाषा से कितना  प्रेम है इसका पता उसे व्यवहार में लाने से चलता है .कुछ लोग संस्कृत में शपथ लेने को लेकर चटकारें ले रहें हैं जबकि चटखारे वाली कोई बात नहीं है .अब पता नहीं किसी ने उर्दू में भी कसम खायी है या नहीं. नहीं खायी होगी वरना इस पर कुछ लोग जरूर तंज करते . या उन्हें पता ही नहीं चला होगा कि ये हिन्दी में शपथ ले रहा है या उर्दू में ? ये फर्क तो अच्छे अच्छे ज्ञानी भी नहीं कर सकते हैं .खैर कोई बात नहीं भाषा तो सभी अच्छी होती हैं .वो महकते फूल या चहकते पंछियों की तरह हैं वो जितनी ज्यादा होगीं चमन उतना ही गुलज़ार होगा .हाँ हमारे लिए सबसे ज्यादा गर्व का दिन वह होगा जब एक आदिवासी भी अपनी भाषा में संसद में बोल ,सुन और समझ सकेगा. ये क्या बात हुई कि  बतकही तो मातृभाषा में हो और सरकार का काम काज अंगरेजी में होता रहे  जिसे आज भी दो प्रतिशत लोग ही बमुश्किल समझ सकते हैं .

  

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