गुरुवार, 10 जुलाई 2014

ट्रेन में शौचालय की व्यवस्था


      ऊल जलूल सोचते  रहने  की मुझे   बचपन से आदत है . अब  जैसे  इस बात  को ही  देखो  जिसका  ख्याल  मुझे बार  बार आता  है. मैं  अक्सर  सोचता  हूँ  कि  ट्रेन  में  शौचालय  की व्यवस्था बहुत  जरूरी  चीज  है जिस  किसी के भी प्रयास से ये व्यवस्था हुई है वो वाकई  में बधाई का पात्र है, लेकिन इस व्यवस्था को बने एक ज़माना गुजर गया है .क्या इसे और बेहतर बनाने की ओर किसी का ध्यान गया है ? ट्रेन के शौचालय  का मल नीचे खुली पटरियों पर गिराकर  प्रदुषण फैलता रहता है लेकिन किसी को ये ख्याल नहीं आता है कि इसे रोका जाना चाहिए. क्या कोई ऐसी तकनीक इस्तेमाल नहीं की जा सकती है कि ये मल नीचे खुले में न गिरने पाये ? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि एक पाईप द्वारा ट्रेन के सभी शौचालयों का मल किसी एक बड़े कंटेनर में इकठ्ठा होता रहे तथा उससे  बायो ऊर्जा का उत्पादन किया जाए जिसका उपयोग ट्रेन में किया जा सकता है . या ऐसी ही कोई तकनीक ईजाद की जाए जो मानव मल मूत्र का प्रदूषण रहित बेहतर निस्तारण कर सके तथा जिसका चलती ट्रेन में भी इस्तेमाल हो सके. क्या यह कोई बहुत मुश्किल काम है ? जब हम ट्रेन को चलाने के लिए भाप ,कोयला ,पेट्रोल डीजल के स्थान पर बिजली से चलने वाली तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं, हाई स्पीड और बुलेट ट्रेन चला सकते हैं तो क्या इतना मामूली लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी सुधार नहीं कर सकते हैं ? जब तक हम ऐसी तकनीक का इस्तेमाल नहीं करते हैं तब तक कम से कम इतना तो किया ही जा सकता है कि मानव मल मूत्र  को एक बड़े कंटेनर में इकठ्ठा कर स्टेशन पर किसी बड़े बायोगैस प्लांट में उड़ेलने की व्यवस्था कर दें.ताकि रेल की पटरियों पर गन्दगी न फैले  और मानव मल मूत्र से होने वाली बीमारियां भी न फ़ैलाने पाएं.
        रेल की पटरियों पर गन्दगी का होना मनुष्य के अभी तक असभ्य होने की पहचान है .ये असभ्यता तब और खलती  है जब हम विज्ञान और तकनीक  विकास कर अंतरिक्ष यात्री होने का दंभ भरते हों.

   
    एक और बहुत महत्वपूर्ण  बात ये भी है कि हम तमाम तरह की तकनीक का ईजाद करने के बावजूद अभी तक मानव रहित रेलवे क्रांसिंग फाटकों पर स्वचालित फाटकों की व्यवस्था नहीं कर सकें हैं.हम देखते हैं कि सामने से ट्रेन आती रहती है और अनेक आदमी  रेलवे फाटक के बैरियर के नीचे से रेलवे लाईन क्रास करते रहते हैं .बहुत से इसी कारण ट्रेन की चपेट में आकर मर भी जाते हैं लेकिन अक्सर लोग बन्दर की फुर्ती से बैरियर पार कर जाते हैं .अनेक तो अपनी मोटर साईकिल, स्कूटर भी पार कर ले जाते हैं .लेकिन जब हाई स्पीड बुलेट ट्रेन होगी तो वो ये चमत्कार कैसे किया करेंगें ? और कोई अगर ये सोचता है कि आदमी डर के मारे उसके नजदीक नहीं जाएगा तो वो गलत सोचता  है. वो  मानव स्वभाव को नहीं समझता है .मनुष्य जानता है लेकिन फिर भी  खतरे उठाता है .इसलिए ये बहुत जरूरी है कि  सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये जाएँ . ऐसी व्यवस्था हो कि ट्रेन आने से काफी पहले रेल का फाटक स्वयं बंद हो जाए और जो कोई भी उस फाटक के नजदीक जाए उसे वो लोहे का फाटक उसी  तरह पकड़ ले जैसे चुम्बक  लोहे को  पकड़ लेता है  और तभी छोड़े जब ट्रेन गुजार जाए .लेकिन उसे कोई हानि नहीं होना चाहिए .जरूरी नहीं है कि आम आदमी ही ट्रेन की चपेट में आता हो कई बार सिरफिरे इंसान  या जंगली जानवर भी अनजाने में चपेट में आकर मर जाते हैं . इंसान को सिर्फ अपने बारें में  ही नहीं सोचना चाहिए उनकी प्राण रक्षा भी बहुत जरूरी है .

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