शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

गजल-हमेशा ..'प्यार की बातें'-आसिफ रजा


वही चाहत..वही उल्फत..वही.. इकरार की बातें ।
लगे हैं ..लोग करने में ......हमेशा ..प्यार की बातें।।

वही हैं लोग सदियों से .कहीं कुछ भी नहीं बदला।
फना वो हो गये ..जो करते थे ......बेदार की बातें।।

जरा ठहरो..अगर दिल में तमन्ना बन के आये हो।
अभी तो ना करो ..घर की ...दरो-दीवार की बातें।।

ज़िहादी लफ्ज़ से ...हर्फ़े-मुहब्बत ..तौलने वालों।
तेरी तालीम है बस ..तीर की ....तलवार की बातें।।

उन्ही के जुल्फ की... जंजीर में जकड़े हुए हैं हम।
"रज़ा" के इश्क को..कहते हैं जो बेकार की बातें।।
                                       -आसिफ रजा 

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