मंगलवार, 2 सितंबर 2014

'प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो'


   मैं बहुत दिनों से ये सोच सोच कर परेशान हूँ कि लव जेहाद करने वाले तो हिन्दू लड़कियों को मुस्लिम बना लेंगे उन्हें कोई समस्या न होगी बल्कि हो सकता है उन्हें सबाब ही मिले. क्यूँकि ऐसा कहा जाता है कि इस्लाम में दूसरे मतावलम्बियों को मुसलमान बनाकर अपने मजहब में शामिल करना सबाब का काम है. मुस्लिम धर्म गुरु उलेमा वगैरह भी इसकी ताईद करते हैं. लेकिन हिन्दू क्या करें ? पहले तो उनके यहाँ लव करने की ही कोई गुंजायश नहीं है. वहाँ घृणा की जा सकती है, सेवा की जा सकती है, ममता की जा सकती है लेकिन लव यानी की मोहब्बत यानी की प्यार नहीं किया जा सकता है.प्यार का मतलब यहाँ इतना ही है जैसे माँ अपने बेटे को प्यार करती है, पिता अपनी पुत्री को प्यार करता है, गुरु अपने शिष्य को प्यार करता है ,मालिक अपने नौकर को प्यार करता है या ज्यादा से ज्यादा जैसे पति अपनी पत्नी को या पत्नी अपने पति को प्यार करती है. अब इतनी सारी वैरायटी तो प्यार की यहाँ है ये नौजवान छोकरे छोकरी और कैसा प्यार करना चाहते हैं ?
अब अगर आप इसे प्यार मानते हो तो कोई समस्या नहीं है लेकिन मैं इसे प्यार यानी की लव नहीं मानता हूँ.मेरी समझ में ये चाहे सब कुछ हो लेकिन लव यानी की प्यार नहीं है .मेरी तरह और भी बहुत से लोग हैं तमाम नौजवान हैं जो ऐसा ही सोचते हैं. अब मान लिया कि एक हिन्दू लड़का एक मुस्लिम लड़की से लव करता है .वैसा ही करता है जैसा तब होता जब लड़का मुस्लिम होता और लड़की हिन्दू होती. लड़की विवाह को तैयार है लड़का भी तैयार है और मान लो उसके घर वाले भी तैयार हैं. मान लो वैसे ऐसा होना मुश्किल है .क्यूँकि वहाँ तो लव होता ही नहीं है, होगा तो ऑनर किलिंग होगी .फिर भी मान लो सब तैयार हैं तो कौन पंडित उनके विवाह संस्कार पूरे करायेगा? कौन उन्हें अग्नि के सात फेरे दिलाएगा? कौन सी जाति कौन सा समाज उन्हें अपने में समाहित करेगा ? क्या वे धर्म और जाति से बहिष्कृत नहीं किये जाएंगे ? क्या वे इज्जत के नाम पर मारे नहीं जाएंगे ? हमारे यहाँ शुद्धिकरण के नाम पर हिन्दू धर्म में वापसी का भी कहीं कहीं कुछ काम किया गया लेकिन वापिस आने पर उन्हें उनकी जाति नहीं मिली.जो थोड़े से लोग किसी दूसरे धर्म को त्यागकर हिन्दू बने उन्हें किसी जाति में शामिल नहीं किया गया वे एक अलग जाति बना दिए गए और उनकी स्थिति शूद्रों जैसी ही रही. पंडित उनसे सबसे ज्यादा घृणा करते हैं .इसलिए धर्म परिवर्तन या प्रणय शुद्धिकरण जैसी चीज हमारे यहाँ नहीं है. तो क्या हिन्दू लडके लड़कियाँ अन्य धर्म वाले से प्यार न करें ? प्यार करें तो उन्हें अपना धर्म छोड़ने के अलावा रास्ता ही क्या है ?
उधर देखिये जहाँ उलेमा और बिरादरी अपने समाज में शामिल करके खुश हो रही है . क्या आप किसी ऐसे परिवार को सभ्य और सुसंस्कृत परिवार कहेंगे जो दूसरे धर्म और संस्कृति के व्यक्ति को अपने घर में आने पर उसका स्वागत न करे, उससे नफ़रत करे ? आप उसे सभ्य नहीं कहेंगे .हम हिन्दू ऐसा ही बर्ताव करते हैं और अगर मुस्लिम भी ऐसा बर्ताव करते हैं किसी हिन्दू लड़की को शादी के बाद सिर्फ इस वजह से प्रताड़ित करते हैं कि वो हिन्दू थी या अब शादी के बाद भी हिन्दू है तो उनसे बड़ा इंसानियत का दुश्मन कोई नहीं है .
     हम इंसान के रूप में पैदा हुए हैं हिन्दू मुसलमान के रूप में पैदा नहीं हुए हैं .हमें हिन्दू मुसलमान पैदा होने के बाद बनाया गया है.जाति भी हम पर थोपी गयी है.हमने जाति ,धर्म ,क्षेत्र राष्ट्र किसी का भी चयन स्वयं नहीं किया है. ये एक सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत हमें मिले हैं .ये व्यवस्था मनुष्य की सुविधा और सुख के लिए बनायी गयी है उसे दुखी करने के लिए नहीं बनायी गयी है .अगर ये व्यवस्था मनुष्य को सुख के स्थान पर दुःख देने लगी है तो इसे बदलने या इसे पलट देने में कोई हर्ज नहीं है. आज अन्तरजातिय या अंतरधार्मिक ही नहीं अंतर्देशीय और अंतराष्ट्रीय विवाह किये जाने चाहिए ताकि सारे संसार के मानव एक सूत्र में बंध जाएँ. ये काम जितनी तेजी से होगा समाज उतना ही अधिक गतिशील होगा. लेकिन जिस समाज में अपनी जाति से बाहर और अपने गोत्र में विवाह करने पर मार डालने का काम किया जाता हो उस समाज में अन्तरजातिय, अंतरधार्मिक और अंतरराष्ट्रीय विवाह कैसे स्वीकार हो सकते हैं ? लेकिन इतिहास के तमाम मशहूर किस्सों की तरह प्रेम करने वाले न पहले कभी रुके हैं और न आगे रुकेंगे .इसलिए लव जेहाद का शौर मचाने वाले चाहे जितना भी चीख चिल्ला लें ये रुकने वाला नहीं है ,और रुके भी क्यों ?ये कोई एकतरफा नहीं है और न ही गैर कानूनी है. गैर कानूनी भी अगर होता तो प्यार तब भी कम न होता. प्यार पर बंदिशें लगाने वालों प्यार करने वाले सारी बंदिशें तोड़ देंगे. ये सबसे बड़े इंकलाबी हैं.सामाजिक इंकलाब की इस खामोश लहर को पहचानों. आज नहीं तो कल इसका असर जरूर नजर आएगा.इसे धर्मान्धता की नजर से न देखो. प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो .

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