मंगलवार, 5 अगस्त 2014

स्कूल में गीता और महाभारत


 'कोई स्कूल की घंटी बजा दे ,ये बच्चा मुस्कराना चाहता  है '
बच्चों  पर  दया  करो  .क्या  क्या लादोगे  उन  पर  ? पहले  से  ही कितना  भारी  बस्ता  उनकी  पीठ  पर  लदा  है और अब  गीता और महाभारत  भी लाद  देना  चाहते हो  ? कल  को  दूसरे  धर्म के लोग कुरआन ,बाइबिल  और गुरु  ग्रन्थ  साहिब  भी पढ़ाने की मांग  करेंगे  . यही  क्यों जब  आप  गीता महाभारत  ,रामायण  ,उपनिषद्. मनुस्मृति  पढ़ाओगे  जो   आप  टुकड़ों  टुकड़ों  में  अब  भी  पढ़ते  ही हो  तो  बाकी लोग भी अपने धर्म के छोटे मोटे ग्रन्थ पढ़ाने की आवाज उठायँगे . यूँ धर्म ग्रंथों का ज्ञान होना बुरी बात नहीं है लेकिन सवाल ये है कि किस उम्र में क्या ज्ञान प्राप्त होना चाहिए ? क्या आप किसी कमसिन बच्चे को काम शास्त्र की शिक्षा देना उचित समझते हैं ? अगर कमउम्र में काम शास्त्र की शिक्षा उचित नहीं है तो फिर धर्म शास्त्रों की शिक्षा किस प्रकार उचित हो सकती  है ? बहुत सारे लोगों को मेरी यह बात नागवार गुजरेगी कि मैं कितनी वाहियात बात  कर रहा हूँ लेकिन मुझे धार्मिक शिक्षा भी उतनी ही वाहियात लगती है जितनी किसी नाबालिग को काम शास्त्र समझाना.        
         मनुष्य किसी धर्म का चोला पहनकर जन्म नहीं लेता है लेकिन उसे जन्म से ही किसी ख़ास धर्म में शिक्षित दीक्षित करने का काम शुरू हो जाता है .उसे ईश्वर में विश्वाश करना सिखाया जाता है. अगर उसे ये सब ना सिखाया जाए तो बहुत संभव है कि वह नास्तिक रहे या अपनी तार्किक बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए विश्वाश या अविश्वाश करे .लेकिन धर्म के ठेकेदार उसे अपने में शामिल करने के लिए घेर लेते हैं और उस घेरे को इतना मजबूत रखते हैं कि आदमी अपनी सारी कसमसाहट के बावजूद उस घेरे से ताउम्र निकल नहीं पाता है. कुछ मनुष्य अगर निकलने का प्रयास  भी करते हैं तो उनका इतना मानसिक और सामाजिक उत्पीड़न किया जाता है कि वो अपनी सारी हेकड़ी के बावजूद भले ही अलग थलग रहें लेकिन उसी घेरे में बने रहते हैं .
           जब हमारे समाज की ऐसी स्थिति है तो फिर  आप और किसलिए धार्मिक शिक्षा को बढ़ावा देना चाहते हैं ? जबकि ज्ञान विज्ञान के आधुनिक विषयों बाजार और प्रौद्यिगिकी,तकनीकी और अन्य महत्वपूर्ण कलाओं की शिक्षा भी ग्रहण करनी आवश्यक है .कभी सोचा है कि इतनी सारी शिक्षा बच्चे किस प्रकार ग्रहण करेंगे ? माना कि सारी शिक्षा आवश्यक हैं जो कि वास्तव में है नहीं लेकिन किस  अवस्था में किस विषय की किस स्तर की शिक्षा दी जानी चाहिए ये तय किया जाना अत्यंत आवश्यक है .मेरी समझ में बहुत सारे ऐसे विषय हैं जिनकी शिक्षा अल्पावस्था में देने की बिलकुल जरुरत नहीं है .कुछ विषयों की शिक्षा अल्पावस्था के बच्चों को थोड़ा सुथरे रूप में तथा बड़ी आयु के शिक्षार्थियों  को सम्पूर्ण  रूप में दी जानी चाहिए .इसमें मैं ख़ास तौर से इतिहास के विषय का उल्लेख करूँगा .यद्यपि प्रेमचंद ने इतिहास की शिक्षा को अनावश्यक  बताया है लेकिन  अगर इतिहास को शिक्षा से अलग ना भी क्या जाए तब भी इतिहास में ऐसी आधी अधूरी बातें ना पढायीं जाएँ जो समाज में द्वेष फैलाती हों.जैसे मुस्लिम हमलावरों का मंदिरों का लूटना और जबरन धर्म परिवर्तन. बहरहाल इस पर अलग से चर्चा उचित होगी अभी इतना ही कहना है कि आज गीता और महाभारत पढ़ाने की बात करने की अपेक्षा  प्रबुद्ध जनों से  ये सुझाव माँगा जाना उचित होगा कि किन विषयों कि शिक्षा ना दी जाए ताकि बच्चों पर बस्ते का बोझ काम हो और उन्हें उनका बचपन लौटाए जा सके, जो हमने छीन लिया है .      

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