गुरुवार, 18 सितंबर 2014

लद्दाख में चीनी घुसपैठ

सोशल मीडिया पर मोदी भक्त लिख रहे हैं कि लद्दाख में चीनी घुसपैठ की खबरें पुरानी हैं .हाल फिलहाल में ऐसी कोई घटना नहीं हुई है. देश के प्रतिष्ठित अखबार खबरे छाप छाप कर बता रहे हैं कि चीनी सैनिकों ने सौ भारतीय सैनिकों का घेराव किया हुआ है .चीनी सैनिकों ने मनरेगा योजना के अंतर्गत नहर निर्माण का काम कर रहे मजदूरों को भी काम करने से रोक दिया गया बताया गया है . लेकिन भक्त जान कह रहे हैं कि ये खबरे फर्जी हैं .ये चीन के साथ बढती नजदीकी के विरुद्ध एक साजिश के तहत फैलाई जा रहीं हैं.
राम जाने सच क्या है ? हम तो लद्दाख जाकर देखने से रहे कि वहाँ क्या हो रहा है ? न हमारे पास इंटेलीजेंस कि रिपोर्ट आती है जो सच जान लें .हमारे पास तो अखबार और टी वी का ही सहारा है जो हमें रोजमर्रा की घटनाएँ बताता है .यद्यपि वह पूरी तरह निष्पक्ष नहीं है लेकिन उससे मिली जानकारी पर यकीन करने के अलावा हमारे पास और विकल्प भी क्या है ?
बहरहाल चीन से सम्बन्ध अच्छे हों ये हमारे लिए हर तरह से फायदे में है लेकिन हमारी अखंडता और प्रभुसत्ता पर कोई आंच आये बिना ही ये सम्बन्ध स्वीकार किये जाने चाहिए .आर्थिक लाभ के लिए देश के सम्मान को ताक पर नहीं रखा जा सकता है . चीन से सम्बन्ध बनाने में हमने तिब्बत की आजादी के खात्मे को स्वीकार करने के जो भूल की थी उसका नतीजा हमें उन्नीस सौ बासठ में भुगतना पड़ा था .तिब्बत भारत और चीन के बीच में एक बफर स्टेट था उसके होने से हम चीन के साथ सीधे टकराव से बच सकते थे . आज भी भारत और चीन के सम्बन्ध तभी सहज हो सकते हैं जब तिब्बत आजाद हो .लेकिन आज तिब्बत की आजादी का सवाल कहीं खो गया है . दुनिया ने चीन को संतुष्ट रखने की जो नीति अपनायी उसकी कीमत तिब्बत ने अपनी आजादी गंवाकर चुकाई है . लेकिन चीन किसी भी तरह संतुष्ट होने को तैयार नहीं है .भारत में अपनी सीमा विस्तार के उसके इरादे कुछ छुपे हुए नहीं हैं .भारत से जो कुछ भी उसका व्यवहार है सिर्फ अपने हित में है . आज भारत को चीन भी एक बड़े बाजार के रूप में ही देखता है जहाँ से वह अपनी लडखडाती अर्थवयवस्था को मजबूती प्रदान कर सकता है. देखना ये है कि भारत चीन की चालों को कैसे काटता है ? चीन की आर्थिक ताकत का कुछ फायदा तो भारत भी उठा सकता है .

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