शनिवार, 20 सितंबर 2014

दुपट्टे को रफ़ू करते रहे

भूख जब वे गाँव की पूरे वतन तक ले गए ,
मामला हम भी ये फिर शेरो-सुखन तक ले गए !

हम इधर उसके दुपट्टे को रफ़ू करते रहे ,
वो, उधर शेरों को उसके तन-बदन तक ले गए !

आग भी हैरान थी शायद ये मंज़र देखकर ,
जब उसे तहज़ीब-दाँ घर की दुल्हन तक ले गए !

हम पिलाते रह गए अपना लहू हर लफ़्ज़ को ,
और वे बे-अदबियाँ सत्ता सदन तक ले गए !

छेनियाँ, बसुँला, अँगूठे, उँगलियाँ ,ख़्वाबो-ख़याल,
हम ही तहज़ीबों को उनके बाँकपन तक ले गए !

जबकि हर तोहमत सही , भूखे रहे ए 'नूर' हम ,
फिर भी अपनी प्यास हम गंगो-जमन तक ले गए !!

                      ------- नूर मोहमद 'नूर'

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