गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

किसान की भूमि




     
  जब भी किसान की भूमि बचाने के लिए आवाज उठायी जाती है उसके सामने भूमिहीनों को खड़ा कर दिया जाता है  और कहा जाता है कि पहले इन्हें जमीन दो . समझ में नहीं आता कि क्या किसान की जमीन भूमिहीन को देने के लिए अधिग्रहित   की जायेगी  ? अगर वो जमीन भूमिहीनों को नहीं मिलने वाली है  तो फिर भूमिहीनों का सवाल क्यों उठाया जाता है .मैं नहीं कहता कि भूमिहीनों को जमीन नहीं मिलनी चाहिए लेकिन  यहाँ जमीन दे कौन रहा है ? यहाँ तो किसानों को भूमिहीन बनाने का क़ानून बनाया जा रहा है .
 वैसे मुझे भूमि के पुनर्वितरण की बात भी समझ में नहीं आती है .देश के अधिकाँश किसान तो दो ढाई एकड़ भूमि वाले किसान हैं उनके पास कौन सी सरप्लस जमीन है जिसका भूमिहीनों में वितरण किया जाए ? हाँ देश के बड़े बड़े कार्पोरेट घरानों के पास अनेक कंपनियां हैं, अनेक  कारखाने हैं .देश के मजदूर जिनमें  खेतिहर मजदूर भी शामिल हैं क्यों नहीं इन कारखानों में अपनी हिस्सेदारी माँगते हैं ? क्या किसान बनने से उद्योगपति  होना ज्यादा अच्छा नहीं है ? देश में आत्महत्या करने वाले किसान ही ज्यादा हैं ,सरमायेदार आत्महत्या नहीं करते हैं .किसानों के बनिस्पत मजदूर भी कम आत्महत्या  करते हैं .आखिर क्या कारण है कि किसान ही आत्महत्या   कर रहे  हैं ? अब क्या किसानों को जमीन से वंचित  कर  सामूहिक आत्महया की ओर धकेलना है ? कहने को तो ये देश किसानों और जवानों का है लेकिन यहाँ सबसे ज्यादा दुखी भी वही हैं .ऐसे तो ये देश नहीं चल  सकता है

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें