बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

धरने में मास्टरी


कहा था जिन्हें धरने में मास्टरी है उन्हें धरना करने का काम दो हमें सरकार चलाना आता है हमें वो काम दो लेकिन आपने धरने के मास्टर को सरकार चलाने का काम दे दिया। अब जिसका मन धरना देने को मचलता हो वो सरकार चलाने जैसा बंधन वाला काम क्यों करेगा? इसलिये जैसे ही अन्ना ने धरना देने की घोषणा की वह उनके पास पहुच गया। उसका तो किसानों के साथ धरना देने का मन मचल रहा है वैसे ही जैसा हमारा मन देशी विदेशी पूंजीपतियों के लिये मचलता है। जैसे हम परदेश मे जहॉं तहॉं विदेशी पूजी लाने के लिये मारे मारे फिरते हैं और चाहते हैं कि कारपोरेट घराने फलें फूलें वैसे ही वह किसानों के हकों के लिये लडना चाहता है तो लडे। हमें पॉंच साल काम करने का जनादेश मिला है और विकास के लिये मिला है सो हम अगर किसानों की जमीन लेकर कारपारेट घरानों के विकास के लिये देना चाहते हैं तो इसमें किसी को आपत्ति क्यूॅं हो ? आखिर विकास चाहिये कि नहीं ? अगर खेत में पसीना बहाने से हरियाली लाने से ही विकास होता होता तो कभी का हो गया होता । विकास होता है हाईवे बनाने सेे विकास होता है यूनियन कार्बाईड जैसे कारखाने लगाने से विकास होता है पोखरण में धमाका करने से । और हम वैसा करेंगे। हरियाली की खुशहाली की घर की तंगहाली की बात हमसे मत करो वह तुम्हारी समस्या है विकास की समस्या नहीं है। ऐसी बात करके तुम तो विकास पर ही झाडू फेरना चाहते हो । तुम चाहे दिल्ली में धरना दो या झारखण्ड के जंगलों में मरो खपो हमें हर हाल में विकास चाहिये और हम वो ला के रहेंगें।

सोचता हूॅ अगर सहाब के सूट की नीलामी करोडों में हुई है तो योग गुरू की सलवार की नीलामी भी जरूर करोडों में होगी। क्यूॅं ना लगे हाथ बाबा की सलवार भी नीलाम कर दी जाये ? आखिर वो एक ऐतिहासिक सलवार है। दुलर्भ वस्तुओं को सहेज कर रखने वाले इसे जरूर सहेज कर रखना चाहेंगे। सरकार को बहुत सारा काला धन तो ऐसे ही मिल जायेगा विदेश से मंगाने की जरूरत नहीं पडेगी। लोग स्वयं लेकर आयेंगें और नीलामी में दे जायेंगें। क्यूकि कोई एक नम्बर के पैसे से तो ये सब खरीद नहीं सकता है। 
नीलामी के लिये ये सरकार बहुत कुछ दे सकती है। अटल जी की धोती और हेडगेवार का नेकर टोपी बहुत कुछ ऐतिहासिक चीजें है जिन्हें नीलाम किया जा सकता है।

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