रविवार, 5 जुलाई 2015

भाषा की मर्यादा और संयम


           सरकार कहती है कि सोशल मीडिया पर संयमित भाषा का प्रयोग करें सरकार ये भी कहती है कि वह अभद्र टिप्पणी करने वालों पर सख्त कार्यवाही करेगी ।
सरकार आपकी बातें सिर माथे लेकिन यह तो बता दें कि ये सारी नसीहतें और पाबन्दियॉं आम आदमी पर ही आयद होंगी या कुछ नेताओं के हिस्से में भी आयेंगी? जब कहा जाता है कि जो हमारे नेता को वोट नहीं दे वो पाकिस्तान चला जाये तो कौन अभद्र भाषा इस्तेमाल करता है ? जब कहा जाता है कि पचास करोड की प्रेमिका है तो कौन भद्र भाषा का प्रयोग करता है ? जब रोज पप्पू और फेकू के सम्बोधन होते हैं तो कौन सी भद्र भाषा का इस्तेमाल हो रहा होता है ? और वे सॉंस्कृतिक सूरमा जो इटली की कुतिया और दंगा पीडितों के राहत शिविरों को बच्चा पैदा करने की फैक्ट्री जैसे  बोल बोलकर अपनी मन की घ्रणा का नग्न प्रदर्शन करते हैं तो कौन उन्हें औकात में रहने के लिये कहता है ?
  कभी कहा गया कि इनके खिलाफ अभद्र भाषा के प्रयोग के अपराध में कानूनी कार्यवाही की जायेगी ? कौन करेगा कार्यवाही और कैसे करेगा कार्यवाही जब जिनके विरूद्ध कार्यवाही होनी चाहिये वो सब तो संसद में जाकर बैठ गये हैं। संसद में भी वो जिस भाषा में बोलते हैं वो कितनी भद्र और संसदीय है इसे भी अब जनता देखती रहती है। तो क्या यह माना जाये कि नेता हर नियम कानून से उपर होता है वो जब चाहे, जहॉं चाहे, जैसे चाहे वैसे बोल सकता है किन्तु आम आदमी को हमेशा नत सिर घिघियाती वाणी में सरकार सरकार बोलते रहना चाहिये ? शायद सरकार की दृष्टि में यही भद्र और सकारात्मक भाषा है।
  .मैं नहीं कहता कि अपशब्दों का प्रयोग अधिकार है लेकिन आम आदमी भाषा और आचरण बडे लोगों से सीखता है। वह कभी भी अपनी मर्यादा नहीं लांघता है। लेकिन जब वह देखता है कि मर्यादा का उल्लंघन करने वाले लोग शीर्ष सम्मानित पदों पर बैठे हैं और वहॉं बैठकर भी अंसयमित व्यवहार कर रहें हैं तो फिर पह यह मानने लगता है कि मर्यादा का उल्लंघन शर्मिन्दा होने का कारण नहीं प्रतिष्ठित होने का लघु पथ है। वरना बताओं हरामजादों की सरकार होने की बात कहनी वाली साध्वी कहलाती ?साधुता जब इस स्तर पर आ जाये तो भाषा की मर्यादा अर्थहीन हो जाती है। क्यूॅंकि कुत्ते की भों भों को संस्कारी भाषा में नहीं बदला जा सकता है।
 .इस गडबडझाले के बावजूद मैं आश्वस्त हूॅं कि जैसे कौओं की कॉंव कॉंव कोयल के मीठे स्वर में नहीं बदल सकती है वैसे ही मधुर तिक्त नहीं हो सकता है। लेकिन कुछ लौग तो रहेंगे जिन्हें मधुर भी तिक्त ही लगेगा। पर क्या करें जिन्होंने सारी मर्यादा और संस्कृति का अन्तिम संस्कार  कर दिया हो ऐसे संस्कारी लोगों से हमें भाषा की मर्यादा और संयम सीखने की जरूरत नहीं है। हमारी भाषा ठीक है और हमेशा ठीक ही रहेगी आपको इसकी चिन्ता करने की जरूरत नहीं है जिनकी भाषा ठीक नहीं होगी वो ज्यादा दिन ठीक भी नहीं रहेंगे।

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