मंगलवार, 7 जुलाई 2015


न रकीब में, न रफीक में, मेरा नाम कहीं तो तू जोड़ दे ,
गर इतना भी न करम तेरा क्यूँ न इस जहां को ही छोड़ दें ?
जो नजर, नजर की ये बात है, कहीं ये नजर से उतर न जा
इसे आ दिलों में उतार लें, इसे इक हसीन सा मोड़ दें .


स्व राज कहूँ शव राज कहूँ  शिव राज  का राज कहा नहीं जाये
श्वॉंश घुटी निज आश छुटी कब लाज लुटी ये हवा नहीं आये।
व्यापक व्यापम् गंध चहूँ दिशि, मरघट काज सुराज दिखावे
राजा, रोगी, भोगी, जोगी, कौन ये राज कुराज हटावे ?


इस सोच में है रात गयी, सुबह हुई, दिन ढला
बस उम्र भर रहा है यूॅ ही सोच का ये सिलसिला
ना हमने कभी मॉंगा मुॅह खोल किसी से कुछ
मॉंगा नही ंतो ना मिला है ये मलाल ये गिला.

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