कमाल है डा अब्दुल कलाम ने मिसाईल बनायी तो उन्हें देश में श्रद्धा और सम्मान मिलता है लेकिन वीर टीपू सुल्तान जिसने सैकड़ों साल पहले राकेट का इस्तेमाल कर अग्रेंजों को पराजित किया उस वीर की देशभक्ति पर सवाल खडे किये जा रहे हैं ? क्या किसी सिपाही को कारीगर के बराबर भी सम्मान नहीं दिया जा सकता है? .क्या किसी कारीगर का कोई हथियार किसी वीर के साहस और शौर्य के बिना कुछ उपयोगिता रखता है ? अगर ऐसा होता तो शस्त्रागार में रखे शस्त्र ही किसी राष्ट्र की सुरक्षा के लिए काफी होते उसकेलिए देश के नौनिहालों के बलिदान की आवश्यकता ना पडती. क्या इतनी मोटी सी बात भी नेताओं की समझ में नहीं आती है ? एक सिपाही को इतना सम्मान तो मिलना ही चाहिए जितना एक हथियार बनाने वाले कारीगर को मिला है. लेकिन क्या करें जिन्होंने देश की आजादी के लिए एक बूँद पसीना तक न बहाया हो बल्कि जिनकी गद्दारी के कारण देशभक्तों को जेल में यातनायें सहनी पड़ीं हों वो अमर शहीदों के बलिदानों का मूल्य नहीं जान सकते हैं और वो जानना भी नहीं चाहते हैं. वो आज भी अंग्रेजों के तलुवे चाटने का आतुर हैं .उन्हें देश की मेधा पर नहीं विदेश की पूँजी पर भरोसा है. वो वक्त नजदीक आ रहा है जब अमर शहीदों के अगणित बलिदानों से प्राप्त स्वतंत्रता की रक्षा के लिए संघर्ष करना होगा.देश का सम्मान, किसान का स्वाभिमान ,नौजवानों के अरमान संकट में है .
जाने-माने नाटककार और लेखक गिरीश कर्नाड ने कहा है कि वह धमकियों से नहीं डरते.
उन्होंने बेंगलुरु हवाई अड्डे का नाम बदलकर टीपू सुल्तान के नाम पर रखने के बयान के लिए शर्त के साथ माफ़ी भी मांगी है.
कर्नाड ने कहा, "अगर कुछ लोग मेरी बात से दुखी हुए हैं तो मैं उनकी भावनाएं आहत करने के लिए माफ़ी मांगता हूं. मैं अपने बयान के लिए माफ़ी नहीं मांग रहा हूं क्योंकि यह बात मैं तीन साल पहले ही कह चुका था कि हवाई अड्डे का नाम टीपू सुल्तान के नाम पर किया जाए. मैंने टीपू का नाम बस एक संदर्भ में लिया था."
उन्होंने कहा, "यह कहना मूर्खतापूर्ण है कि एयरपोर्ट का नाम बदला जाए. इसके नामकरण से पहले ही केंपे गॉडा के नाम पर बहुत सी जगहें थीं. क्योंकि टीपू देवनहल्ली में पैदा हुए थे, इसलिए हवाई अड्डे का नाम उनके नाम पर करने की बात कही गई थी. सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया."
बुधवार को टीपू सुल्तान की जयंती पर आयोजित सरकारी कार्यक्रम में उनकी टिप्पणी के बाद बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद जैसे हिंदूवादी संगठनों ने उनकी आलोचना शुरू कर दी थी.
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कर्नाड के बयान के बाद एक ट्वीट में उन्हें डॉक्टर एमएम कलबुर्गी जैसे हश्र की धमकी भी दी गई थी. बाद में वह ट्वीट डिलीट कर दिया गया.
कर्नाड सोशल मीडिया पर दी गई धमकी से बेपरवाह दिखे, "कलबुर्गी को आंखों के बीच में गोली मारी गई थी. यह किसी पेशेवर हत्यारे का काम था. इस तरह के लोग ट्वीट नहीं करते. ट्वीट की मुझे कोई चिंता नहीं. अगर लोग ट्वीट करते हैं तो इसका अर्थ यह है कि उनमें कुछ करने की हिम्मत नहीं है."
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वह मानते हैं कि टीपू ने कोडागू में लोगों पर अत्याचार किए, "उसने मोपलाओं (केरल के) को भी मारा जो मुसलमान थे. लोगों को यह कतई अंदाज़ा नहीं है कि 18वीं सदी में लड़ाईयां कैसी होती थीं."
कर्नाड ने कहा, "अगर वह हिंदू शासक होते तो महाराष्ट्र में शिवाजी की तरह उनकी भी पूजा होती. शिवाजी ने महाराष्ट्र के लिए जो किया, वही उन्होंने कर्नाटक के लिए किया. उन्होंने बिखरे हुए महाराष्ट्र को एक किया था. टीपू ने भी कर्नाटक के लिए यही किया."
"मैं टीपू का सम्मान करता हूं और मेरा मानना है कि वह 500 साल के सबसे महान कन्नड़ हैं."
Image copyrightAP
इस दौरान बेंगलुरु शहर की पुलिस कर्नाड के ख़िलाफ़ लोगों की भावनाएं आहत करने की शिकायत पर कानूनी सलाह ले रही है.
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