रविवार, 22 नवंबर 2015

अपना खोटा सिक्का भी अब खरा हो गया है .

हर हर से अरहर, अरहर से हरा हो गया है
अपना खोटा सिक्का भी अब खरा हो गया है .

भारत में क्या, चला विश्व भर के बाजारों में
गिनती अब तक जहाँ रही थी हाथ पसारों में .
यूँ तो कहने सुनने को हैं किस्से अभी बहुत
समझदार वो है जो समझे बात इशारों में .

            देख उधर भी एक ईशारा ज़रा हो गया है .
           अपना खोटा सिक्का भी खरा हो गया है .

कितने दिन तक रहा कैद घर की ही गोलक में
नाहक ही गिनती होती थी अपनी शोषक में  .
हसरत थी दुनिया भर के बाजारों में जाऊँ
देखूँ आखिर राज छुपा क्या उनकी रौनक में .

                          जो आले में रहा धरा अब धरा हो गया है .
                         अपना खोटा सिक्का भी खरा हो गया है .

गिरगिट ही क्यों रंग बदले नेता भी बदलेंगे
श्वेत कफ़न से श्वेत वसन ही कब तक पहनेंगें
अधनन्गें भिखमंगों जैसे नहीं दिखेंगें हम
सूट बूट लखटकिया भी हर बार न पहनेंगें
                       जो पहना एक बार पुराना, बुरा हो गया है .
                        अपना खोटा सिक्का भी खरा हो गया है .

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