मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

वेतन में बढ़ोत्तरी

दिल्ली में विधायकों के वेतन भत्तों में चार सौ प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की गयी है लेकिन अखबारों में ये खबर बड़ी सुर्ख़ियों में नहीं है .दूसरी तरफ अगर सरकारी कर्मचारियों के मंहगाई में दो तीन प्रतिशत की वृद्धि भी हो जाए तो अखबारों की सुर्खियां होती हैं 'सरकारी कर्मचारियों की पौ बारह, महगाई भत्ते में बढ़ोत्तरी- सरकारी खजाने पर करोड़ों का बौझ '.सरकारी कर्मचारियों की बल्ले बल्ले - महंगाई भत्ते की एक ओर किश्त जारी'.
भारी विसंगतियों से भरी सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट आई है जिसमें तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के वेतन में मामूली वृद्धि की सिफारिश की गयी है . उसके लागू करने में भी राज्य सरकार हीला हवाला करेगी जिसके कारण विलम्ब स्वाभाविक है .लेकिन जब तक सरकारी कर्मचारियों को बढ़ा हुआ वेतन मिलेगा तब तक अखबार कई बार 'वेतन वृद्धि से सरकारी खजाने पर अरबों रुपये के बोझ' की खबरें छाप देंगे .अब जब विधायकों का वेतन चार सौ प्रतिशत बढ़कर ढाई लाख रुपये माहवार के करीब हो गया है तो सारे अखबार चुप हैं .
सरकारी कर्मचारियों का जब भी वेतन बढ़ता है तो उनकी कार्य क्षमता और अवकाशों का भी जिक्र जरूर होता है . लेकिन विधायकों सांसदों के वेतन भत्ते बढ़ाते समय कोई नहीं पूछता है कि ये सदन में कितना काम करते हैं ?अगर त्यौहारों के कारण सरकारी कार्यालय लगातार तीन दिन बंद हो जाएँ तो अखबारों में हाहा कार मच जाता है और संसद का सत्र बिना काम किये हंगामें में समाप्त हो जाए तो कहीं कोई आवाज नहीं उठती है .सरकारी कर्मचारी तीस साल सेवा करें उन्हें पेंशन नहीं मिलेगी जन प्रतिनिधि चुनाव जीत भर जाए वो पेंशन का हकदार हो जाता है . 
ये जनतंत्र किसके लिए है? जनता के लिए या जन प्रतिनिधियों के लिए ?क्या जन प्रतिनिधि इसलिए चुनकर सदन में भेजे जाते हैं कि वे बिना जनता से पूछे अपनी अय्याशियों का इंतजाम करते रहें और जनता को दो जून के निवाले के लिए न्यूनतम मजदूरी भी न मिलें ?सरकारी कर्मचारी जिनके भ्रष्टाचार, छुट्टियों और लेटलतीफी का रोना सब जगह रोया जाता है उसकी हकीकत ये है कि आज वो काम के बोझ से दबे हुए हैं .कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं लेकिन नयी भर्ती नहीं हो रही है .एक एक कर्मचारी चार चार कर्मचारियों का काम कर रहा है .अपने वेतन से पैसे देकर प्राइवेट व्यक्ति से काम करा रहा है और अफसर सिर्फ बैठक कर रहे हैं. सुबह से शाम तक बैठके होती रहती हैं .आम आदमी अपने काम के लिए सरकारी कार्यालय में जाता है तो उसे यही जबाब मिलता है साहब बैठक में गए हैं कल आना .आम आदमी बाबुओं से लड़ता भिड़ता सरकार को कोसता हुआ चला आता है और अखबार सरकारी कर्मचारियों को कोसने में जुट जाते हैं .अधिकारों का वेतन भी विधायकों की तरह ढाई लाख रुपये मासिक हो जाएगा लेकिन काम सिवा बतकही के कुछ नहीं है.हाँ जनता जाए भाड़ में अफसर और नेता मिलकर अपनी सुख सुविधाओं को बढ़ाने में लगे हैं .
इस अव्यवस्था का जिम्मेदार कौन है ? किसने कहा है कि तुम बेरोजगार नौजवानों को नौकरी न दो ? किसने कहा है कि आप रोज रोज छुट्टियां घोषित करो ? हम कहते हैं कि आप साप्ताहिक अवकाश के अलावा सारी छुट्टियां ख़त्म कर दीजिये और नौजवानों को नौकरी दीजिये .कम से कम छुट्टी में काम करने से तो छुटकारा मिले. आखिर हमारी भी घर समाज की कुछ जिम्मेदारियां हैं कि नहीं ? ये क्या कि हम जनता से गालियां सुनते हैं कि हम काम नहीं करते हैं और परिवारवालों से धिक्कारें जाते हैं कि हम वक्त पर घर का कोई काम नहीं करते हैं .समाज अलग से हमें असामाजिक होने का सर्टिफिकेट देता है . आम आदमी को ये बात समझने कि जरुरत है कि उसकी बदहाली के लिए नौकरशाह और नेता ही जिम्मेदार हैं कोई अन्य नहीं है .अगर देश में बेरोजगारी है,.अगर देश में मंहगाई है तो वो नेताओं के मंहगें चुनाव और नेताओं और अफसरों के मोटे वेतन भत्तों के कारण है .यही पैसा जो उनके ऐश करने में खर्च होता है अगर बेरोजगार नौजवानों को रोजगार देने में खर्च हो तो अर्थव्यवस्था मंदी के दुष्चक्र में नहीं फंसेगी, देश में अपराध नहीं बढ़ेंगे,किसान और मजदूर आत्महत्या नहीं करेंगे,स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था में सुधार होगा .कुल मिलाकर देश में खुशहाली आएगी . लेकिन सवाल ये है कि ऐसा होगा कैसे नेता तो हम नए नए नारों से चुन ही लेते हैं उनसे काम को कौन कहेगा ?

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