वैसे इस समय पत्रकार और बुद्धिजीवी वर्ग में जो उत्तेजना है , गुस्सा है वो स्वाभाविक तो है लेकिन फिर भी वो ज्यादा उद्वेलित नहीं करता है .आखिर इससे पहले भी ये काले कोट वाले दानव हथकड़ियों में जकड़े आरोपी के साथ मार पीट करते रहे हैं लेकिन बुद्धिजीवियों में तब ऐसा विक्षोभ देखने में नहीं आया है .तब आसानी से कह दिया गया कि आरोपी बलात्कारी है ,हत्यारा है .आतंकवादी है इसलिए इसके साथ जो हो रहा है जनाक्रोश की अभिव्यक्ति मात्र है .लेकिन कोई आरोपी कितना भी जघन्य अपराधी क्यों न हो जब तक कोर्ट अपना फैसला नहीं सुना देता है आप उसे अपराधी नहीं, आरोपी ही कह सकते हैं और कोई आरोपी होने मात्र से ही दंड का भोगी नहीं हो जाता है . अपराध सिद्ध होने पर भी वह हर किसी से दण्डित होने के लिए नहीं का पात्र नहीं है . राज्य अलग से उसे दण्डित करने की व्यवस्था करने के जिम्मेदार है .अगर आम जनता या विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग स्वयं क़ानून अपने हाथ में लेकर किसी को कोई सजा देता है तो क़ानून की नजर में वे सब गुनाहगार है और उन्हें कानून के अनुसार सजा मिलनी चाहिए .
दिल्ली के उन वकीलों ने जिन्होंने कोर्ट के अंदर जाकर छात्रों और पत्रकारों को मारा पीटा है, कानूनन अपराध किया है उनके खिलाफ उचित कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए .साथ ही उन लोगों के खिलाफ भी कार्यवाही की जानी चाहिए जो इस अपरध के मूक दर्शक या प्रायोजक रहे हैं .
आखिर किसी कलमकार का गुनाह क्या है ? यही न कि वह भविष्य को भाँप कर आपको सचेत करता है कि आपके साथ आगे इससे भी खराब हो सकता है इसलिए इसे रोकने के लिए अभी उठ खड़े हों . पत्रकार यही कर रहे हैं .हमें उनके साथ खड़ा होना है . कर तो कवि भी यही रहा था जब वो कह रहा था 'भारत में फिर से मत आना ओ रे कृष्ण कन्हैया! ,तुम दाऊ के भैया हो अब हैं दाऊद के भैय्या' लेकिन क्या करें ? कन्हैया नहीं माना .आ गया भारत में .और वो भी सीधे राजधानी में .अब आ गया तो ठुकाई पिटाई तो होनी ही थी. यहाँ कौन सा अब जसौदा मैय्या और दाऊ भैया बैठे हैं यहाँ तो अब दाऊद हैं या दाऊद के हमराही हैं .अब अगर वो उन्हें दाऊ समझ लें तो इसमें उनकी तो कोई गलती है नहीं. जिसने गलत समझा है वो भुगतेगा .वो भुगत ही रहा है .जेल तो कन्हैया का जन्म स्थान है जेल से डर कैसा ? बोल जसौदा माता की जय .....दाऊद एक कन्हैया छ : .डंडें मातरम डंडें मातरम डंडें मातरम डंडें मातरम .
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