शनिवार, 26 मार्च 2016

छुओ पौर से


जो आवाज दोगी हमें जोर से
तो देखेगा सारा जहाँ गौर से.
जो कहना है चुपके कहो कान में
न समझेगें हम कुछ घने शौर से.
हमेशा ही हम हैं तुम्हारे सनम
हमें तुम पुकारो किसी ठौर से .
गुलाबों से हम भी महक जायेगें
हमें तुम जरा सा छुओ पौर से.
हाँ कोयल सी कुह कुह कुहुकती रहो
बरसता है मद सा मेरे बौर से .
हम आँसू की मानिंद हैं आँख में
गिराना नहीं तुम हमें कोर से .
मेरे गीत गजलों के मानी बहुत 
मगर मैं उलझता रहा ढोर से .


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