रविवार, 22 मई 2016

आँसुओं से रही तर ब तर जिंदगी -मनोहर लाल 'मनहर'



'आँसुओं से रही तर ब तर जिंदगी  
फिर भी प्यारी लगी उम्र भर जिंदगी .

यूँ तो पल पल रही हमसफर जिंदगी 
पर ना आई कहीं भी नजर जिंदगी .

मैंने हर मोड़ पर मुड़ के देखा तुझे 
तू न आई  किसी मोड़ पर जिंदगी .

एक दर भूल से हम से क्या छुट गया 
मुस्तकिल हो गयी दर ब दर जिंदगी .

तुझसे मिल के भला तेरा करते भी क्या ?
तूने छोड़ी नहीं कुछ कसर जिंदगी .

आफ़तें ,उलझने, अश्क, रुसवाईयाँ 
अब खुदा  के लिए बस भी कर जिंदगी .

जाने मन जाने जां है ये तेरी तरह 
बेवफा,बेरहम ,बेअसर जिंदगी .

आ गयी तुझको लेने वो 'मनहर'अजल 
कुछ खबर है तुझे बेखबर जिंदगी .


[ हमारे एक कवि मित्र हैं मनोहर लाल 'मनहर'. बड़े अच्छे उर्दूदाँ और गजलगो हैं. मुझे तो उर्दू की बहुत थोड़ी समझ है इसलिए उनके कलाम पर ज्यादा नुक्ताचीनी नहीं कर सकता हूँ ,लेकिन उनका लहजा ओर कलाम दोनों ही मुझे बहुत पसंद हैं .वैसे भी वो एक फक्कड़ इंसान हैं .काम धन्धें से परे शायरी और शराब में डूबे रहना उनकी फितरत है . अब जब डाक्टर ने पीने से मना  कर दिया है तो थोड़ा होश में रहते हैं .यूँ दिल के बहुत अच्छे हैं, बड़े मिलनसार हैं. सबका सम्मान करने वाले हैं, थोड़े में वो एक हरदिल अजीज शायर हैं. आज 'काव्य सागर ' की काव्य गोष्ठी में उनकी एक बहुत पॉपुलर गजल सुनी तो बरबस ही मन फेसबुक पर पोस्ट करने के लिए होने लगा .आप सबके लिए उनकी ये गजल प्रस्तुत है.] 

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