शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

थोड़ा सा मुस्काइये .

देखिये इस कदर न खफा होईये
हम भी जी लेंगे थोड़ा सा मुस्काइये .


हम अभी बोलते थोड़ा हकलाते हैं
सामने हों अगर सर झुका जाते हैं
हमने मुड़ मुड़ के देखा तुम्हें दूर तक
रात में ख़्वाब तुमको बुला लाते हैं .

कब तलक रात दिन बुत से देखा करें
एक हँसी जोर से खिलखिला जाईये .
.............हम भी जी लेंगे थोड़ा सा मुस्काइये .


जिंदगी में हुए हादसे कम नहीं
सख्त पत्थर हुए हम तनिक नम नहीं
इस सहनशीलता का सिला ये मिला
सब गए छोड़ कह इसको कुछ गम नहीं .

अपने गम में अकेला मुझे छोड़ दो 
किन्तु खुशियों में आकर समा जाईये .
.............हम भी जी लेंगे थोड़ा सा मुस्काइये .

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें