रविवार, 10 जुलाई 2016

सिर मारूँगा

दीवारों को ढूँढ रहा हूँ,  सिर मारूँगा 
पहले खुद से जूझ रहा हूँ फिर मारूँगा . 

गुरु द्रोण हैं, दुर्योधन है, दुःशासन है 
चक्रव्यूह में घुस जाने दो घिर मारूँगा .

वो द्वापर था देख बड़ों को रुक जाता मैं 
अब कलयुग को देख रहा हूँ, थिर मारूँगा.

काट दिए हैं पाँव मेरे तो इससे क्या है ?
मैं सारे दुश्मन धरती पर,गिर मारूँगा .

मैं न पैदा हुआ कवच कुण्डल को लेकर 
मारो भी तलवार शीश में, चिर मारूँगा .

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें