गुरुवार, 11 अगस्त 2016

जब कन्हैया पिट रहा था

जब कन्हैया पिट रहा था नहीं कहा था मत मारो
जब अखलाक को मार रहे थे नहीं कहा था मत मारो
नहीं कहा था ये कम संख्या में हैं, लेकिन अपने हैं
नहीं कहा था देश को लेकर इनके भी कुछ सपने हैं.

इनको भी हक़ है अपनी मर्जी से जिन्दा रहने का
इनको भी हक़ है सपनों में सतरंगी रंग भरने का.
इनके सपनों से सतरंगी भारत माँ का आँचल है
इनके जख्मों को यूँ समझो भारत माँ ही घायल है.

लेकिन कहते कैसे?वोटों की ये फसल नहीं दिखते
जिनको बातों से बहला लो, वो बेअक्ल नहीं दिखते.
उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम तक ये जायेगें
खोलेंगे ये पोल झूठ की सच सबको बतलायेंगे .


सबको बतलायेंगे कैसे रोहित नहीं पढ़ेगा अब
सिर पर गारा ही ढोयेगा, आगे नहीं बढ़ेगा अब  .
वो मजूर बनकर ठेके पर काम करेगा बारह घंटे
फिर भी कभी ख़त्म ना होंगें तंग दस्ती के झगड़े टंटे.

ना पुश्तैनी घर छूटेगा, गिरवी रखा साहूकार से
ना बनिए से पार पड़ेगी, कापी में लिखे उधार से .
अगर हुए बीमार कभी तो बिना दवा मर जाना होगा
सरकारी अस्पतालों में ना कोई ठौर ठिकाना होगा .

दाल,दवा,रोटी,पानी की कीमत खूब चुकानी होगी
सस्ते में खाने पीने की, बातें बहुत सुहानी होंगी .
लेकिन सब बातें वोटों के मौसम तक होनी जानी है
फिर हम रोते हिंदुस्तानी, वो मुस्काते ईरानी हैं .

जिस दिन ये समझेंगें सारे, हिंदुस्तानी भोले भाले
उस दिन इनको छुप जाने के कम पड़ जायेंगे सौ ताले.
आएगा वो दिन जल्दी ही सूरज लाल उदय फिर होगा
गाएंगे सब गीत ख़ुशी से नहीं किसी को कुछ भय होगा .











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