मंगलवार, 30 अगस्त 2016

दाना माँझी से अपील


काँधें पर लादे मत घूमो
इसको मंदिर में रख आओ
दरगाहों में लेकर जाओ
इसके मस्जिद में बैठाओ

देखो इसको अधिकार मिला
मंदिर में आने जाने का
मस्जिद में पढने का नमाज
दरगाह में शीश झुकाने का


अब और चाहते हो तुम क्या ?
ये काफी जीने मरने को  .
इज्जत के सब दुःख सहने को  
जन्नत में जाकर रहने को .


ये दवा, हवा, रोटी, पानी
बातें फ़िजूल हैं करने की
जिन्दा रहने से भी ज्यादा
चिंता होती है मरने की


चिंता रहती है कैसे हम
परलोक सुधारेंगे अपना
ये जीवन तो क्षण भंगुर है
ये दुनिया मिथ्या है सपना


इस दुनिया के दुःख दर्द सभी
अपने नसीब का हिस्सा है
बतलाते धर्म गुरु सारे
हर सत्संग का ये किस्सा है


तुमको सुख अगले जन्म में है
इस जन्म करो दुःख सहन सभी
क्योंकि दुनिया के सुख सारे
समरथ के रखे रहन अभी .


समरथ जो धर्म गुरु भी हैं
शासक भी,पैसे वाले भी
ऊँचा रसूख रखने वाले
उनके सब पोसे पाले भी .


तुम उनमें कहाँ खड़े होते
बतलाओ कुछ मुख खोलो तो
देखो समाज को एक नजर 
अन्याय बहुत तुम तोलो तो .


जो देह धरी है काँधें पर
वो आज नहीं, मर गयी तभी
अन्याय भरी इस दुनिया ने
आँखें फेरी जिस रोज कभी.


इसका अंतिम संस्कार करो
संस्कार व्यवस्था का भी हो
असहाय खड़ा निरुपाय न रो
ऐसी न कोई अवस्था हो .


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