गुरुवार, 1 सितंबर 2016

गाय की दुर्गति


ये हिन्दू दलित की लड़ाई तो सदियों से चली आती है लेकिन गाय की मृत देह की दुर्गति कुछ समझ में नहीं आती है .गाय तो मर गयी अब उसका तो इससे ज्यादा कुछ बिगड़ने वाला नहीं है जिन्दा थी तो आप उसे डंडें मार सकते थे,भूखा मार सकते थे क्योंकि वो किसी की माँ थी, आपकी कुछ ना थी लेकिन अब जब वो मर गयी है तो आप उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं .उसके शव का सही ढंग से निपटारा नहीं करेगे तो जिसने आपको जिंदगी भर दूध पिलाकर पुष्ट किया है अब आपको रोग के जीवाणु देकर रुग्ण करेगी.ये उन्हें ही रुग्ण नहीं करेगी जिनकी वह माँ है या जिन्होंने उसका दूध पिया है या जिन्होंने उसे भूखो मारा है यह उन्हें भी रुग्ण करेगी जिनका कुछ भी कसूर नहीं है .मासूम बच्चे, कमजोर वृद्ध जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है.
अपनी मांग के समर्थन में गाय की मृत देह को हथियार बनाना कुछ जंचता नहीं है. गाय की चचेरी बहिन ,ताई मौसी भी हैं भैंस ,बकरी, सूअरी, इनका भी तो बहिष्कार होना चाहिए. जिन्दा या मुर्दा इनके उत्पाद का भी बहिष्कार कीजिये तभी आपका आंदोलन प्रभावी होगा. आज से ही दूध,घी, मांस का सेवन बंद करके शुद्ध शाकाहारी बन जाईये आपके आंदोलन में धार पैदा हो जायेगी.
चमड़े के कारखाने और कसाईखानों में काम करना बंद कीजिये. होटलों में मीट बनाना, परोसना, खाना बंद कीजिये .वो सारी दवाईयां वो चाहे पतंजलि की हों या किसी और फार्मेसी की जिसमें जीवांश है उसका खाना बंद कीजिये सरकार और संघ संगठन आपके दबाव में आ जाएंगे. लेकिन नहीं आप सिर्फ अपनी ताकत का प्रदर्शन करके राजनीतिक सौदेबाजी करना चाहते हैं, जो उत्तर प्रदेश में पहले से करते आये हैं किसी बुनियादी परिवर्तन का मुद्दा आपकी लड़ाई में न पहले कभी शामिल रहा है और न आज है .
अब ये सरकार बैठे बैठे क्या करती है ? जैसे मिलट्री के मृत घोड़ों का अंतिम संस्कार करती है वैसे ही मृत गायों का क्यों नहीं कराती है ? किसी समुदाय विशेष द्वारा समाज को बंधक बनाना कब तक सहन किया जाएगा ?समाज की सड़ांध बर्दाश्त करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है .समाज में सड़न है तो उसका उपचार जल्द से जल्द किया जाना चाहिए ना की सड़ांध को बढ़ते देना चाहिए .

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें